उपभोक्ताओं को अब बैंकों से निवेश उत्पाद एवं कई बचत के साथ म्युचुअल फंडों पर मिलने वाला बीमा कवर जल्द ही नही मिलेगा।
हालांकि उन्हें क्रेडिट कार्ड एवं होम लोन पर बीमा कवर मिलते रहना बरकरार रहेगा। मालूम हो कि म्युचुअल फंड कंपनियों के साथ हालिया हुए विवाद के बाद अब जीवन बीमाकर्ताओं ने कई वित्तीय उत्पादों के समूहीकरण की प्रथा को खत्म करने का फैसला किया है।
म्युचुअल फंड कंपनियां बीमा पॉलिसियों के साथ दिए जाने वाले अपनी योजनाओं पर बीमा प्रीमियम चाहते थे। इसी के चलते जीवन बीमा परिषद ने यह फैसला लिया है। मौजूदा समय में रिलायंस म्युचुअल फंड एवं बिरला सन लाइफ म्युचुअल फंड बीमा पॉलिसियों के साथ सिप उत्पाद प्रस्तावित कर रहे थे।
प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस के एमडी शिखा शर्मा के मुताबिक हमने अपने (आईसीआईसीआई) समूह चर्चा में इस बात पर बातचीत की थी कि म्युचुअल फंड योजनाओं के साथ बीमा कवर को नही मिलाया जाना चाहिए। मालूम रहे कि आईसीआईसीआई एवं ब्रिटेन के प्रूडेंशिएल ग्रुप जो एएमसी एवं जीवन बीमा उपक्रम के साझीदार भी हैं। इसने अब तक अपने उत्पादों पर दी जाने वाली बीमा कवर से दूरी बनाए रखी थी।
इस बारे में बीमा परिषद के महासचिव एसबी माथुर के मुताबिक बतौर एक उद्योग हमने यह बहुमत बनाया है कि हमसे सीधे मुकाबले करने वाली कंपनियों के बचत एवं निवेश पर हम कोई बीमा कवर प्रदान नही करेंगे। हालांकि क्रेडिट कार्डों, लोन एवं लाइब्लिटी उत्पादों पर हम यह कवर देना जारी रखेंगे। साथ ही जो उत्पाद हमारे उत्पादों के साथ प्रतिस्पर्धा नही करेंगे, उन पर भी यह कवर दिया जाना जारी रहेगा।
उल्लेखनीय है कि काफी लंबे समय से एएमसी ने जीवन बीमाकर्ताओं की शिकायत करती रही है कि वो हमारी जमीन का इस्तेमाल कर रहे हैं। मसलन यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस में ऐसा होता है। उधर जीवन बीमा परिषद के आंकड़ों के अनुसार उनके कुल कारोबार का 80 फीसदी यूलिप से आया है। यह क्षेत्र शेयर बाजार में निवेश करने वाले सबसे बड़े घरेलू संस्थागत निवेशकों के रूप में उभरे हैं।
2007-08 की बात करें तो इस दौरान इक्विटियों में 55,000 करोड़ रुपये का निवेश बीमा कंपनियों ने किया जबकि विदेशी संस्थागत निवेशकों ने 53,400 करोड़ रुपये और म्युचुअल फंडों के जरिए 16,300 करोड़ रुपये इक्विटी में निवेश किए गए हैं।
पिछले महीने ही एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड इन इंडिया(एएमएफआई) के तत्वावधान में बाजार नियामक सेबी से अपने निवेशकों को बीमा उत्पाद बेचने की बात रखी थी और इसके बदले में प्रीमियम भी मिलने की बात एएमएफआई के जरिए रखी गई थी।
मौजूदा समय में नियामक एएमसी को इस क्षेत्र में कदम रखने से मना करता है। वित्तीय समूहों के प्रमुख के मुताबिक ऐसा करने के पीछे वजह यह थी कि म्युचुअल फंडों के एजेंटों का कुछ मुनाफा हासिल हो सके क्योंकि उस वक्त बाजार में उतार चढ़ाव का माहौल बना हुआ था।
लेकिन दूसरी तरफ बीमा कंपनियां इसे म्युचुअल फंड कंपनियों के द्वारा अपना बचाव करने जैसा मानती हैं और जाहिर तौर पर वो उत्पादों के समूहीकरण के विरोध करने के फैसले पर अडिग है।