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रियल एस्टेट: जमीनी सच्चाई

Last Updated- December 07, 2022 | 4:03 AM IST

रियल एस्टेट के शेयरों में पिछले कुछ समय से लगातार बिकवाली दिख रही है। औसत रुप से बड़ी कंपनियों के शेयरों का कारोबार भी जनवरी की उनकी ऊंचाई से 45 से 65 फीसदी नीचे हो रहा है।


गुरुवार को डीएलएफ के शेयर केमूल्य में पिछले छ: महीनों की सबसे ज्यादा गिरावट देखी गई और शेयर का मू्ल्य अपने इश्यू मूल्य 522 रुपये से भी नीचे आ गया। लेकिन इस सेक्टर की समस्याऐं अभी खत्म नहीं हुई हैं। इंडिया बुल्स रियल एस्टेट को भी अपने 265 मिलियिन डॉलर के इश्यू को सिंगापुर एक्सचेंज से टालना पड़ा।

इस कंपनी के शेयर केमूल्य में भी दो फीसदी की गिरावट देखी गई और यह 405 रुपये पर आ गया। पहली बात यह है कि अधिकांश रियल एस्टेट कंपनियों के स्टॉक का मूल्य वास्तविक स्तर पर नहीं था। अब उनमें से अधिकांश का कारोबार उनकी अनुमानित परिसंपत्ति मूल्य के भी नीचे हो रहा है। उदाहरणस्वरुप डीएलएफ के एनएवी का अनुमानित मूल्य 650-700 रुपये लगाया गया था जबकि इंडिया बुल्स केएनएवी का अनुमानित मूल्य 700 से 750 रुपये आंका गया था।

जबकि इस समय इन स्टॉक का मूल्य 10 से 15 फीसदी डिस्काउंट से भी कम है। इन स्टॉक के मूल्यों में आगे भी गिरावट देखी जा सकेगी। इस गिरावट की वजह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही है और मंहगाई भी तेजी से बढ़ी है। इसलिये घरों की मांग में तेजी से कमी आई है। इससे यह भी प्रभाव पड़ा है कि होम लोन की संख्या में गिरावट आई है।

क्रेडिट स्यूशे की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार जिस तरह डेवलपर्स रिहायशी इलाकों के घरों में डिस्काउंट और कम कीमत की सुविधा उपलब्ध करा रहें है,उससे यह उम्मीद लगाई जा सकती है कि रियल एस्टेट की कीमतों में और भी सुधार होने की संभावना है। इसके अतिरिक्त निर्माण की कीमतें अभी खासी ऊंची है। परिचालन खर्चो के बढ़ने से शोभा डेवलपर्स के ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन में मार्च 2008 की तिमाही में 2.4 फीसदी की गिरावट देखी गई और यह 22.8 फीसदी के स्तर पर पहुंच गया।

डीएलएफ के मार्जिन में भी मार्च 2008 की तिमाही में पांच फीसदी की गिरावट देखी गई और यह 65 फीसदी केस्तर पर आ गया। जबकि कंपनी ने अपने मिड इनकम घरों की अच्छी खासी बिक्री की। विश्लेषकों की चिंता इन कंपनियों पर बाकी ऋणों को लेकर भी है। उदाहरणस्वरुप शोभा के ऊपर करीब 1,700 करोड़ का ऋण है और उसका ऋण अनुपात 1.7 है। इसके अतिरिक्त ये प्रॉपटी कंपनियां अपनी देनदारी पर ठीक से ध्यान भी नहीं दे रही है।

विश्लेषकों का मानना है कि डीएलएफ का ऋण भी मार्च 2008 की तिमाही तक बढ़कर 7,900 करोड़ तक पहुंच जाएगा। इंडिया बुल्स केपहले डीएलएफ ने भी सिंगापुर में अपनी लिस्टिंग में देरी की थी। विश्लेषकों का मानना है कि ओमेक्स भी तय कीमत पर अपने कांट्रेक्ट पूरे नही कर पा रहा है।

एनटीपीसी-विद्युतीकरण की राह

एनटीपीसी ने वित्तीय वर्ष 2008 कई नयी इकाइयों की स्थापना की और जिनमें से कई का तो परिचालन भी शुरु हो गया। इस वजह से कंपनी की कुल बिक्री में 13.7 फीसदी की बढ़त देखी गयी और यह 37,050 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। हालांकि यह पिछले वित्त्तीय वर्ष की 22 फीसदी टॉपलाइन ग्रोत से कम रहा।

हालांकि कि भारत के सबसे ज्यादा बिजली उत्पादक की परिचालन लागत में काफी कमी देखी गई। कंपनी का प्लांट लोड फैक्टर वित्त्तीय वर्ष 2007 के लोड फैक्टर से 92.24 फीसदी ज्यादा रहा। इसकेबावजूद हालांकि कि कंपनी का ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन 0.55 फीसदी गिरा और इस साल यह 30.3 फीसदी के स्तर पर आ गया। इसके लिए कंपनी को उच्च कर्मचारी लागत को शुक्रिया अदा करना चाहिए जो कि पिछले बार से 1.5 फीसदी ज्यादा रहा।

कंपनी को कुल लाभ में 370 करोड़ का फॉरेक्स लॉस हुआ। वित्त्तीय वर्ष 2008 की समाप्ति पर एनटीपीसी की क्षमता 29,394 मेगावॉट रही थी। कंपनी की आगे 2012 तक 22,430 मेगावॉट जोड़ने की योजना है। अपनी इकाईयों के लिए ईंधन की उपलब्धता केलिए एनटीपीसी कोयले की खानों का भी अधिग्रहण कर रही है। कंपनी की 2010 तक 23 लाख टन कोयले के खनन की योजना है।

जबकि कंपनी यह आंकड़ा 2012 तक 140 लाख टन तक पहुंचा देगी। कंपनी की गैस सप्लाई के कांट्रैक्ट में भी प्रवेश करने की योजना है। वित्त्तीय वर्ष 2009 में एनटीपीसी की 38,500 करोड़ की बिक्री होनी चाहिए जबकि कंपनी का कुल लाभ लगभग 8,500 करोड़ रुपये तक पहुंच जाना चाहिए।

हालांकि बढ़ती परिचालन लागत की वजह से कंपनी की मार्जिन में अगली कुछ तिमाहियों तक दबाव रहेगा। मौजूदा बाजार मूल्य 167 रुपये पर कंपनी के स्टॉक का कारोबार वित्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से 16.5 गुना के स्तर पर हो रहा है। इसका प्रदर्शन बाजार के माहौल के अनुसार होना चाहिए।

First Published - June 6, 2008 | 10:51 PM IST

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