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आरआईएल: मार्जिन का दबाव

Last Updated- December 05, 2022 | 11:02 PM IST

आरआईएल के ग्रॉस रिफाइनिंग मार्जिन (जीआरएम) में एक बार फिर सुधार देखने को मिल रहा है।


इसमें कोई शक नहीं कि अपनी मिश्रित रिफाइनरी, जबर्दस्त कार्यक्षमता और सावर कच्चे तेल की वजह से ही अन्य क्षेत्रीय बेंचमार्क की तुलना में आरआईएल के जीआरएम में शानदार बढ़त दिख रही है।


हालांकि इसकी रिफाइनरी में 15.5 डॉलर प्रति बैरल जीएमआर (जिसने वित्तीय वर्ष 2008 की चौथी तिमाही के कुल टर्नओवर में 77 फीसदी योगदान दिया था) होने के बावजूद पेट्रोकेमिकल्स डिवीजन के लिए न्यूनतम ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन (ओपीएम) में संतुलन नहीं बन पाया।


उल्लेखनीय है कि नेफ्था के उच्चतम मूल्यों द्वारा पेट्रोकेमिकल्स पर दबाव डाला जा रहा था। दूसरे शब्दों में कहें तो वित्तीय वर्ष 2008 की चौथी तिमाही में जीआरएम की मजबूत स्थिति होने के  बावजूद आरआईएल पेट्रोकेमिकल्स डिवीजन में कच्चे माल पर दबाव को संतुलित कर पाने में नाकाम रही।


यही वजह है कि शुध्द टर्नओवर में 36 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 37,286 करोड़ रुपये की बढ़त के बावजूद 1.33 लाख करोड़ रुपये के राजस्व वाली आरआईएल के ओपीएम में मार्च 2008 तिमाही में गिरावट दर्ज की गई।बहरहाल, मार्च 2008 तिमाही में कंपनी ने करीब 81 लाख टन कच्चे तेल का उत्पादन किया था। पिछले साल प्राप्त हुए 13 डॉलर प्रति बैरल की तुलना में वित्तीय वर्ष 2008 में 15.5 फीसदी प्रति बैरल पर जीएमआर कहीं अधिक बेहतर है।


यह मार्जिन क्षेत्रीय बेंचमार्क के मुकाबले भी बहुत अधिक है। उदाहरण के लिए क्षेत्रीय बेंचमार्क सिंगापुर में मार्जिन 6.9 डॉलर प्रति बैरल पर था। इसके अलावा, वैश्विक बाजार में पेट्रोलियम उत्पादों जैसे गैसोलिन और एविएशन टर्बाइन ईंधन की कीमतों में मजबूती बने रहने के कारण भी आरआईएल को काफी मदद मिली थी।


यही वजह है कि वित्तीय वर्ष 2008 की चौथी तिमाही में रिफाइनिंग मुनाफे में सालाना 25 फीसदी के साथ 2,839 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी दर्ज की गई। उम्मीद के अनुरूप ही कंपनी का कुल शुध्द मुनाफा सालाना 24 फीसदी की बढ़त के साथ 3,912 करोड़ रुपये पर पहुंच गया।


हालांकि, वित्तीय वर्ष 2008 की चौथी तिमाही में नेफ्था की भूमिका अहम रही। पोलिमर का उत्पादन अधिक होने की वजह से भी (एक आंकड़े के मुताबिक करीब 7 फीसदी) कंपनी का मुनाफा 6.2 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 1466 करोड़ रुपये पहुंच गया।


वित्तीय वर्ष 2009 के लिए अनुमानित है कि कंपनी 2642 रुपये पर 24 गुना अधिक कारोबार करेगी। इसमें कोई शक नहीं कि कच्चे तेल के  अन्वेषण और खुदरा बाजार में अपनी जगह मजबूत करने के लिए और तेजी से विकास करने के लिए कंपनी को शानदार प्रदर्शन करना होगा।


एक्सिस बैंक : धीमी पड़ सकती है गति


मार्च 2008 में समाप्त हुई तिमाही में एक्सिस बैंक का शुध्द ब्याज मार्जिन पहले की तरह ही सपाट रहा। अगर दिसंबर तिमाही की बात करें तो बैंक  के फंडों का मूल्य अपेक्षाकृत कम रहा।


ऐसा इसलिए भी रहा क्योंकि बैंक ने सिंतबर 2007 की तिमाही में करीब 4,534 करोड़ रुपये की उगाही की थी और यही वजह है कि बैंक को करीब 25 से 30 आधार अंक का लाभ भी हुआ था। कुल मिलाकर कहें तो मार्च की तिमाही में बैंक का प्रदर्शन सराहनीय रहा।


बहरहाल, मार्क-टू-मार्केट घाटे के लिए बनाए गए प्रावधानों, विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव घाटे की चपेट में आए ग्राहकों और 72 करोड़ रुपये पर न्यूनतम प्रत्याशित के बावजूद बैंक का शुध्द मुनाफा 71 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 361 करोड़ रुपये था। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि पिछले सोमवार को इसके शेयर में 7 फीसदी का बढ़त देखने को मिली और शेयर 881 रुपये पर बंद हुआ था।


इसमें कोई शक नहीं कि बैंक का पिछला कार्य निष्पादन बेमिसाल था। बीते पांच सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो बैंक द्वारा ऋण देने संबंधी कारोबार में संयोजित रूप से 50 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। जबकि बैंक की कमाई में संयोजित रूप से 56 फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिली।


हालांकि बैंक की स्थिति मजबूत होने के साथ ही कुछ क्षेत्रों में कमी देखने को मिल सकती है। मसलन बैंक के लोन वृध्दि में कमी आ सकती है। खुदरा के्रडिट बाजार में पहले से ही धीमी गति बनी हुई है। जबकि इक्विटी बाजार में उतार-चढ़ाव जारी है। अन्य शब्दों में कहें तो बैंक को अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए रिटेल शुल्क में वृध्दि करने के अलावा भी कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगे।


बहरहाल, डेरिवेटिव की वॉल्यूम में कमी आने से विदेशी मुद्रा द्वारा राजस्व उगाही में मंदड़िया आ सकती है। वित्तीय वर्ष 2009 के बैंक द्वारा अनुमानित किया गया है कि 881 रुपये पर कमाई के लिए 3 गुना अधिक कारोबार किया जाएगा।

First Published - April 22, 2008 | 11:18 PM IST

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