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आरआईएल-तेज चाल की तैयारी

Last Updated- December 07, 2022 | 6:49 PM IST

रिलायंस इंड्रस्टीज की योजना कृष्णा-गोदावरी तेल बेसिन की अपनी भागेदारी को अपने पूर्ण स्वामित्व वाली चार अनुषंगी कंपनियों को सौपने की योजना है।


यह खराब कदम नहीं है और इससे रिलायंस को अपने संसाधन बढ़ाने में मदद मिलेगी चाहे वह इक्विटी के रूप में हो या डेट के रूप में। इससे उन्हें निवेशक ढूंढने में भी मदद मिलेगी। आखिरकार तेल का शोधन और खनन एक महंगा कारोबार है।

छोटी कंपनियों के जरिए परिचालन करना रिलायंस जैसी बड़ी कंपनी के जरिए परिचालन करने से कहीं ज्यादा आसान हो सकता है। इसके अलावा इसमें डाइल्यूशन को भी नहीं पसंद किया जाएगा। इसके अलावा गुणवत्त्ता निर्माण भी संभव है।

उदाहरणस्वरुप रिलायंस अपनी अनुषंगी कंपनी की हिस्सेदारी विदेशों में तेल क्षेत्र के लिए भी इस्तेमाल कर सकती है। अल्पसंख्यक शेयरधारकों को भी परेशान नहीं होना चाहिए क्योंकि किसी भी अनुषंगी कंपनी की हिस्सेदारी में कमी से शेयरधारकों के वैल्यू अनलॉक करने में मदद मिलनी चाहिए।

इस महीने की शुरुआत में 1.3 लाख करोड़ की रिलायंस इंडस्ट्रीज ने कृष्णा गोदावरी डी-6 बेसिन में आठ नईं खोजे कीं, इसमें नाइको की हिस्सेदारी 10 फीसदी है और पुर्नसंरचना के बाद भी कंपनी अपनी हिस्सेदारी बनाए रखेगी।  प्रारंभिक उत्पादन 400 लाख स्टैंडर्ड क्युबिक टन का होने का अनुमान है और कंपनी पहले ही इसमें 3.28 अरब डॉलर का निवेश कर चुकी है।

इसके अतिरिक्त सिंगापुर से ग्रास रिफाइनिंग मार्जिन में कमी आई और यह तीन डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर रहा और इसका प्रभाव आरआईएल के लाभ पर भी पड़ना चाहिए। कंपनी अतिरिक्त क्षमता जोड़ने का भी प्रयास कर रही है और 2008 की समाप्ति तक कंपनी 14 लाख बैरल प्रति दिन की क्षमता जोड़ लेगी। यह 2009 में बढ़कर 17 लाख बैरल प्रति दिन तक पहुंच सकता है।

रिलायंस की जामनगर रिफायनरी एशिया की सबसे बड़ी रिफायनरी है और कंपनी अपनी रिफायनरी के विस्तार का कार्य भी कर रही है। साल 2009 तक इस विस्तार कार्य के पूरा हो जाने की संभावना है। हालांकि इससे पहले की तिमाही में रिलायंस इंड्रस्टीज का प्रदर्शन खासा आकर्षक नहीं रहा और उसके प्रॉफिट मार्जिन में मामूली वृध्दि ही दर्ज की गई थी जबकि कंपनी का अधिकतर कारोबार निर्यात पर आधारित है।

विश्लेषकों का मानना है कि केमिकल कारोबार में भी वैश्विक मांग में कमी आने के चलते लाभ में दबाव में रहने की संभावना है। मौजूदा बाजार मूल्य 2180 रुपए पर कंपनी के शेयर का कारोबार वित्त्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से 22 गुना के स्तर पर हो रहा है।

टाइटन-चमक बरकरार

सोने की कीमतों में पिछले महीने के दौरान 11 फीसदी की गिरावट आई है जबकि मार्च 2008 की अपनी सर्वाधिक ऊंचाई 1011 डॉलर प्रति औंस से 18.5 फीसदी की गिरावट आई है। हालांकि 824 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर यह सालाना आधार पर 30 फीसदी ज्यादा है।

सोने की ऊंची कीमतों से टाइटन को जून की तिमाही में नुकसान हुआ लेकिन 2,997 करोड़ की कंपनी का फेस्टिव सीजन बेहतर रहना चाहिए। जून 2008 तक तीन महीनों में बेंगलुरु की इस कंपनी का शुध्द राजस्व 23 फीसदी बढ़कर 831 करोड़ रुपए रहा। हालांकि अच्छे टॉपलाइन ग्रोथ की वजह ज्वैलरी का ज्यादा वॉल्यूम न रहकर सोनें की ऊंची कीमत रही।

इससे कंपनी को अपना लाभ बरकरार रखने में मदद मिलनी चाहिए। कंपनी का घड़ियों से प्राप्त राजस्व दो फीसदी ज्यादा रहा जबकि पिछले कुछ सालों में इसमें 18 से 20 फीसदी की वृध्दि देखी गई थी। हालांकि हाल में ही युवाओं पर केंद्रित घड़ियों की लांचिंग से कंपनी को अपनी बिक्री को सुधारनें में मदद मिलनी चाहिए। इसके अतिरिक्त ऊंची कीमत वाले उत्पादों पर जोर देने की वजह से कंपनी का लाभ बरकरार रहना चाहिए।

अन्य उत्पादों से होने वाली आय जैसे चश्में और इंजीनियरिंग होने वाली आय से कंपनी को भविष्य में फायदा पहुंच सकता है। ज्वैलरी सेगमेंट से प्राप्त ऑपरेटिंग मार्जिन 0.5 फीसदी बढ़कर 5.8 फीसदी रहा। साथ ही विज्ञापन पर कम खर्चे और कर्मचारियों पर कम खर्च से भी कंपनी का ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन 1.3 फीसदी बढ़कर 6.9 फीसदी के स्तर पर रहा।

इसके अलावा कंपनी फास्टट्रैक के नाम से युवाओं की वॉच और चश्मों की भी बिक्री भी करती हैं। चूंकि युवाओं की खरीद महंगाई से करीब अप्रभावित ही रहती है। इसलिए कंपनी को अधिक नुकसान नहीं उठाना पड़ा। कंपनी का यह ब्रांड ऊंचे मार्जिन वाला है।

टाइटन को इस वित्त्तीय वर्ष में 4,070 करोड़ के राजस्व के साथ खत्म करने की संभावना है और कंपनी को 190 करोड़ का शुध्द लाभ मिल सकता है। मौजूदा बाजार मूल्य 1,249 रुपए पर कंपनी के स्टॉक का कारोबार वित्त्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से 29 गुना के स्तर पर हो रहा है।

First Published - August 27, 2008 | 10:10 PM IST

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