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सख्त होंगे नियम शेयर ब्रोकरों के लिए

Last Updated- December 05, 2022 | 6:58 PM IST

ब्रोकिंग कंपनियों और डिपोजिटरी पार्टिसिपेंटों (डीपी) पर जल्दी ही नकेल कसी जाएगी क्योंकि सरकार इसी वित्तीय वर्ष (2009) में रिपोर्टिंग प्रावधानों को और कठोर बनाने के मूड में है।


दरअसल सरकार उन पर लगाम लगाना चाहती है जो आसानी से काले धन को वैध बनाने की जुगत में लगे हैं।फिलहाल, फाइनैंशियल इंटेलिजेंस यूनिट-इंडिया (एफआईयू-आईएनडी) यह योजना बनाने में जुटी है कि जो कोई भी एक महीने में दस लाख रुपये से अधिक का लेन-देन करता है, उन लोगों को लेन-देन संबंधी सूचना व विवरण देना अनिवार्य होगा। इस तरह के प्रावधानों को खास तौर से ब्रोकिंग कंपनियों पर लागू किया जाएगा।


एक आंकड़े के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2008 में सिर्फ व्यावसायिक बैंकों के जरिए मिलने वाली कैश ट्रांजेक्शन रिपोर्ट (सीटीआर) 22 लाख से बढ़ कर लगभग 60 लाख तक पहुंच गई थी। इसमें कोई शक नहीं कि एजेंसी इसी को ध्यान में रखते हुए रिपोर्टिंग प्रावधानों को और कठोर बनाने की ओर अग्रसर है। गौर करने वाली बात है कि पिछले साल भी वित्तीय क्षेत्रों की विभिन्न कंपनियों द्वारा एजेंसी को 2,500 से भी अधिक संदिग्ध लेन-देन रिपोर्ट (एसटीआर) प्राप्त हुई थी।


जबकि वित्तीय वर्ष 2007 में एसटीआर से जुड़े 817 मामले प्रकाश में आए थे।एफआईयू-आईएनडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि काले धन को वैध बनाने पर रोकथाम लगाने संबंधी दिशा-निर्देशों को जल्द ही लाने के लिए एजेंसी द्वारा एक योजना तैयार की जा रही है। एजेंसी खास तौर से डिपोजिटरी पार्टिसिपेंटों (डीपी) और ब्रोकिंग कंपनियों के लिए दिशा-निर्देश जारी करेगी।


एजेंसी से जुड़े एक अधिकारी ने बताया,”वित्तीय संबंधी लेन-देन में तेजी से इजाफा होने के कारण यह आवश्यक हो गया है कि सभी खातों को खासकर बड़े लेन-देन के बारे में उचित जानकारी रखी जाए। एक महीने में दस लाख रुपये से अधिक का लेन-देन संबंधी मामला काफी तेजी से बढ़ा है।”


हालांकि सूत्रों ने बताया कि सीटीआर से जुड़े ज्यादातर मामले ब्रोकिंग कंपनियों की बजाए मुख्य रूप से बैंक से आते हैं। उल्लेखनीय है कि काले धन को वैध बनाने संबंधी प्रतिरोध कानून 2002 (पीएमएलए) को 1 जुलाई, 2005 को लागू किया गया था। सरकार द्वारा एफआईयू-आईएनडी नामक एक एजेंसी की स्थापना की गई थी। यह एजेंसी पीएमएलए के अंतर्गत बडे अौर संदिग्ध लेन-देन संबंधी मामलों को दर्ज करती है और उसकी जांच-पड़ताल करती है।


इस एजेंसी का काम संदिग्ध लेन-देन से जुड़ी सूचनाओं को संबंध्द खुफिया एजेंसियों एवं अन्य एजेंसियों को भेजना होता है।इसके अलावा, एफआईयू-आईएनडी को यह भी अधिकार है कि वह संदिग्ध वित्तीय लेन-देन के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए अन्य देशों से भी सूचनाओं का साझा करे।एफआईयू-आईएनडी के वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, वाणिज्यिक बैंकों, निजी बैंकों, सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों और विदेशी बैंकों द्वारा दाखिल किए गए 22 लाख सीटीआर में वे सब क्रमश: 11.4 लाख, 9.21 लाख और 66,000 सीटीआर के लिए जिम्मेदार थे।


एफआईयू-आईएनडी के एक अधिकारी ने बताया कि पिछले एक साल में बैंकों द्वारा दाखिल किए जाने वाले सीटीआर दोगुने से भी अधिक हो गया है। एफआईयू-आईएनडी के अधिकारी ने बताया, ”विभिन्न क्षेत्रों में आए दिन सीटीआर बढ़ने की वजह से अब बैंक पीएमएलए को लेकर कुछ ज्यादा ही सचेत हो गए हैं। यही वजह है कि हम रिपोर्ट प्रावधानों को कठोर करने को बढ़ावा दे रहे हैं।”


एसटीआर में करीब 56 फीसदी आंकड़े वाणिज्यिक बैंकों से, 36 फीसदी वित्तीय संस्थाओं और 11 फीसदी विभिन्न वित्तीय संस्थानों से आते हैं। गौरतलब है कि एसटीआर उस वक्त बढ़ता है, जब खातों की गतिविधियों, लेन-देन के  मूल्यों और ज्यादातर बैंक खाते संदेह के घेरे में आ जाते हैं।


उद्योग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि पिछले एक साल में ब्रोकिंग कंपनियों की एसटीआर में जबरदस्त इजाफा हुआ है। एक ब्रोकर ने बताया,”पहले के मुकाबले खातों की वृध्दि हुई है और यही वहज है कि एसटीआर की संख्याओं में भी इजाफा हुआ है।”

First Published - April 2, 2008 | 10:58 PM IST

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