बाजार नियामक सेबी की तरफ से कुल खर्च अनुपात (total expense ratio-TER) में प्रस्तावित बदलाव टलने के कारण चार लिस्टेड एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (AMC) के शेयरों में शुक्रवार को 1 फीसदी से लेकर 15 फीसदी तक की उछाल दर्ज हुई।
बाजार नियामक ने मई में चर्चा पत्र जारी किया था, जिसमें ब्रोकरेज, STT, GST आदि को कुल खर्च अनुपात के दायरे में लाकर खर्च की सीमा तय करने का प्रस्ताव था। इस कदम से 43 लाख करोड़ रुपये के म्युचुअल फंड उद्योग के लाभ पर चोट पड़ती।
बुधवार को सेबी के निदेशक मंडल ने इस प्रस्ताव पर चर्चा की, लेकिन उद्योग के प्रतिनिधियों के ताजा आंकड़ों को देखने के बाद इस पर अंतिम फैसला टाल दिया। उद्योग की कुछ कंपनियों ने खास तौर से आर्बिट्रेज फंडों की व्यवहार्यता को लेकर चुनौतियों का हवाला दिया है।
28 जून की सेबी की बोर्ड बैठक के बाद चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच ने कहा कि बोर्ड संशोधित आंकड़ों के हिसाब से पड़ने वाले असर पर ध्यान दे रहा है और कुल खर्च अनुपात पर नया चर्चा पत्र जारी करेगा।
बुच ने कहा, आंकड़ों के आधार पर बोर्ड ने नया चर्चा पत्र जारी करने की सिफारिश की है। नया प्रस्ताव देखकर उद्योग काफी खुश होगा।
सूत्रों ने कहा कि नया प्रस्ताव सेबी अगले कुछ महीनों में पेश करेगा। अभी म्युचुअल फंड योजना के आकार के मुताबिक शुल्क वसूलते हैं। नई योजनाएं ज्यादा शुल्क लेती हैं क्योंकि उनकी परिसंपत्ति का आकार छोटा होता है।
सेबी की शुरुआती योजना खर्च की सीमा को फंड हाउस की तरफ से प्रबंधित कुल परिसंपत्तियों से जोड़ने की थी। ऐसे परिदृश्य में बड़ी AMC बहुत ज्यादा शुल्क वसूलने की स्थिति में नहीं होती, जैसा कि वह नई पेशकश पर अभी करती है।
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ब्रोकरेज का मानना है कि अंतिम नियमन पर अनिश्चितता को देखते हुए नियामकीय रुख नरम होने की संभावना है।
विश्लेषकों का मानना है कि आय की रफ्तार पर दबाव रहेगा, जिससे AMC शेयरों की दोबारा रेटिंग हो सकती है।
नियामकीय सख्ती से AMC के शेयरों असर पड़ा है जबकि इक्विटी योजनाओं में रिकॉर्ड निवेश हुआ है और परिसंपत्तियों में बढ़त की रफ्तार ठीक रही है।
कोटक इंस्टिट्यूशनल इक्विटीज ने एएमसी पर अपनी रिपोर्ट में कहा है, पिछले साल के सर्वोच्च स्तर से AMC शेयर 10 से 20 फीसदी नीचे हैं, वहीं इक्विटी AUM पिछले 6 महीने में 10 फीसदी बढ़ा है।
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फर्म ने कहा है कि AMC राजस्व प्रतिफल में लगातार गिरावट देख रहा है, हालांकि इसकी रफ्तार पहले के अनुमान के मुकाबले धीमी है।
सेबी की बोर्ड बैठक से पहले म्युचुअल फंड एसोसिएशन और वितरक निकायों ने सेबी के सामने अपनी मांग रखी थी और लाभ व उद्योग की वृद्धि पर पड़ने वाले असर से वाकिफ कराया था।