बाजार नियामक सेबी ने शुक्रवार को ट्रेडिंग प्लान में सुधार का प्रस्ताव रखा ताकि इनसाइडर को अपने शेयरों का सौदा ज्यादा लचीले रुख के साथ करने की अनुमति मिल सके। नियामक ने ब्लैक-आउट अवधि को समाप्त करने, कूल-ऑफ अवधि में कमी लाने और आसान कीमत सीमा का प्रस्ताव किया है।
कीमत पर असर डालने वाली अप्रकाशित सूचना तक पहुंच रखने वाले वरिष्ठ प्रबंधन और प्रमुख प्रबंधकीय अधिकारियों को इनसाइडर माना जाता है और ट्रेड के लिए उनके पास दूसरों से पहले कुछ समय होता है।
इन इनसाइडरों को ट्रेडिंग प्लान बताना होता है, जिसमें शेयर कीमत, रकम और लेनदेन की तारीख पहले ही बतानी होती है। साल 2015 में ट्रेडिंग प्लान लागू करने के बाद से डेटा और मार्केट फीडबैक बताता है कि ट्रेडिंग प्लान से संबंधित मौजूदा नियम काफी मुश्किल भरे हैं, ऐसे में ट्रेडिंग प्लान ज्यादा लोकप्रिय नहीं हैं।
सेबी ने डिस्क्लोजर और ट्रेडिंग प्लान के क्रियान्वयन के बीच न्यूनतम कूल-ऑफ अवधि छह महीने से घटाकर चार महीने करने का प्रस्ताव किया है। बाजार नियामक ने कवरेज अवधि 12 महीने से घटाकर दो महीने करने, ब्लैक-आउट अवधि समाप्त करने और खरीद या बिक्री के लिए 20 फीसदी कीमत दायरा रखने की सिफारिश की है।
सेबी ने कहा, ऐसी कीमत सीमा ट्रेडिंग प्लान जमा कराए जाने की तारीख को रहे बंद भाव के 20 फीसदी ऊपर या 20 फीसदी नीचे होनी चाहिए। अगर प्रतिभूति की कीमत क्रियान्वयन के दौरान इनसाइडर की तरफ से तय कीमत सीमा से बाहर है तो ट्रेड नहीं होगा।
अगर कोई कीमत सीमा नहीं चुना गया है तो मौजूदा कीमत के बाद भी ट्रेड होगा। अहम प्रबंधकीय अधिकारियों के वेतन-भत्ते का प्रमुख हिस्सो में एम्पलॉयी स्टॉक ऑप्शन शामिल होता है, ऐसे में उद्योग के विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव वरिष्ठ प्रबंधन के लिए काफी राहत लाएगा।