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म्युचुअल फंडों की लागत घटाएगा सेबी, निवेशकों को होगा फायदा

Last Updated- May 19, 2023 | 10:01 PM IST
म्युचुअल फंड पर कर्ज तभी लें जब ब्याज से ज्यादा रिटर्न मिले, Loan against MFs: Opt if portfolio growth set to outpace loan rate

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने म्युचुअल फंडों के टोटल एक्सपेंस रे​शियो (टीईआर) में बदलाव लाने की रूपरेखा साझा की है और इससे निवेशकों द्वारा चुकाए जाने वाले शुल्कों में कमी आ सकती है। गुरुवार को जारी एक परामर्श पत्र में, नियामक ने ऐसा नया टीईआर ढांचा बनाने का प्रस्ताव रखा है जिसमें कुल खर्च पर सीमा हरेक परिसंप​त्ति वर्ग में म्युचुअल फंडों की कुल परिसंप​त्तियों से जुड़ी होगी, जबकि मौजूदा व्यवस्था में अ​धिकतम खर्च किसी योजना में प्रबं​धित होने वाली कुल परिसंप​त्तियों पर आधारित है।

इसके अलावा, नियामक ने लेनदेन लागत, ब्रोकरेज और जीएसटी जैसे शुल्कों को टीईआर में शामिल करने की योजना बनाई है। परामर्श पत्र में कहा गया है, ‘ऐसा पता चला है कि ब्रोकरेज और लेनदेन लागत से जुड़ी कुछ योजनाओं का खर्च निर्धारित अ​धिकतम टीईआर सीमा से भी ज्यादा है। इसकी वजह से निवेशक टीईआर सीमा के मुकाबले दोगुने से ज्यादा चुका रहे हैं।

अब प्रस्ताव रखा गया है कि ब्रोकरेज और लेनदेन खर्च को टीईआर सीमा में शामिल किया जा सकेगा।’ इसके परिणामस्वरूप, जहां अ​धिकतम टीईआर सीमा में इ​​क्विटी योजनाओं के लिए कुछ बढ़ाने का प्रस्ताव है और निवेशकों द्वारा चुकाया जाने वाला कुल शुल्क घट जाएगा, क्योंकि टीईआर से ज्यादा कोई शुल्क नहीं वसूला जाएगा। नियामक ने इ​क्विटी योजनाओं के लिए टीईआर सीमा 2.55 प्रतिशत पर निर्धारित की है, जबकि मौजूदा सीमा 2.25 प्रतिशत है। वहीं डेट के लिए अ​धिकतम टीईआर स्लैब 2 प्रतिशत से घटाकर 1.2 प्रतिशत किया गया है।

नियामक के अनुसार, नई इ​क्विटी आधारित योजनाओं के निवेशकों द्वारा चुकाया जाने वाला कुल शुल्क मौजूदा समय में औसत तौर पर 2.78 प्रतिशत है, जो अतिरिक्त शुल्कों की वजह से 2.25 प्रतिशत की निर्धारित सीमा से ज्यादा है। परामर्श पत्र में खुलासा किया गया है कि नया खर्च ढांचा निवेशकों द्वारा चुकाए जाने वाले शुल्कों में 4.55 प्रतिशत तक की कमी लाने में मददगार हो सकता है। वित्त वर्ष 2022 में, एमएफ उद्योग ने सक्रिय योजनाओं के प्रबंधन के लिए 30,806 करोड़ रुपये का कुल शुल्क प्राप्त किया था और प्रस्तावित मॉडल पर यदि अमल होता है तो यह आंकड़ा घटकर 29,404 करोड़ रुपये बैठता है।

नियामक ने स्वीकार किया है कि अतिरिक्त खर्च (खासकर लेनदेन लागत और ब्रोकरेज शुल्क) को शामिल किए जाने की वजह से फंडों पर बोझ पड़ता है, लेकिन उसका कहना है कि नया कदम यूनिटधारकों से वसूले जाने वाले शुल्कों में जरूरी पारद​र्शिता लाने के संदर्भ में बेहद महत्वपूर्ण है। नियामक ने फंडों को अच्छे प्रदर्शन के मामले में ज्यादा शुल्क वसूलने का भी प्रस्ताव रखा है। सेबी ने कहा है कि यदि किसी योजना का प्रदर्शन सांकेतिक प्रतिफल से ज्यादा अच्छा रहता है तो फंडों को ज्यादा प्रबंधन शुल्क वसूलने की अनुमति होगी।

First Published - May 19, 2023 | 10:01 PM IST

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