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सेंसेक्स का PE रेश्यो घटा, 10 साल के मूविंग एवरेज मूल्यांकन से 24% कम पर कर रहा ट्रेड; एक्सपर्ट ने दी ये चेतावनी

अपने मौजूदा स्तर पर सूचकांक अब अपने 10 वर्ष के मूविंग एवरेज 23.6 गुना पीई से करीब 14 फीसदी कम पर कारोबार कर रहा है।

Last Updated- March 03, 2025 | 10:25 AM IST
BSE

शेयर बाजार में लगातार बिकवाली से शेयरों का मूल्यांकन कई साल के निचले स्तर पर आ गया है। कोविड-19 के समय हुई बिकवाली को छोड़ दें तो बंबई स्टॉक एक्सचेंज के सेंसेक्स का मूल्यांकन अनुपात 8 साल के निचले स्तर पर आ गया है। कोविड के समय सूचकांक में भारी गिरावट आई थी और उसके बाद इसने फर्राटा भरा था।

बेंचमार्क सूचकांक बीते शुक्रवार को 20.4 गुना के प्राइस टू अर्निंग (पी/ई) म​ल्टीपल के साथ बंद हुआ, जो मई 2020 के बाद से इसका सबसे निचला स्तर है। उस समय महामारी की आशंका और अर्थव्यवस्था एवं कंपनियों की आय पर इसके नकारात्मक प्रभाव के कारण मूल्यांकन 19.5 गुना तक गिर गया था। हालांकि मार्च से मई 2020 के दौरान महामारी के कारण हुई बिकवाली के समय को छोड़ दें तो सूचकांक का वर्तमान मूल्यांकन जुलाई 2016 के बाद सबसे कम है।

अपने मौजूदा स्तर पर सूचकांक अब अपने 10 वर्ष के मूविंग एवरेज 23.6 गुना पीई से करीब 14 फीसदी कम पर कारोबार कर रहा है। मूल्यांकन में यह कमी 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद सबसे अ​धिक है। नवंबर 2008 में यह 34 फीसदी तक घट गया था।

2000 में डॉटकॉम बुलबुला फटने पर भारतीय शेयर बाजार में बिकवाली के बाद दीर्घकालिक औसत मूल्यांकन में इसी तरह दो अंक की कमी देखी गई थी। उस समय सूचकांक अक्टूबर 2000 और सितंबर 2003 के बीच लगभग 3 वर्षों तक अपने 10-वर्ष के औसत मूल्यांकन से कम पर कारोबार कर रहा था।

इसकी तुलना में पिछले 25 साल में सूचकांक अपने 10 साल के मूविंग एवरेज मूल्यांकन के 6 फीसदी प्रीमियम पर कारोबार कर रहा था। बीते 10 साल का मूविंग एवरेज मूल्यांकन बाजार के निचले स्तर का अच्छा अनुमान देता रहा है और सूचकांक में अक्सर इस स्तर के बाद उछाल देखी गई है जैसे 2006, 2012, 2013, 2016 एवं 2020 और 2022 में हुई थी।

ऐसा लगता है कि यह दीर्घकालिक रूझान अब पीछे छूट गया है और बाजार लंबी अव​धि के अपने औसत मूल्यांकन से काफी कम कीमत पर कारोबार कर रहा है। यह निवेशकों, विशेष रूप से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के बीच कमजोर आय की आशंका के बढ़े हुए स्तर को दर्शाता है। निवेशकों में इतनी निराशा पिछली बार 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान देखी गई थी।

हालांकि 2008 में वै​​श्विक वित्तीय संकट के दौरान सूचकांक का मूल्यांकन 10 साल के औसत स्तर से नीचे आ गया था, जो शेयर निवेशकों के बीच अत्यधिक निराशा और डर को दर्शाता है।

2008 में वै​श्विक वित्तीय संकट के समय शेयरों में भारी बिकवाली हुई थी। दिसंबर 2007 से नवंबर 2008 के बीच सेंसेक्स 55.2 फीसदी लुढ़क गया था। इसी दौरान पीई अनुपात दिसंबर 2007 के 27 गुना से आधे से भी ज्यादा घटकर नवंबर 2008 में 11.9 गुना रह गया था।

सितंबर 2024 में बाजार के सर्वकालिक उच्चतम स्तर पर पहुंचने के बाद से सेंसेक्स के मूल्यांकन में तेज गिरावट देश में 25 साल तक इ​क्विटी मूल्यांकन में लगातार वृद्धि का चक्र खत्म होने का भी संकेत है।  इसे इ​क्विटी का पुनर्मूल्यांकन भी कहा जाता है। 

भारतीय इक्विटी के इस पुनर्मूल्यांकन ने सूचकांक के पीई को 2000 के दशक के प्रारंभ में लगभग 16 गुना से मनमोहन सिंह सरकार के दौरान लगभग 18 गुना तक और महामारी के बाद के युग में लगभग 25 गुना तक पहुंचा दिया। पुनर्मूंल्यांकन में तेजी मुख्य रूप से 2000 के दशक की शुरुआत में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के भारी निवेश से हुआ। इसके बाद घरेलू खुदरा निवेशकों के दम पर भी इसमें तेजी आई। अब विदेशी निवेशक शेयरों की बिकवाली कर रहे हैं जिससे मूल्यांकन घट रहा है।

विश्लेषक इसका कारण शेयरों की कीमत और भारत में आय वृद्धि के बारे में निवेशकों के निराशाजनक दृष्टिकोण की समरूपता को मानते हैं।

सिस्टमैटिक्स इंस्टीट्यूशनल इ​क्विटी में शोध और इ​क्विटी स्ट्रैटजी के सह-प्रमुख धनंजय सिन्हा ने कहा, ‘विछले 5पांच साल में कंपनियों की कमाई सालाना करीब 20 फीसदी की दर से बढ़ी है और इससे शेयर के भाव भी चढ़े। मांग में नरमी और वै​श्विक व्यापार में अनि​श्चितता को देखते हुए वित्त वर्ष 2025 में सेंसेक्स कंपनियों की आय महज 4 फीसदी बढ़ती दिख रही है और वित्त वर्ष 2026 में यह 6 से 7 फीसदी बढ़ने का अनुमान है।’ उनके अनुसार भारत में वृद्धि नरम पड़ने से विदेशी निवेशक भारत से निवेश निकालकर अपेक्षाकृत कम मूल्यांकन मगर तेज वृद्धि वाले चीन और अमेरिका जैसे देशों में लगा रहे हैं।

मोतीलाल ओसवाल सिक्यो. ने हालिया समीक्षा में कहा था, ‘आय वृद्धि नरम पड़ने से बाजार में गिरावट आई है। निफ्टी 50 का कर बाद लाभ वित्त वर्ष 2025 के पहले 9 महीनों में महज 4 फीसदी बढ़ा है जबकि वित्त वर्ष 2020-24 की अवधि में यह 20 फीसदी सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़ा था।’

First Published - March 2, 2025 | 10:32 PM IST

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