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तेल की ऊंची कीमतें बाजार के लिए हमेशा ही खराब नहीं होतीं

वित्त वर्ष 2012-13 और वित्त वर्ष 14 में जब तेल की कीमतें क्रमशः 110 डॉलर प्रति बैरल और 108 डॉलर प्रति बैरल के औसत पर थीं, तब निफ्टी 50 ने 7.3% और 18% की बढ़त दर्ज की थी।

Last Updated- June 23, 2025 | 10:11 PM IST
Stock Market

तेल की ऊंची कीमतें भारत में हमेशा बाजार के मनोबल पर चोट नहीं पहुंचाती। यह बात आंकड़ों से जाहिर होती है। भू-राजनीतिक तनाव के बीच 30 मई को 62.78 डॉलर के निचले स्तर से ब्रेंट क्रूड की कीमतें 23 फीसदी बढ़कर करीब 77 डॉलर प्रति बैरल (बीबीएल) के उच्च स्तर पर पहुंच गई हैं। इसके बावजूद उतारचढ़ाव के बीच बीएसई सेंसेक्स इस अवधि में 0.6 फीसदी की बढ़त हासिल करने में कामयाब रहा है।

वित्त वर्ष 2012-13 और वित्त वर्ष 14 में जब तेल की कीमतें क्रमशः 110 डॉलर प्रति बैरल और 108 डॉलर प्रति बैरल के औसत पर थीं, तब निफ्टी 50 ने 7.3 फीसदी और 18 फीसदी की बढ़त दर्ज की थी। भारत की अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 2013 में 5.5 फीसदी और वित्त वर्ष 2014 में 6.4 फीसदी की दर से बढ़ी।

इक्विनॉमिक्स रिसर्च के संस्थापक और शोध प्रमुख जी चोकालिंगम ने कहा, 2007 से 2014 तक कच्चे तेल की कीमतें तीन अंकों में होना आम बात थी। 2014 से चीजें बदल गईं क्योंकि अमेरिका ने उत्पादन बढ़ा दिया और शेल गैस बाजार में आ गई।

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चोकालिंगम ने कहा, कुछ संरचनात्मक बदलाव हुए। 2013-14 के बाद कच्चे तेल के अलावा सौर और पवन ऊर्जा जैसे वैकल्पिक स्रोत मुख्य धारा में आ गए। उस समय तेल और शेयर बाजारों ने इन दोनों स्रोतों की बड़ी हिस्सेदारी को कमतर आंकना शुरू कर दिया था। तेल की ऊंची कीमत बाजार के लिए हमेशा ही बुरी नहीं होती जब तक कि यह बहुत तेजी से और बहुत जल्दी न बढ़ें और लंबे समय तक ऊंची न बनी रहें।

वित्त वर्ष 2022 में निफ्टी 50 इंडेक्स में करीब 19 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और कच्चे तेल की कीमतें औसतन 81 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गईं जो वित्त वर्ष 2021 से 81 फीसदी ज्यादा थीं। जब वित्त वर्ष 2023 में कच्चे तेल की कीमतें 19 फीसदी बढ़कर औसतन 96 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गईं, तब भी निफ्टी 50 इंडेक्स में मामूली 0.6 फीसदी की ही गिरावट आई।

कोटक ऑल्टरनेट ऐसेट मैनेजर्स ग्लोबल के मुख्य निवेश रणनीतिकार जितेन्द्र गोहिल ने कहा, शेयर बाजार ईरान-इजरायल संघर्ष पर ज्यादा प्रतिक्रिया नहीं भी दे सकते हैं क्योंकि भारत सहित दूसरे देशों के केंद्रीय बैंकों की नीतियां काफी मददगार बनी हुई हैं। उनका मानना ​​है कि भारतीय शेयर बाजारों में ज्यादा से ज्यादा कुछ झटके लग सकते हैं और रक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) और फार्मा क्षेत्र अन्य से बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं।

गोहिल ने कहा, बैंक, लॉजिस्टिक्स और ब्याज दर के प्रति संवेदनशील क्षेत्र जैसे गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) और रियल एस्टेट निकट भविष्य में कमजोर प्रदर्शन कर सकते हैं।

वैश्विक परामर्श फर्म डीवेरे ग्रुप के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) नाइजल ग्रीन ने आगाह किया है कि ईरान और इजरायल के युद्ध के जवाब में अधिकांश वैश्विक शेयर बाजार “खतरनाक संतुष्टि” दिखा रहे हैं। इस समूह के पास 12 अरब डॉलर की प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियां (एयूएम) हैं।

विश्लेषकों ने कहा कि सेक्टर के हिसाब से सबसे तात्कालिक प्रतिक्रिया दर-संवेदनशील और उपभोक्ता-संचालित क्षेत्रों से बाहर निकलने की होगी। यात्रा और पर्यटन कंपनियां, जो ऊर्जा लागत और भू-राजनीतिक व्यवधानों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं, उन पर दबाव की उम्मीद है।

ग्रीन ने कहा, ऊर्जा उत्पादकों, कमोडिटी फर्मों और रक्षा से जुड़ी कंपनियों में निवेशकों की रुचि बढ़ने की संभावना है। कई विकसित अर्थव्यवस्थाओं में सैन्य बजट पहले से ही बढ़ रहा है और सुरक्षा, निगरानी, ​​एयरोस्पेस और हथियार निर्माण से जुड़ी फर्में मांग में उछाल से लाभ उठाने के लिए अच्छी स्थिति में हैं। स्थिर आय प्रोफाइल और मूल्य निर्धारण शक्ति वाली कंज्यूमर स्टेपल और यूटिलिटी कंपनियां भी इस भारी अस्थिरता वाले माहौल में निवेश आकर्षित कर सकती हैं।

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तेल का बाजार

इस बीच, वैश्विक ऊर्जा बाजारों के लिए जोखिम बढ़ रहा है, क्योंकि ईरान होर्मुज स्ट्रेट को अवरुद्ध कर सकता है, जहां से रोजाना करीब 1.7 करोड़ बैरल तेल (वैश्विक आपूर्ति का लगभग 20 फीसदी) जाता है। राबोबैंक इंटरनैशनल के विश्लेषकों का मानना ​​है कि अगर संघर्ष जारी रहता है तो सबसे खराब स्थिति हुई तो घबराहट में खरीदारी के कारण तेल की कीमतें 150 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं।

First Published - June 23, 2025 | 10:02 PM IST

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