शेयर बाजार में अब जबकि पचास फीसदी से ज्यादा की गिरावट आ चुकी है तो जाहिर है, म्युचुअल फंडों को और ज्यादा मेहनत करनी होगी ताकि वे निवेशकों की दिलचस्पी बनाए रख सकें।
अभी एक महीने पहले तक फिक्स्ड मेच्योरिटी प्लान (एफएमपी)का समय चल रहा था और अब यूटीआई म्युचुअल फंड के इक्विटी कम गोल्ड फंड की बारी है। स्कीम है यूटीआई वेल्थ बिल्डर फंड सीरीज-2, जो एक ओपन एंडेड डाइवर्सि-फाइड योजना है।
इस योजना का एक हिस्सा सोने में निवेश किया जाएगा ताकि इक्विटी के जोखिम को हेज किया जा सके। क्योंकि शेयर बाजार में जनवरी से भारी गिरावट आ चुकी है जबकि गोल्ड ईटीएफ ने पिछले एक साल में 9.20 फीसदी की रिटर्न दिया है।
यूटीआई म्युचुअल फंड रिसर्च के मुताबिक जहां तक सोने की बात है पिछले दस सालों में इसने 10.35 फीसदी का कंपाउंडेड औसत रिटर्न दिया है।बाकी के असेट क्लास से तुलना की जाए तो सोने की कीमतों में उतार-चढ़ाव भी कम होता है। लिहाजा, यह पोर्टफोलियो को स्थिरता भी देता है। संकट के समय में दुनियाभर के निवेशक सोने का ही सहारा लेते हैं।
और इन दोनों असेट क्लास को मिलाकर यूटीआई फंड निवेशकों को इन दोनों क्लास की खूबियां पेश करने जा रहा है। इस स्कीम के फंड मैनेजर हर्ष उपाध्याय के मुताबिक ऐसी स्कीमें निवेशकों को अलग से गोल्ड ईटीएफ खरीदने की चिंताओं से मुक्त रखती हैं। इस फंड में निवेश के बाद उसे अलग से गोल्ड ईटीएफ में निवेश करने की जरूरत नहीं।
इसके अलावा जब शेयर बाजार बेहतर प्रदर्शन कर रहे थे तब निवेशक केवल रिटर्न देख रहे थे लेकिन अब वे हर असेट क्लास से जुड़े जोखिम को भी देखते हैं और डाइवर्सिफिकेशन चाहते हैं।
किसी भी दूसरे इक्विटी डाइवर्सिफाइड फंड की ही तरह यूटीआई वेल्थ बिल्डर फंड सीरीज-2 भी अपने कोष का 65 फीसदी हिस्सा इक्विटी में लगाएगी और बाकी का पैसा वह सोने और दूसरी डेट योजनाओं में लगाएगी।
यानी सोने में निवेश शून्य से 35 फीसदी के बीच हो सकता है। हालांकि यह कतई साफ नहीं है कि सोने में कितना हिस्सा निवेश किया जाएगा। इस फंड का बेंचमार्क बीएसई 100 होगा लेकिन चूंकि यह फंड तीन अलग अलग असेट क्लास से जुड़ा है।
लिहाजा क्रिसिल बांड फंड इंडेक्स और सोने के मौजूदा भाव भी इसकेलिए बेंचमार्क का काम करेंगे। जहां तक कराधान का सवाल है, सोने में निवेश के बावजूद इस फंड पर किसी इक्विटी फंड की तरह ही कर लगाया जाएगा। इसका मतलब यह कि अगर कोई निवेशक इस फंड में एक साल से ज्यादा तक बना रहता है तो उस पर कोई लांग टर्म कैपिटल गेन टैक्स नहीं लगेगा।
इस पर 2.25 फीसदी का एंट्री लोड है और अगर एक साल से पहले पैसा निकाला तो एक फीसदी का एक्जिट लोड भी लगेगा। और इस अवधि के बाद अगर पैसा निकाला तो फिर कोई एक्जिट लोड नहीं लगेगा।
निवेश विशेषज्ञों का मानना है कि हालांकि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजार की हालत को देखते हुए ही सोना बेहद अहम हो गया है लेकिन कुल पोर्टफोलियो में इसका हिस्सा 5 से 10 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए। चूंकि एक निवेशक को पोर्टफोलियो में एलोकेशन का सही अनुमान नहीं होता, अत: रिटर्न को लेकर एक अनिश्चितता बनी रह सकती है।
एक प्रमाणित फाइनेंशियल प्लानर सुरेश सदगोपन के मुताबिक अगर सोने की कीमतों में गिरावट आती है तो यह फंड दूसरों से खराब प्रदर्शन कर सकता है। ज्यादातर लोगों का मानना है कि अलग अलग असेट क्लास में निवेश को एक दूसरे से अलग रखना चाहिए। इससे इसकी मॉनिटरिंग में आसानी रहेगी और तसवीर भी साफ रहेगी। गोल्ड ईटीएफ के खर्चे भी एक फीसदी सालाना हैं जबकि यह फंड 2.5 फीसदी लेता है।