मई की गर्मी से बचने के लिए भले ही आप किसी ठंडी जगह पर जाकर राहत उठा लें लेकिन शेयर बाजार में अगर आपने पैसा लगा रखा है तो मई में बाजार के ताप से राहत पाने का तरीका खोजना मुश्किल होगा।
अक्टूबर के साथ मई का महीना भी ऐसा होता है जब बाजार खासा सुस्ताने के मूड में आ जाता है यानी अक्सर ही मई बाजार के लिए बुरा साबित होता है। पिछले 18 सालों का रिकॉर्ड बताता है कि मार्च में बाजार (-0.39 फीसदी), मई(-0.74 फीसदी) और अक्टूबर (-1.63 फीसदी) में गिरा है और इन महीनों में बाजार ने नेगेटिव रिटर्न दिए हैं।
लेकिन पिछले पांच सालों का रिकार्ड देखें तो अक्टूबर के मुकाबले ज्यादा सिरदर्दी मार्च और मई महीने में रही है। मार्च में जहां औसत गिरावट 1.17 फीसदी रही वहीं मई महीने में यह गिरावट बढ़कर 1.61 रही है। अकेले मई के आंकड़े को देखा जाए तो पिछले 18 सालों में आठ बार ऐसा हुआ है जब निगेटिव रिटर्न देखने को मिलते रहे हैं।
निवेशक मई-2004 और मई-2006 को कैसे भूल सकते हैं जब भारी बिकवाली ने सब-कुछ उलट कर रख दिया था। मई के साथ एक और बदनुमा दाग चिपका हुआ है कि कमोबेश 1998 से हरेक साल के अंतर पर इसने नेगेटिव रिटर्न देने का सिलसिला कायम रखा है। 1998, 2000, 2002, 2004, 2006 और अब साल 2008 जबकि नेगेटिव रिटर्न मिलना तय सा लगता है।
लेकिन जो गौर फरमाने लायक बात है कि क्या मई के आंकड़ों के अलावा और भी कुछ है जो इस महीने में और गिरावट ला सकता है। मई महीने में ही परमाणु डील से संबंधित नई तस्वीर बनने की संभवना है। 5 और 6 मई को अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की बैठक होगी और उसके बाद यह तय होगा कि यूपीए और लेफ्ट इस मसले को लेकर क्या रूख अपनाते हैं। तब तक संसद का सत्र भी समाप्त हो जाना चाहिए।
इन सब के बीच यूपीए अगर लेफ्ट को घसीटना चाहे और समय से पहले अगर चुनाव की रणनीति बनती है तो फिर यूपीए जरूर लेफ्ट को सालों से भौंकने के बाद काटने पर बाध्य कर सकता है। लेकिन महंगाई के दानव ने यूपीए के सामने भी समस्या खड़ी दी है कि चुनाव से पहले इस समस्या से निजात दिलाना होगा। लिहाजा, यूपीए ऐसा कोई दांव नही खेलना चाहेगी जो उसके लिए खतरनाक साबित हो ।
फंडामेंटली भी देखा जाए तो ऐसा ठीक करार देना कि आने वाले समय में बाजार कुछ बढ़त हासिल करे खासा मुश्किल है। क्योंकि, निफ्टी में अप्रैल महीने के डेरिवेटिव्स 5,000 अंक ही छू पाए जबकि पंटरों को उम्मीद थी कि पहले यह स्तर 5,350 और फिर 5,550 तक पहुंचेगा। कंपनियों द्वारा मई महीने में तिमाही परिणाम देना भी एक वजह है जिसके कारण बाजार में कोई सकारात्मक माहौल बन सकता है। बाजार में मार्जिन प्रेशर बरकार रहने की उम्मीद है।
दूसरा यह कि देर से अपने परिणाम घोषित करने वाली कंपनियों के कारण भी कुछ हमें अनपेक्षित परिणाम झेलने पड़ सक ते हैं। विशेषकर,मार्च महीने की मंदी के पश्चात शेयर भावों में वास्तविक उछाल दर्ज हुए हैं। सेन्सेक्स ने जहां 13.9 फीसदी की उछाल पाया है वहीं इसके 89 फीसदी शेयरों ने उस अनुपात में अच्छा रिटर्न दिया है।
रिटर्नस पर नजर डालें तो पाएंगे कि 73 फीसदी से ज्यादा शेयरों ने मार्च मंदी के बावजूद 25 फीसदी से ज्यादा रिटर्न दिए हैं। जबकि बंबई स्टॉक एक्सचेंज के हरेक चार में से एक शेयर ने 50 फीसदी से ज्यादा रिटर्न दिए हैं। मई महीने में मुनाफावसूली करना एक अच्छा तरीका साबित हो सकता है।