वोल्टास द्वारा रोहिणी इंडस्ट्रियल इलेक्ट्रिकल्स का 62 करोड़ में किया गया अधिग्रहण ब्लूस्टार द्वारा नसीर इलेक्ट्रानिक का 42 करोड़ में किए गए अधिग्रहण की तुलना में कुछ महंगा दिखता है।
आरआईई के ऊपर करीब सात करोड़ का कर्ज है और उसकी इंटरप्राइज वैल्यू करीब 130 करोड़ रुपए है, यह नसीर इलेक्ट्रानिक से तीन गुना ज्यादा है। हालांकि प्रबंधन का कहना है कि दोनों सौदों की तुलना नहीं की जा सकती हैं क्योंकि नसीर एक स्थानीय कंपनी है जबकि आरआईई का विस्तार देश भर में है।
विश्लेषकों का मानना है कि यदि यह सौदा कुछ महंगा भी है तो इतना नहीं कि कंपनी की वित्तीय हालत प्रभावित हो। इसकेअतिरिक्त 3,044 करोड़ की वोल्टॉस के इलेक्ट्रो-केमिकल कारोबार को बढ़त मिलेगी। हालांकि यह अधिग्रहण छोटा है लेकिन रोहिनी का कारोबार देश भर में फैला हुआ है और वह उद्योगों पर फोकस इलेक्ट्रिकल टर्नकी प्रोडक्ट बनाती है।
वोल्टॉस का मानना है कि इलेक्ट्रो-मैकेनिकल कारोबार आने वाले कुछ सालों में करीब 35 से 40 की सालाना रफ्तार से बढ़ेगा। अगले दो सालों में इसका कारोबार घरेलू बाजार में 3,200 करोड़ के स्तर तक पहुंच जाएगा। आरआईई के पास अब भी 120 करोड़ का ऑर्डर है। ये सभी सौदे नगदी हैं और इंटरनल एक्रुअल के बाहर इनका फाइनेंस किया गया है। इससे कंपनी की वित्तीय स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।
बाद में वोल्टॉस में अपनी हिस्सेदारी 100 फीसदी तक भी बढ़ा सकती है। इसतरह वोल्टॉस की जून 2008 की तिमाही में कुल बिक्री 22 फीसदी बढ़कर 1,006 करोड़ रही। इसमें कंपनी के तीनों सेगमेंट इलेक्ट्रो-मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल और कूलिंग प्रोडक्ट तीनों शामिल हैं।
हालांकि कि कंपनी का ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन 1.2 फीसदी घटकर 7.7 फीसदी केस्तर पर रहा और कंपनी की राजस्व बढ़त को दबाते हुए कंपनी का खर्चा 24 फीसदी ज्यादा रहा। कंपनी को इस वित्त्तीय वर्ष में 23 फीसदी ज्यादा राजस्व मिलने की संभावना है और यह 3,700 करोड़ पर रहेगा। इसके अलावा कंपनी 220 करोड़ के करीब का शुध्द लाभ अर्जित कर लेगी।
कंपनी की प्रति शेयर आय के 25 फीसदी की रफ्तार से बढ़ने की संभावना है। मौजूदा बाजार मूल्य 131 रुपए पर कंपनी के स्टॉक का कारोबार वित्त्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से 22 गुना के स्तर पर हो रहा है और यह महंगा है।
टेक्सटाइल्स-कच्चे धागे
आदित्य बिरला नूवो (एबीएनएल) के स्टोर्स की बिक्री वित्तीय वर्ष 2008 की तिमाही में गिरी जबकि अपने उत्पादों का विपणन करने वाली कंपनी केवल किरन की भी बिक्री 20 फीसदी से ज्यादा गिरी। इससे साफ पता चलता है कि उपभोक्ता अभी खर्च करने के मूड में नहीं हैं।
यद्यपि कुछ कंपनियां जैसे रेमण्ड और अरविंद के ब्रांडेड कपड़े अच्छी संख्या में बिके। इस तरह अगर देखा जाए तो टॉपलाइन को देखते हुए टेक्सटाइल उद्योग के लिए खराब समय नहीं है। एक ब्रोकरेज सीएलएसए केअनुसार कुछ बड़ी कंपनियों की बिक्री करीब 22 फीसदी बढ़ी। एबीएनएल का टेक्सटाइल्स से मिलने वाला राजस्व सपाट रहा।
कंपनी का गारमेंट डिवीजन 10.7 फीसदी सालाना के हिसाब से बढ़ा और प्रबंधकों का मानना है कि खरीदार ठीक ढंग से खरीदारी नहीं कर रहे हैं। अरविंद मिल की टॉपलाइन बढ़त सिर्फ सात फीसदी रही यद्यपि उसका ब्रांडेड सेगमेंट ने ब्रिस्क बिजनेस किया और यह 39 फीसदी बढ़ा। कंपनियों की परेशानी की वजह लागत रही जिसकी वजह से कंपनी के ऑपरेटिंग प्रॉफिट में 13 फीसदी की कमी आई।
उपभोक्ताओं की तरफ से आने वाली मांग के कमजोर बने रहने की वजह से मैन्युफैक्चर्स बढ़ाई गई कीमतों को उपभोक्ताओं पर पॉस-ऑन नहीं कर सके। रेमंड का ऑपरेटिंग लॉस 14.4 फीसदी बढ़कर 2.1 करोड़ रुपए रहा। हालांकि गोकलदास के ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन में 7.4 फीसदी का सुधार देखा गया और 15.4 फीसदी के स्तर पर रहा।
टेरी टॉवल और बेड लाइनेन मेकर वेलस्पन के लागत पर नियंत्रण रखा और उसके लाभ में 5.8 फीसदी का सुधार देखा गया। निर्यात करने वाली कंपनियां परेशानी में रह सकती हैं क्योंकि अमेरिका और इंग्लैंड दोनों जगह से मांग में कमी आई है। गोकलदास जिसके पास सबसे ज्यादा विदेशी ग्राहक हैं, कि बिक्री में 11 फीसदी की गिरावट देखी गई। बाम्बे डाइंग को 18.8 करोड़ का हेजिंग लॉस हुआ।