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ज़ी: कमाई आसान नहीं

Last Updated- December 05, 2022 | 10:01 PM IST

रुपहले परदे से जुड़ी जानी-मानी ज़ी इंटरटेनमेंट का पिछला साल काफी अच्छा रहा।


बीते साल 1,834 करोड़ रुपये के राजस्व वाली इस प्रसारणकर्ता कंपनी ने सिर्फ अपने दर्शकों को ही मोहित नहीं किया बल्कि विज्ञापनदाताओं के  दिलों में भी अपनी जगह बना ली है। ज़ी इंटरटेनमेंट के पास जनरल इंटरटेनमेंट स्पेस में 30 फीसदी का ऑडिएंस शेयर है। उसकी मदद से प्रसारणकर्ता को मार्च 2008 तिमाही में विज्ञापन आय में 33 फीसदी की बढ़त मिली थी।


हालांकि, अब प्रसारणकर्ता ज़ी नेक्स्ट जैसे नए चैनलों और साथ ही ब्रांड की मार्केटिंग में ज्यादा निवेश करने में जुटे हुए हैं। नए चैनल के लॉन्च करने के बाद शुरुआती दौर में प्रसारणकर्ता को 32 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था।


यह नुकसान अब प्रसारणकर्ता के परिचालन मार्जिन में सेंध लगा रहा है। उल्लेखनीय है कि मार्च की तिमाही में ज़ी इंटरटेमेंट का परिचालन मार्जिन 24.8 फीसदी था जबकि वित्त वर्ष 2008 में थोड़ी सी बढ़त के साथ सिर्फ 30 फीसदी पर ही बना रहा।


गौरतलब है कि फोरेक्स डेरिवेटिव में 111 करोड़ रुपये का घाटा होने के बावजूद कंपनी को मार्च की तिमाही में शुध्द मुनाफे में 58 फीसदी की बढ़त मिली थी। वित्तीय वर्ष 2008 में प्रसारणकर्ता का शुध्द मुनाफा 372 करोड़ रुपये था। लिहाजा, प्रसारणकर्ता के शुध्द मुनाफे में 70 फीसदी का इजाफा हुआ था।


इसके अलावा ज़ी इंटरटेंमेंट के सब्सक्रिप्शन राजस्व में भी बढ़त मिली है। वित्तीय वर्ष 2008 की चौथी तिमाही में सब्सक्रिप्शन राजस्व में करीब 12 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई थी। लेकिन इसके इतर डीटीएच द्वारा प्रसारणकर्ता को सिर्फ 6 फीसदी की बढ़त मिली थी। हालांकि सब्सक्रिप्शन राजस्व में बढ़त मिलने के बावजूद प्रसारणकर्ता को मार्जिन के फैलाव में बहुत ज्यादा फायदा नहीं मिलेगा।


इसमें कोई शक नहीं कि जनरल इंटरटेंमेंट स्पेस में प्रतिस्पर्धा बढ़ने से ज़ी इंटरटेंमेंट के दर्शकों की संख्या में कमी आ जाएगी। यही नहीं दर्शकों की संख्या घटने के साथ ही प्रसारणकर्ता के विज्ञापन राजस्व की गति धीमी पड़ जाएगी।


वास्तव में, आए दिन नए चैनलों के पर्दापन से दर्शकों का ध्यान भटक रहा है। इसमें कोई शक नहीं कि दर्शक उस चैनल की ओर ज्यादा आकर्षित होंगे, जो लोगों को ज्यादा समय तक बांधे रख सकता हो।


सीमेंट: मार्जिन पर असर


मार्च 2008 तिमाही के दौरान देश की विभिन्न सीमेंट कंपनियों के मार्जिन पर असर पड़ सकता है। कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से ऐसा हो सकता है। कोयले जैसे इनपुट का हाजिर दाम इस समय 120 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गया है जो पिछले साल की तुलना में दोगुना है।


हालांकि इनपुट की कीमतों में इजाफे  के बावजूद कंपनियां अच्छी मांग के कारण बढिया कमाई कर रही हैं।लेकिन उनके मुनाफे पर असर पड़ सकता है।गौरतलब है कि मार्च 2008 तिमाही में अंबुजा सीमेंट द्वारा बेचे गए माल में 10 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। इस लिहाज से अंबुजा सीमेंट को 3,560 रुपये प्रति टन के हिसाब से फायदा होना चाहिए था। लेकिन होलसिम के नियंत्रण वाली इस कंपनी के परिचालन मुनाफे में 6 से 7 फीसदी की गिरावट दर्ज देखने को मिली।


साल 2007 के दिसंबर महीने में अंबुजा ने अपनी शुध्द बिक्री में 17.5 फीसदी की बढ़त के साथ 5792 करोड़ रुपये की कमाई की और साथ ही परिचालन मार्जिन में 36 फीसदी की बढ़त भी दर्ज की थी। उल्लेखनीय है कि  वित्तीय वर्ष 2008 में कमाई के लिए कंपनी के शेयर ने 112 रुपये पर सिर्फ 12 गुना अधिकार कारोबार किया था।


अन्य सीमेंट कंपनी को देखें तो, मार्च 2008 तिमाही में एसीसी द्वारा भेजे गए माल में 7 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। उस वक्त यह उम्मीद की जा रही थी कि कंपनी 5-6 फीसदी बढ़त के साथ 3460 रुपये प्रति टन के हिसाब से कमाई करेगी।


इस लिहाज से कंपनी के राजस्व में 9 से 10 फीसदी की बढ़त होनी चाहिए। लेकिन इसके साथ ही तेल, मालभाड़ा और अन्य दरों में बढ़ोतरी की वजह से कंपनी के परिचालन मुनाफे में 7 से 8 फीसदी की गिरावट होनी चाहिए।


गौरतलब है कि कैलेंडर वर्ष 2007 में कंपनी की शुध्द बिक्री 21 फीसदी की बढ़त के साथ 7,067 करोड़ रुपये थी। इसी दौरान कंपनी के परिचालन मार्जिन में 27 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी।

First Published - April 18, 2008 | 12:19 AM IST

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