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कपड़ों और जूतों पर खर्च में लगातार आ रही गिरावट

महंगाई बढ़ने और वेतन में बढ़ोतरी नहीं होने के कारण उपभोक्ताओं ने गैर जरूरी खर्च कम कर दिया, जिसके कारण यह कमी आई।

Last Updated- May 27, 2025 | 11:29 PM IST
Clothing Industry
प्रतीकात्मक तस्वीर

भारतीय घरों में ‘कपड़ों और जूतों’ पर खर्च घटकर तीन साल के सबसे कम स्तर पर रह गया है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय से जारी आंकड़ों के अनुसार 2023-24 में यह खर्च महामारी से पहले के मुकाबले भी कम रहा।

इस खर्च में कमी का यह लगातार दूसरा साल रहा। इससे पहले 2022-23 में इसमें 1.4 प्रतिशत गिरावट आई थी। इसके बाद लगातार दूसरे वर्ष  भी गिरावट आई। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि महंगाई बढ़ने और वेतन में बढ़ोतरी नहीं होने के कारण उपभोक्ताओं ने गैर जरूरी खर्च कम कर दिया, जिसके कारण यह कमी आई।

कपड़ों और जूतों पर 2023-24 में 4.53 लाख करोड़ रुपये खर्च हुए, जो 2022-23 के 4.87 लाख करोड़ रुपये से करीब सात प्रतिशत कम रहे। महामारी से पहले 2019-20 में 4.53 लाख करोड़ रुपये के कपड़े-जूते बिके थे। कोविड महामारी के कारण आर्थिक गतिविधियां बुरी तरह अस्त-व्यस्त होने के कारण 2020-21 में कपड़ों और जूतों पर खर्च 15 प्रतिशत कम हो गया था।

इंडिया रेटिंग्स के एसोसिएट डायरेक्टर पारस जसराय ने बताया, ‘2022-23 में ‘कपड़ों और जूतों’ में लगभग 9 प्रतिशत महंगाई दिखी और उससे अगले वित्त वर्ष में इनमें 7.2 प्रतिशत महंगाई देखी गई। कह सकते हैं कि लोगों ने जीवनशैली से जुड़े खर्च के बजाय भोजन और स्वास्थ्य जैसे जरूरी खर्चों को तरजीह दी।’

जूतों की खरीद पर होने वाला खर्च 2022-23 के 1.01 लाख करोड़ रुपये से करीब 2 प्रतिशत घटकर 0223-24 में 99,500 करोड़ रुपये रह गया। मगर कपड़ों पर होने वाले खर्च में इस दौरान 8.5 प्रतिशत की भारी गिरावट देखी गई। 2022-23 में कपड़ों पर होने वाला 3.86 लाख करोड़ रुपये का खर्च अगले वित्त वर्ष में घटकर 3.53 लाख करोड़ रुपये रह गया। बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस का कहना है कि इस दौरान ऊंची महंगाई के साथ ही ग्रामीण मांग भी कम रही क्योंकि कोविड महामारी के कारण हुए लॉकडाउन ने कमाई पर बहुत असर डाला था।

First Published - May 27, 2025 | 10:56 PM IST

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