South vs North: मोदी सरकार का दूसरे कार्यकाल का आखिरी बजट पेश होने के बाद विपक्ष ने तरह-तरह की प्रक्रियाएं दीं। खासतौर पर, कांग्रेस सांसद डी के सुरेश के बयान ने विवाद खड़ा कर दिया है।
बता दें कि डी के सुरेश कर्नाटक से एक सांसद हैं, जिन्होंने दक्षिण भारत को ‘अलग देश’ बनाने की मांग कर दी है। उनका ये बयान हाल में केंद्र और राज्य के बीच ‘करों के बंटवारे’ को लेकर सामने आया है।
आइए, जानते हैं क्या कहा कांग्रेस सांसद डी के सुरेश ने…
कांग्रेस सांसद डी के सुरेश ने कहा है कि दक्षिण भारत के साथ नाइंसाफी हो रही है। उनका दावा है कि जो पैसा केंद्र सरकार से दक्षिण भारत को मिलना चाहिए था, उसे डायवर्ट कर उत्तर भारत को दिया जा रहा है। सुरेश ने कहा कि अगर ये भेदभाव जारी रहा तो फिर ‘दक्षिण भारत’ को अलग देश बनाने की मांग जोरशोर से की जाएगी।
कर्नाटक से दिल्ली तक पहुंचा विवाद
कर्नाटक के सांसद द्वारा खड़े किए गए इस विवाद के बाद ये ‘करों के बंटवारे’ का मुद्दा अब दिल्ली के जंतर-मंतर तक आ गया है। कर्नाटक सरकार ने मोदी सरकार के खिलाफ बुधवार को देश की राजधानी में विरोध प्रदर्शन किया। खबरों के मुताबिक, गुरुवार को केरल सरकार भी इस तरह का प्रोटेस्ट करने जा रही है।
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आइए, हम आपकों इस मुद्दे से जुड़े कुछ अहम सवालों के जबाव देते हैं जो आपको जानना जरूरी है…
क्यों राज्य सरकारें केंद्र सरकार से मांगती हैं फंड?
भारत के संविधान के मुताबिक, अनुच्छेद-280 में फाइनेंस कमीशन बनाने का प्रावधान है, जिसके दो मुख्य काम हैं। इसमें से एक काम है सेंट्रल टैक्स में से राज्यों के हिस्सों की सिफारिशे करना। बता दें कि जब देश में 10वां वित्त आयोग बनाया गया था तो केंद्र और राज्यों के बीच करों के बंटवारे को लेकर एक नियम बनाया गया।
14वें वित्त आयोग ने केंद्र सरकार से टोटल टैक्स कलेक्शन में से 42 फीसदी राज्यों के बीच बांटने की सिफारिश की थी। लेकिन इसे 15वें वित्त आयोग में एक फीसदी घटाकर 41 प्रतिशत कर दिया गया। क्योंकि एक फीसदी हिस्सा जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बनने के चलते अलग रखा गया।
बता दें कि अभी देश में 15वें वित्त आयोग की सिफारिशें काम कर रही हैं, जो कि 2026 तक मान्य रहेंगी। केंद्र और राज्य के बीच करों का बंटवारा एक वेटेज सिस्टम के आधार पर किया जाता है।
इसमें राज्यों को कई मानकों पर खरा उतरना होता है जैसे कि डेमोग्राफिक परफॉर्मेंस, पॉपुलेशन, इनकम, जंगल और इकोलॉजी एवं टैक्स कलेक्शन के साथ-साथ घाटा कम करने के लिए किए गए प्रयास।
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जानें पूरे विवाद का कारण
कर्नाटक सरकार द्वारा खड़े किए गए इस विवाद का मुख्य कारण है केंद्र से मिलने वाले फंड में उसकी हिस्सेदारी पहले से कम होना। सरकार का कहना है कि फंड की कमी होने से राज्य को नुकसान हो रहा है। बता दें कि कर्नाटक देश में सबसे ज्यादा टैक्स कलेक्ट करने वाला दूसरा राज्य है।
कर्नाटक सरकार का आरोप है कि जब से 15वें फाइनेंस कमिशन की सिफारिशें लागू हुई हैं तब से राज्य को केंद्र से मिलने वाले टैक्स के पैसों में उसकी हिस्सेदारी 4.71 फीसदी से घटकर सिर्फ 3.64 प्रतिशत रह गई है।
सिद्धारमैया सरकार का आरोप है कि कर्नाटक सरकार ने उत्तर भारत के मुकाबले अच्छा काम किया है शायद इसी वजह से उनके फंड में कटौती की गई है।
इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में कर्नाटक के ग्रामीण विकास, पंचायती राज और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री प्रियांक खड़गे ने कहा कि फंड में हुई कटौती के कारण कर्नाटक को 1.87 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।
मोदी सरकार पर आरोप लगाते हुए खड़गे ने कहा कि केंद्र ने कर्नाटक सरकार को कई योजनाओं के लिए फंड नहीं दिया है। उन्होंने बताया कि कर्नाटक को देश के लिए 100 रुपये का टैक्स जमा करने पर केवल 13 रुपये रिटर्न में मिलते हैं, जबकि उत्तर प्रदेश को 333 रुपए रिटर्न मिलते हैं।
उन्होंने मांग की है कि 16वें वित्त आयोग में इसके लिए कोई फॉर्मूला बनाया जाए।