छोटी होली के दिन होलिका दहन का विशेष महत्व है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है। इसकी कहानी पौराणिक ग्रंथों में मिलती है, जो भक्त प्रह्लाद, उनकी बुआ होलिका और राक्षस राजा हिरण्यकश्यप से जुड़ी है।
हिरण्यकश्यप अहंकारी राजा था, जिसने स्वयं को भगवान मान लिया था और अपने राज्य में विष्णु की पूजा करने पर प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। यह देखकर हिरण्यकश्यप क्रोधित हो गया और उसने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किए। अंततः, उसने अपनी बहन होलिका की मदद ली, जिसे आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका जलकर भस्म हो गई और प्रह्लाद सुरक्षित बच गए।
इस घटना की याद में होलिका दहन किया जाता है, जो यह संदेश देता है कि अहंकार और अधर्म का अंत निश्चित है, जबकि सच्ची भक्ति और सत्य की हमेशा विजय होती है। इसके अगले दिन रंगों का त्योहार होली मनाया जाता है।
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