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पांच सितारा होटलों के बेतुके कायदे-कानून

Last Updated- December 05, 2022 | 4:46 PM IST

ज्यादातर कंपनियां अपने उत्पाद और सेवाओं के विज्ञापन और कीमतें तय करते वक्त खास लोगों का ख्याल रखती हैं।


 कीमतों और विज्ञापनों को इस तरह तैयार किया जाता है, ताकि इसके जरिए कुछ खरीदार इसमें खुद-ब-खुद शामिल हो जाएं और कुछ इस दायरे में आएं ही नहीं।


 लेकिन क्या कंपनियां साफ तौर पर यह कहती हैं वे अपनी सेवाओं या उत्पाद को कुछ खास लोगों को नहीं बेचेंगी, क्योंकि इससे दूसरे खरीदारों के लिए परेशानी पैदा होगी? जहां तक सामान और कई सेवाओं की बात है, इसका जवाब है, बिल्कुल नहीं।


लेकिन होटलों, रेस्तराओं और क्लबों की बात कुछ अलग है। इस तरह की ज्यादातर संस्थाएं या कंपनियां कुछ खास लोगों को ही अपने यहां प्रवेश की इजाजत देती हैं, जिसे कानूनी वैधता भी हासिल होती है। यहां सवाल यह पैदा होता है कि प्रवेश संबंधी अपनी शर्तों केपालन के लिए ये संस्थाएं किस हद तक जाएंगी?


हाल में अमेरिका की एक ट्रैवल एजेंट को जयपुर के रामबाग पैलेस होटल में ऐसी परिस्थिति का सामना करना पड़ा, जो इस मुद्दे से बिल्कुल जुड़ा हुआ है। टोनी न्यूबॉर नामक यह मोहतरमा वर्षों से हिंदुस्तान आती रही हैं।


वह अमेरिका में मिथ्स एंड माउंटेंस नामक कंपनी चलाती हैं। उन्होंने प्रवेश की अनुमति संबंधी मसले पर ताज ग्रुप केप्रबंधन को चिट्ठी लिखी है। चिट्ठी में उन्होंने लिखा है कि होटल में प्रवेश के दौरान जो वाकया हुआ, वह काफी दुखद और निंदनीय है।


 टोनी एशिया में एक संस्थान भी चलाती हैं। 7 मार्च की शाम को टोनी और उनके 4 सहकर्मी थके-हारे रामबाग पैलेस पहुंचे। टोनी द्वारा ताज प्रबंधन को लिखे गए पत्र के मुताबिक उन्होंने सोचा था कि उन्हें अपने साथ मौजूद सभी लोगों केसाथ डिनर करने का मौका मिलेगा। इसके मद्देनजर उन्होंने अपने साथ मौजूद ड्राइवर को भी डिनर केलिए बुलाया। इस बीच टोनी केचारों सहकर्मी होटल केअंदर पहुंचे और ड्राइवर गाड़ी पार्क करने लगा।


   गाड़ी पार्क करने के बाद जब ड्राइवर डिनर केलिए होटल के अंदर जाने लगा, तो उसे रोक दिया गया। इसकेबाद अमेरिकी महिला ने होटल केकर्मचारियों को समझाने की कोशिश की कि उन्होंने उसे डिनर केलिए बुलाया है, लेकिन कर्मचारियों का कहना था कि होटल के संरक्षक डाइनिंग रूम में एक ड्राइवर का प्रवेश कभी स्वीकार नहीं करेंगे। होटल केनाइट मैनेजर ने भी इस बेतुकी दलील का समर्थन किया।


अमेरिकी महिला के मुताबिक, उनके लिए यह काफी अचरज भरा था, क्योंकि उनके मुताबिक ताज के होटलों में आने वाले संभ्रांत लोगों  को इस संभ्रांत ड्राइवर के आने पर कोई आपत्ति नहीं होती। साथ ही उनका कहना था कि वह ताज ग्रुप के कई होटलों में ठहरी हैं और उनके कई ग्राहक बहुत पैसे वाले भले ही हों, लेकिन संभ्रांत नहीं होते।


 टोनी के मुताबिक, चूंकि उनके सहकर्मी लंबी यात्रा के बाद यहां पहुंचे थे, इस वजह से वे धूल-धूसरित नजर आ रहे थे और सफेद पोशाक में मौजूद ड्राइवर उन लोगों से कहीं ज्यादा बेहतर नजर आ रहा था। होटल के कर्मचारियों की जिद की वजह से टोनी को किसी नीरोज नामक रेस्तरां में जाना पड़ा।


ताज प्रबंधन ने इस मामले पर अपनी शर्मिंदगी जाहिर करते हुए टोनी को जवाब भेजा। इस बाबत भेजे गए पत्र में कहा गया है कि हम इस बात के लिए खेद प्रकट करते हैं कि प्रवेश संबंधी नियमों को इतने असंवेदनशील तरीके से लागू किया गया है।


 हालांकि अप्रवासी आगंतुकों के प्रवेश के लिए प्रबंधन ने ड्रेस कोड और नियम जरूर तय कर रखे हैं, लेकिन इस मामले को संवेदनशीलता के साथ हल किया जा सकता था। पत्र में आगे कहा गया है कि रामबाग पैलेस उस ड्राइवर से संपर्क करेगा और उसे होटल में खाने पर बुलाएगा।


इस घटना से साफ है कि पूरे मामले में रामबाग के कर्मचारियों ने अपनी हदों को पार किया। साथ ही उस ड्राइवर को जो अपमान झेलना पड़ा, उसकी सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है। दुर्भाग्य की बात यह है कि कॉरपोरेट और सामाजिक जिंदगी में ऐसी घटनाएं अक्सर होने के बावजूद ये चुपचाप गुजर जाती हैं।


इन घटनाओं को इतने हल्के-फुल्के अंदाज में लिया जाता है कि इस पर टीका-टिप्पणी करने की जरूरत भी नहीं महसूस की जाती। रामबाग की घटना भी चुपचाप गुजर जाती, अगर इस अमेरिकी महिला ने इस मसले को इतनी गंभीरता से न उठाया होता।


इसी तरह की एक घटना हाल में दिल्ली के एक फाइव स्टार होटल में भी देखने को मिली। यहां खाना खाने के इच्छुक किसानों को होटल में इसलिए घुसने नहीं दिया गया कि उनकी वजह से यहां मौजूद लोग असहज महसूस करेंगे। इस घटना को सिर्फ न्यूज चैनल एनडीटीवी ने दिखाया। प्रिंट मीडिया ने भी इसे छापने की जरूरत नहीं समझी।ऐसी घटनाएं सामाजिक सिस्टम के विकास और उभरते भारत की जरूरतों के बीच की दूरी को दर्शाती हैं।


तेज आर्थिक विकास और प्रतिभा की जरूरत की वजह से कॉरपोरेट इंडिया को नीतियां तैयार करते वक्त पुराने सामाजिक बंधनों को तिलांजलि देने को मजबूर होना पड़ रहा है। हालांकि अब तक कंपनियों के अंदर समतावादी सोच पैदा नहीं की जा सकी है।


 शायद यही वजह है कि होटल के कर्मचारी को लगता है कि वह कथित रुतबे के आधार पर लोगों को होटल के अंदर जाने से रोक सकते हैं। प्रबंधकों के लिए अगली सबसे बड़ी चुनौती यह है कि संगठनों का समान अवसर मुहैया कराने का दावा महज दावा बनकर न रह जाए।


ताज ग्रुप भी उस वक्त ऐसे ही भेदभाव का शिकार हुआ था, जब ओरियंट एक्सप्रेस होटल चेन ने उसकी बोली के ऑफर को इस आधार पर ठुकरा दिया था कि ‘भारतीय’ होटल चेन से उसकी बराबरी नहीं की जा सकती।


रामबाग की तरह ओरियंट एक्सप्रेस को भी किसी भी ऑफर को मना करने का पूरा हक था। लेकिन ऐतराज मना करने की वजह पर था। इस मामले में भारतीय होटल समूहों ने एकजुट होकर इसके खिलाफ आवाज उठाई थी। अगर ये दलीलें कॉरपोरेट स्तर पर सही हैं, तो यही बात व्यक्तिगत स्तर पर भी लागू होनी चाहिए।

First Published - March 19, 2008 | 11:20 PM IST

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