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आखिर क्या है पाकिस्तानी सेना प्रमुख के दिमाग में?

वह पाकिस्तान के ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल (ओटीएस) से स्नातक हैं न कि अधिक विशिष्ट मानी जाने वाली पाकिस्तान सैन्य अकादमी से।

Last Updated- May 11, 2025 | 10:16 PM IST
Pak Army chief General Asim Munir

पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम मुनीर कश्मीर में हालात को बिगाड़ना चाहते थे। पहलगाम आतंकी हमले की योजना उनके भाषण के बाद के सप्ताहों में नहीं बनी थी। इसके लिए पहले से काम किया जा रहा था।

कोई भी निश्चित तौर पर नहीं कह सकता है कि पहलगाम आतंकी हमले जैसी उकसावे की कार्रवाई क्यों की गई वह भी इस समय। या फिर 22 अप्रैल को ही ऐसा क्यों किया गया। हम इस विषय पर कुछ विश्लेषण कर सकते हैं और कुछ बिंदुओं को जोड़ने का प्रयास कर सकते हैं।

इस पहेली का पहला टुकड़ा है जनरल आसिम मुनीर का 16 अप्रैल का भाषण। अगर द्विराष्ट्र सिद्धांत और इस्लामिक इतिहास के शब्दाडंबर की बात छोड़ दें तो उस भाषण में उल्लेखनीय तत्त्व था कश्मीर का जिक्र और यह दावा कि ‘यह हमारी गले की प्रमुख नस है, हम इसे नहीं भूलेंगे।’

कश्मीर को गले की नस बताना पाकिस्तान में पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा है। परंतु इससे पहले किसी सेना प्रमुख ने वर्षों से कश्मीर को लेकर ऐसी बात नहीं की थी। मेरा मानना है कि ऐसा करके मुनीर कश्मीर को एजेंडे पर वापस ले आए। उनके लहजे में गुस्सा, हताशा और मेरे विचार में चेतावनी शामिल थी।

चेतावनी क्यों? एक अन्य तारीख के बारे में सोचिए। भारत को 19 अप्रैल को दिल्ली और श्रीनगर के बीच वंदे भारत एक्सप्रेस शुरू करनी थी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस कार्यक्रम में शामिल होने वाले थे। उस आयोजन को टालना पड़ा क्योंकि मौसम खराब था। भाषण देते वक्त मुनीर को यह बात पता नहीं थी। इस ट्रेन, एक नए कश्मीर के उदय, के कारण ही हताशा और तत्परता में हमला किया गया। जम्मू-कश्मीर में बीते तीन साल से हालात सामान्य हो रहे थे। वहां शांतिपूर्ण चुनाव हुए जिनमें व्यापक भागीदारी हुई। पर्यटकों की बढ़ती संख्या भी बता रही है कि हालात सामान्य हो रहे हैं। 2024 में वहां 29.50 लाख पर्यटक पहुंचे और 2025 में 32 लाख पर्यटकों का अनुमान लगाया गया था। हम जानते हैं कि पर्यटन के फलने-फूलने के लिए शांति बहुत जरूरी है। यह कश्मीर की अर्थव्यवस्था के लिए भी अहम है। घाटी में होटल और रिजॉर्ट निर्माण इसका प्रमाण है। खासतौर पर पहलगाम में और उसके आसपास।

पर्यटन तो केवल एक पहलू है। अगर आप इसे शिक्षा में हुई प्रगति के साथ देखें तो पाएंगे कि बड़ी संख्या में युवा कश्मीरी कॉलेज जा रहे हैं और देश भर में काम कर रहे हैं। ये सब जुड़ाव के संकेत हैं। करीब आठ दशक तक पाकिस्तानियों ने यह माहौल बना रखा था कि घाटी में भारतीयों की ‘औपनिवेशिक बसाहट’ या गैर कश्मीरियों का आगमन जनसंख्या के स्वरूप में बदलाव ला रहा है। परंतु अब कश्मीर के लोग पूरे भारत में बस रहे थे। घाटी में हालात सामान्य होने के संकेत पाकिस्तानी प्रतिष्ठान के लिए दु:स्वप्न की तरह हैं। उनकी यह उम्मीद गलत साबित हुई कि 5 अगस्त, 2019 के बाद कश्मीर घाटी के लोग स्थायी बगावत पर उतर जाएंगे।

यह कहना तार्किक और बुद्धिमतापूर्ण होगा कि आसिम मुनीर के पूर्ववर्ती सेनाध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा ने इन बातों को स्वीकार कर लिया था। वह ऐसा करने वाले पाकिस्तानी सेना के पहले मुखिया नहीं थे। उनसे पहले भी कई लोग ऐसा वास्तविक और परिपक्व नजरिया अपना चुके थे। वे सभी देशभक्त पाकिस्तानी थे जिनका पूरा विश्वास था कि यह उनके देश के हित में है कि भारत के साथ बेहतर रिश्ते हों। यही वजह है उन्होंने पर्दे के पीछे के रिश्तों का इस्तेमाल करते हुए नियंत्रण रेखा पर मजबूत संघर्ष विराम कायम किया था।

1989 में जब मैं रिपोर्टिंग के लिए पाकिस्तान गया था तब 1974 से 1978 तक पाकिस्तानी वायु सेना के प्रमुख रहे एयर चीफ मार्शल जुल्फिकार अली खान ने कहा था, ‘मेरा देश जितनी जल्दी यह समझ जाए कि वह कश्मीर को सैन्य, कूटनयिक या राजनीतिक ढंग से हासिल नहीं कर सकता, हमारे लिए उतना ही बेहतर होगा।’ खान एक सम्मानित पेशेवर थे जिन्होंने जनरल जिया उल हक द्वारा जुल्फिकार अली भुट्टो को अपदस्थ करने के विरोध में इस्तीफा दे दिया था और बाद में अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत बने। तब से अब तक हम कई सैन्य कमांडरों को यह बात कहते देख चुके हैं।

अब हम संक्षेप में कह सकते हैं कि मुनीर इन बातों पर जरूर झल्लाए होंगे। वह 1986 में सेना में शामिल हुए थे जब जिया अपनी ताकत के चरम पर थे। उन्हें उस प्रक्रिया का प्रतीक माना जाता है जिसे पाकिस्तान में होने वाली बहसों में कई बार ‘जिया भर्ती’ कहा जाता है। यह माना जाता रहा है कि इनमें से कई अधिकारी अधिक इस्लामिक और इस तरह पवित्र ग्रंथों में वर्णित नियति में यकीन रखने वाले हैं। जिया को भी गहरा इस्लामिक माना जाता था। वह मौलाना मौदूदी के अनुयायी थे। हम यह नहीं कह सकते कि वे पवित्र ग्रंथ में लिखी तकदीर को मानते थे या नहीं क्योंकि वह यह कल्पना नहीं कर पाए कि तकदीर ने उनके लिए क्या लिखा था।

उनके दूसरे प्रमुख कमांडरों के बारे में हम इससे ज्यादा नहीं कह सकते कि वे सब भी जिया भर्ती थे। मुनीर ने बहुत अजीब परिस्थितियों में सत्ता संभाली। उन्हें बाजवा की सेवानिवृत्ति से दो दिन पहले सेवानिवृत्त होना था और इस तरह वह सेना प्रमुख बनने की होड़ से बाहर थे। लेकिन एक असाधारण घटनाक्रम में (जो सिर्फ पाकिस्तान में हो सकता है) उन्हें सेवानिवृत्ति के कुछ दिन पहले ही सेना प्रमुख बना दिया गया। शायद इसलिए क्योंकि उन्होंने इमरान खान से निपटने का वादा किया था। ऐसे में दो दिनों तक पाकिस्तान में दो सेना प्रमुख रहे। वह इस लिहाज से भी विशिष्ट हैं कि वह पाकिस्तान के ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल (ओटीएस) से स्नातक हैं न कि अधिक विशिष्ट मानी जाने वाली पाकिस्तान सैन्य अकादमी से।

भारतीय उपमहाद्वीप की सेनाओं में ओटीएस से शॉर्ट सर्विस कमीशन वाले अधिकारी निकलते हैं जो कभी सेना प्रमुख नहीं बनते। मुनीर ऐसे पहले व्यक्ति हैं। कई अन्य अप्रत्याशित बातों ने उन्हें शीर्ष पद के लिए तैयार किया। पुलवामा हमले के समय वह आईएसआई के प्रमुख थे। हालांकि आठ महीने की सेवा के बाद ही बाजवा ने उन्हें हटा दिया। उन्हें गुजरांवाला में कोर कमांडर बनाया गया। पाकिस्तान में सेना प्रमुख बनने के लिए कोर कमांडर के रूप में काम करना जरूरी है। तकदीर ने उनकी मदद की। उन्होंने सोचा होगा कि जब तकदीर ने सारे नियम बदलकर उन्हें शीर्ष पद पर बिठा दिया तो शायद वह उनसे कुछ बड़ा करवाना चाहती होगी। उन्होंने सारी राजनीतिक चुनौतियों को खत्म कर दिया। इमरान खान और उनकी पत्नी बुशरा पर कई गंभीर इल्जाम लगाकर उनको जेल में बंद कर दिया। सबसे लोकप्रिय राजनीतिक दल यानी इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ को चुनाव लड़ने से रोक कर एक तरह से चुनाव को ही फिक्स कर दिया और एक ऐसी सरकार बिठा दी जो बिना विपक्ष के चुनी गई।

इस अप्रत्यक्ष तख्ता पलट में मुनीर ने रातोरात संविधान में ऐसे संशोधन करवाकर उसे लगभग बदल दिया जिससे उनके लिए मौजूद बाकी चुनौतियां भी खत्म हो गईं। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने सेना प्रमुख के कार्यकाल को तीन साल से बढ़ाकर पांच साल कर दिया। इंसानी दिमाग को पढ़ना तो मनोवैज्ञानिकों के लिए भी एक चुनौती है। अगर इन तथ्यों को इस बात के साथ जोड़कर देखें कि ‘तकदीर मुझसे कुछ बड़ा करवाना चाहती है’ तो आप 16 अप्रैल के उनके भाषण को बेहतर समझ पाएंगे।

कश्मीर में सामान्य हालात को उन्हें बिगाड़ना ही था। पहलगाम की योजना भाषण और आतंकी हमले के बीच के दिनों में नहीं बनी। इसकी तैयारी कई हफ्तों पहले की गई होगी। यह सुनियोजित था। इसके लिए लोग, जगह, हमले का तरीका, भागने के रास्ते, बचाव सब तैयार किया गया होगा। विज्ञान से जुड़ी खबरें लिखने वाली हमारी सहयोगी सौम्या पिल्लई के मुताबिक ‘मैक्सर टेक्नॉलजीज’ नामक कंपनी को पहलगाम क्षेत्र की हाई रिजॉल्यूशन वाली सैटेलाइट तस्वीरों के लिए इस फरवरी में अचानक ढेर सारे निजी ऑर्डर मिले। हम कोई सूत्र नहीं जोड़ सकते लेकिन यह उल्लेखनीय है कि एक छोटी-सी निजी पाकिस्तानी कंपनी मैक्सर की साझेदार बन गई। इस कंपनी की स्थापना एक ऐसे कारोबारी ने की थी जिसे पाकिस्तान की परमाणु एजेंसी के लिए संवेदनशील टेक्नॉलजी हासिल करने के लिए निर्यात नियमों का उल्लंघन करने पर सजा दी जा चुकी थी। क्या यह केवल संयोग था? मैक्सर को एक महीने में पहलगाम की तस्वीरों के 12 ऑर्डर क्यों मिले जबकि इससे पहले एक साल में औसतन दो से भी कम मासिक ऑर्डर मिले थे।

इस तरह से देखें तो अगर योजना तैयार थी तो बस सही दिन की प्रतीक्षा थी। अगर हम मुनीर को सही समझ रहे हैं तो दिल्ली से कश्मीर के लिए पहली सीधी रेल सेवा मुनीर की नजरों में घाटी के मिजाज और भारत के साथ एकीकरण की दृष्टि से निर्णायक रही होगी। उन्हें इसे किसी भी हाल में नुकसान पहुंचाना था। भले ही युद्ध का जोखिम क्यों न पैदा हो जाए।

 

First Published - May 11, 2025 | 10:16 PM IST

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