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राजधानियों के प्रश्न में उलझा आंध्र प्रदेश

Last Updated- February 03, 2023 | 10:48 PM IST
Andhra Pradesh embroiled in the question of capitals
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एक राजधानी या तीन राजधानियां? आंध्र प्रदेश में इस प्रश्न का स्पष्ट उत्तर किसी के पास नहीं है। फिलहाल अमरावती के बजाय राज्य की राजधानी विशाखापत्तनम होगी। पिछले सप्ताह आंध्र प्रदेश वैश्विक निवेशक सम्मेलन में मुख्यमंत्री वाई एस जगन मोहन रेड्डी ने कहा था कि विशाखापत्तनम राज्य की राजधानी होगी और वह स्वयं वहां रहने जा रहे हैं। प्रश्न है कि कब तक? मुख्यंत्री के रूप में अपने बचे हुए कार्यकाल तक या निवेश सम्मेलन (मार्च में) तक? या फिर 2023 की शेष अवधि के लिए या इससे अधिक समय तक? शायद किसी के पास इसका स्पष्ट जबाब नहीं है।

वर्ष 2021 में मुख्यमंत्री ने कहा था कि फिलहाल अमरावती आंध्र प्रदेश की राजधानी होगी। एक के बाद एक कानूनी चुनौतियों को देखते हुए रेड्डी ने राज्य विधानसभा में कहा कि राज्य सरकार आंध्र प्रदेश में तीन राजधानियां बनाने का प्रस्ताव वापस ले रही है। इससे पहले राज्य सरकार ने कहा था कि तीन राजधानियां बनाई जाएंगी जिनमें पहली विशाखापत्तनम (कार्यपालक राजधानी) में, दूसरी रायलसीमा क्षेत्र में कुर्नूल (न्यायिक राजधानी) में और तीसरी अमरावती (विधायिका राजधानी) में होगी।  अमरावती में राज्यपाल का कार्यालय और राज्य विधानसभा बनाने की योजना थी। तीन राजधानियां बनाने का उद्देश्य राज्य में ‘विकेंद्रीकृत विकास’ सुनिश्चित करना था। मगर ऐसा लगता है कि इस योजना से एक बड़ी उलझन की स्थिति पैदा हो गई है।

राजधानी का मामला आंध्र प्रदेश के विभाजन के साथ शुरू हुआ। विभाजन के बाद हैदराबाद तेलंगाना की राजधानी बन गया। तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) के एन चंद्रबाबू नायडू को इसमें एक अवसर दिखा। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री ने अमरावती में एक हरित, भविष्यवादी और विश्व स्तरीय राजधानी बनाने की परिकल्पना की। नई राजधानी सिंगापुर की तर्ज पर बननी थी और इसकी निर्माण योजना सिंगापुर सरकार द्वारा नियुक्त सलाहकारों ने तैयार की।

नई राजधानी 217 वर्ग किलोमीटर में बनाने की योजना थी और इस पर लगभग 8 अरब डॉलर रकम खर्च होती। इस पूरी योजना के पीछे एक अघोषित पहलू यह था कि अमरावती के इर्द-गिर्द जमीन धनाढ़्य कम्मा किसानों की थी जो तेदेपा के समर्थक भी माने जाते हैं। इससे नुकसान रेड्डी समुदाय को होता। रेड्डी समुदाय को राज्य में राजनीतिक रूप से ताकतवर माना जाता है और वह जमीन-जायदाद के मामले में भी संपन्न है। अमरावती को राजधानी बनाए जाने की घोषणा के बाद इस क्षेत्र के आस-पास जमीन की कीमतें आसमान छूने लगीं और मालिकाना हक के स्थानांतरण और भूमि के इस्तेमाल में बदलाव की प्रक्रिया द्रुत गति से होने लगी।

इससे पहले कि नायडू की योजना आगे बढ़ती राज्य में चुनाव ने दस्तक दे दी। अमरावती में राजधानी बनाने के लिए 54,000 एकड़ भूमि चिह्नित की गई जिनमें 42,000 एकड़ कृषि योग्य भूमि थी और 40,000 एकड़ सिंचित भूमि थी। किसानों के हाथ से उनकी जमीन निकलने का खतरा था मगर उन्हें इस बात की भी उम्मीद थी कि राज्य सरकार उन्हें मोटा मुआवजा देगी। मगर कृषि कार्य में भाग लेने वाले श्रमिक और पट्टाधारक सबसे अधिक दुखी थे। एक और बात यह थी कि पूरा क्षेत्र में कपास की खेती के लिए अनुकूल काली मिट्टी वाली जमीन थी और मगर निर्माण कार्य के लिए अनुकूलनहीं थी।

नायडू की सरकार मई 2019 में सत्ता से बाहर हो गई और जगन मोहन रेड्डी राज्य के नए मुख्यमंत्री बन गए। रायलसीमा क्षेत्र में दबदबा रखने वाला रेड्डी समुदाय इससे उत्साहित हुआ और उसने इस अवसर का लाभ उठाकर तेदेपा सरकार के पिछले दो कार्यकालों में पैदा हुए असंतुलन को साधने की कोशिश की। जगन मोहन रेड्डी ने पिछली कई समितियों की सिफारिशों में अवसर तलाश लिया और कुछ और समितियों का गठन कर दिया। जब वे तेदेपा को नुकसान पहुंचाने के लिए और अपना दबदबा बढ़ाने की मुहिम में थे तो उसी समय तीन राजधानियां बनाने की योजना उनके दिमाग में आई। इनमें एक राजधानी रायलसीमा में बनाने का प्रस्ताव था।

हालांकि इसके बाद मुश्किलों का सिलसिला भी शुरू हो गया। ये ऐसी मुश्किलें थीं जिनसे तीन राजधानियां बनाने का योजना पर पानी फिर गया। राज्य सरकार को उच्च न्यायालय की जगह पर कानून बनाने का कोई अधिकार नहीं था। इस वजह से अमरावती से उच्च न्यायालय स्थानांतरित करने का प्रस्ताव पेचीदा हो गया। इसके अलावा खर्च भी एक समस्या थी। राज्य सरकार के पास पर्याप्त वित्तीय संसाधन नहीं थे इसलिए यक्ष प्रश्न यह खड़ा हो गया कि केवल अमरावती ही नहीं बल्कि कुर्नूल और विशाखापत्तनम के लिए मुआवजे का प्रबंध कहां से होता?

सच्चाई यह है कि राज्य सरकार के पास रकम नहीं है। एक अनुमान के अनुसार अधिग्रहीत भूमि का मूल्य करीब 1,50,000 करोड़ रुपये है। राज्य सरकार को मुआवजे का भुगतान इस मूल्य के 150 प्रतिशत पर करना होगा। राज्य पर इसके कुल राज्य सकल घरेलू उत्पाद का 33 प्रतिशत कर्ज है। राज्य सरकार के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा बैंकों को चला जाता है। ये आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति खस्ताहाल है और राजस्व के स्रोत भी सीमित हैं। राज्य सरकार के कुछ कर्मचारियों को चार महीने से वेतन नहीं मिला है।

पेंशनभोगियों को भी 20 तारीख के आस-पास पेंशन दी जाती है। आंध्र प्रदेश के विशेष मुख्य सचिव (वित्त) शमशेर सिंह रावत ने पिछले सप्ताह एक मीडिया को दिए बयान में अप्रत्यक्ष रूप से मान लिया कि वेतन देने में देरी हो रही है। रावत ने कहा कि ‘कभी-कभार’ वेतन देने में ‘थोड़ी देरी’ हुई है। उन्होंने कहा कि 90-95 प्रतिशत मामलों में वेतन हरेक महीने की पांच तारीख तक निर्गत कर दिए जाते हैं।

इन सभी समस्याओं के बीच विशाखापत्तनम अब राजधानी है। तीन राजधानियों की योजना समाप्त नहीं की गई है, बस इसे फिलहाल टाल दिया गया है। इस बीच, राज्य वित्तीय संकट से संकट की ओर बढ़ता जा रहा है।

First Published - February 3, 2023 | 10:48 PM IST

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