देश के आधा दर्जन से अधिक राज्यों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विपक्ष में है। झारखंड में वह दस साल से सत्ता से बाहर है और सरकार के कामकाज को लेकर लगातार झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की आलोचना करती रही है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी नीत तृणमूल कांग्रेस सरकार को विभिन्न मुद्दों पर घेरने के लिए आंतरिक विरोधाभासों से जूझने के बावजूद विपक्षी भाजपा वहां भी उग्र नजर आती है। पंजाब में अभी उसे मजबूत विपक्ष के रूप उभरना है। दिल्ली में भी वह बेहतर प्रदर्शन के लिए हाथ-पांव मार रही है।
लेकिन, देश के जितने भी राज्यों में यह विपक्ष में है, उनमें उसकी सबसे खराब स्थिति कर्नाटक में है। पिछले महीने हुए उप चुनावों में वह यहां सभी सीटें हार गई। उसके बाद से पार्टी नेता एक-दूसरे पर सार्वजनिक रूप से आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। इस दक्षिणी राज्य की तीन विधान सभा सीट- शिगगांव, संदुर और चन्नपटना यहां के विधायकों के लोक सभा चुनाव जीतने के कारण खाली हुई थीं। शिगगांव सीट से भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई विधायक थे और बाद में हावेरी सीट से लोक सभा चुनाव जीत कर वह दिल्ली का रुख कर गए।
चन्नपटना का प्रतिनिधित्व एचडी कुमारस्वामी करते थे। पहले के चुनाव में जब जद(एस) का गठबंधन कांग्रेस के साथ था तो कुमारस्वामी ने इस सीट से भाजपा उम्मीदवार को हराया था। लेकिन, लोक सभा चुनाव में जद(एस) ने भाजपा के साथ मिलकर लड़ा और जीत कर कुमारस्वामी केंद्र सरकार में मंत्री बन गए। संदुर विधान सभा सीट दोबारा कांग्रेस के कब्जे में आ गई है। पिछले चुनाव में भी कांग्रेस के ई. तुकाराम ने यहां से भाजपा उम्मीदवार को हराया था।
क्षेत्रीय स्तर पर थोड़े भिन्न इन इलाकों में हार में कुछ चीजें एक जैसी दिखती हैं। भाजपा का एक गुट इस हार के लिए खुलकर अपने प्रदेश अध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र को जिम्मेदार बता रहा है। विजयेंद्र के पिता बीएस येदियुरप्पा राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और भाजपा के दिग्गज नेताओं में उनका शुमार होता है। यह पहली बार नहीं है जब राज्य में पार्टी की अंदरूनी कलह उजागर हुई है। मौजूदा उठापटक विजयेंद्र और पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं विधायक बसनगौड़ा पाटिल यतनाल के गुट के बीच चल रही है।
यतनाल गुट इस समय दिल्ली में डेरा डाले हुए है, जो भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को यह संदेश पहुंचाने की कोशिश कर रहा है कि राज्य पार्टी प्रमुख के तौर पर विजयेंद्र नाकाम रहे हैं। इस गुट का तर्क है कि विजयेंद्र के पास एकमात्र सकारात्मक चीज यही है कि वह पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता येदियुरप्पा के बेटे हैं। यतनाल और उनके समर्थकों के ये तर्क पूरी तरह सच नहीं माने जा सकते क्योंकि, विजयेंद्र के नेतृत्व में भाजपा कर्नाटक के ऐसे इलाकों तक अपना प्रसार करने में कामयाब रही है, जहां वह पहले कभी नहीं पहुंच पाई थी।
दक्षिणी कर्नाटक इसका जीता-जागता उदाहरण है। विधान सभा चुनाव में कांग्रेस से करारी मात खाने के सात महीने बाद भाजपा ने बहुत ही विचार-विमर्श के बाद विजयेंद्र को प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी थी। पार्टी को एक ऐसे नेता की जरूरत थी, जो मजबूत व्यक्तिगत आधार का मालिक होने के साथ-साथ पूरे राज्य में स्वीकार्य हो। लोक सभा चुनाव में पार्टी के बेहतरीन प्रदर्शन ने यह दिखा दिया कि शीर्ष नेतृत्व का निर्णय गलत नहीं था। आम चुनाव में पूरे देश में भाजपा की सीटें घटीं, लेकिन पार्टी ने कर्नाटक की 28 में से 19 सीटों पर जीत कर अपनी धमक का एहसास करा दिया।
लेकिन, बसनगौड़ा और उनके समर्थक चाहते हैं कि विजयेंद्र से पार्टी अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी वापस लेकर उन्हें घर भेज दिया जाए। यह गुट विजयेंद्र का इतना विरोधी हो गया है कि इसने वक्फ भूमि अतिक्रमण के मुद्दे पर पार्टी को नजरअंदाज कर बीदर से अपना अलग अभियान शुरू किया, जिसके बैनर और पोस्टरों पर केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरें छायी हुई थीं और पार्टी प्रदेश अध्यक्ष विजयेंद्र की फोटों कहीं नहीं थीं। यहां तक कि भाजपा की बीदर इकाई ने यतनाल के खिलाफ पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई थी। माना जा रहा है कि इस फैसले को बीएल संतोष का समर्थन प्राप्त है, क्योंकि कभी संतोष के पीछे-पीछे चलने वाले एमएलसी सीटी रवि इस पदयात्रा में शामिल हुए थे।
अब कर्नाटक में विधान सभा चुनाव मई 2028 में होने हैं, लेकिन यतनाल की महत्त्वाकांक्षाएं अभी से ठाठें मार रही हैं। पिछले सप्ताह बेलागावी में स्थानीय मीडिया से बात करते हुए उन्होंने स्पष्ट शब्दों में अपनी भावनाओं का इजहार करते हुए कहा था, ‘मैं नि:स्वार्थ राजनेता या कोई संत आदमी नहीं हूं। मैं आने वाले दिनों में कर्नाटक का नंबर एक राजनेता बनूंगा। जब मैं मुख्यमंत्री बन जाऊंगा तो मीडिया मेरे पीछे-पीछे भागेगा।’ कर्नाटक उन राज्यों में से है जहां 1992 में हुबली में ईदगाह मैदान विवाद के बाद हिंदू भावनाओं को समेट कर धुव्रीकरण हुआ और राम मंदिर रथ यात्रा को जबरदस्त समर्थन यहां मिला।
कर्नाटक भाजपा में अनुशासनहीनता का इतिहास नहीं रहा है और इसीलिए भाजपा कार्यकर्ता भ्रम की स्थिति में पड़ गए हैं। उनका मानना है कि पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन साथ ही वे यह भी समझ रहे हैं कि यतनाल द्वारा उठाए जा रहे मुद्दे विचारधारा के स्तर पर कहीं अधिक ठोस हैं। विजयेंद्र और उनके समर्थक कहते हैं कि वे यतनाल से बात करने को तैयार हैं। साथ ही उनका यह भी मानना है कि यतनाल गुट की गतिविधियां पार्टी को राज्य में विपक्ष के तौर पर कमजोर कर रही हैं।
लेकिन, कर्नाटक में भाजपा के अंदर बड़ी विचित्र और जटिल स्थिति बन गई है। राज्य के मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता सिद्धरमैया के येदियुरप्पा के साथ बहुत अच्छे संबंध रहे हैं। चार साल पहले जब बीएस येदियुरप्पा राज्य के मुख्यमंत्री थे तो उनके जन्मदिन पर आयोजित समारोह में सिद्धरमैया न केवल शामिल हुए थे, बल्कि कई मामलों को लेकर उनकी खूब तारीफ भी की थी।
यही वजह है कि यतनाल गुट के कई नेताओं का मानना है कि कांग्रेस के अंदर से ही हमले झेल रहे सिद्धरमैया और भाजपा के विजयेंद्र गुट के बीच एक-दूसरे को बचाने के लिए कोई न कोई मिलीभगत है। हालांकि यह आरोप केवल संदेह तक ही सीमित हैं, क्योंकि इनका कोई तथ्यात्मक आधार नहीं मिलता। विजयेंद्र यह अच्छी तरह जानते हैं कि उनके समक्ष अपनी काबिलियत साबित करते हुए राज्य में भाजपा को दोबारा खड़ा करने की चुनौती है। लेकिन, अंदरूनी गुटबाजी की ओर इशारा करते हुए उनके समर्थक कहते हैं कि भाजपा का पुनर्जीवित करने का काम विजयेंद्र अपना एक हाथ पीठ पीछे बंधा होने के कारण कैसे कर पाएंगे।