किसी भी जिम्मेदार राजनीतिक पार्टी को यह बात शोभा नहीं देती कि वह ऐसा आचरण करे, जिससे लंबे वक्त में देश के हितों पर बुरा असर पड़े।
पर पिछले 2 साल से भी ज्यादा वक्त से भारत को इन्हीं तरह के हालात का सामना करना पड़ रहा है। जब राजनीतिक सुधारों की बात होती है, तो यूपीए सरकार की सहयोगी वाम पार्टियां इस बात पर अड़ जाती हैं कि ऐसा नहीं होना चाहिए।
इसका नतीजा यह है कि देश में सप्लाई से जुड़ी बड़ी समस्याएं पैदा हो गई हैं, जिससे उबरने में देश को लंबा समय लगेगा। पर वामपंथी पार्टियों के बारे में कम से कम इतना तो कहा ही जा सकता है कि वे उदार आर्थिक नीतियों की लगातार मुखालफत करती रही हैं और आज भी अपने इस पक्ष पर कायम हैं।पर दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि यही बात भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और भारत-अमेरिका एटमी करार के संदर्भ में सही नहीं कही जा सकती।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि बीजेपी (जब वह 2004 में सत्ता में थी) द्वारा अमेरिका से बनाए रिश्तों ने ही भारत-अमेरिका एटमी करार के लिए जमीन तैयार की।उस वक्त तो पार्टी भारत द्वारा परमाणु परीक्षण न किए जाने की बात (सीटीबीटी पर दस्तखत करके) जैसी शर्त पर भी रजामंद होने को तैयार थी, जबकि ऐसी कोई शर्त मौजूदा डील में नहीं है।
ज्यादातर लोगों ने तो यह सोचा था कि यह करार सिरे इसलिए नहीं चढ़ पाएगा कि अमेरिकी सांसद इसकी राह के रोड़े बनेंगे, पर किसी को भी इस बात की उम्मीद नहीं थी कि करार में भारत में किसी तरह की दिक्कत होगी, क्योंकि भारत तो इस करार से फायदा पाने वाला देश था। इसे ही भारतीय राजनीति का घिनौना सच कहा जा सकता है।
ऐसा लगता है कि बीजेपी का अजेंडा एक ऐसे छोटे समूह के द्वारा तय किया जा रहा है, जो पार्टी की मुख्यधारा की राजनीति नहीं करता है और बीजेपी के मामले में इस तरह की बात कोई नहीं भी नहीं है।बीजेपी की अगुआई वाले एनडीए के शासनकाल में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे ब्रजेश मिश्र ने साफगोई से कहा है कि उनकी राय एटमी करार के पक्ष में है। पर लगे हाथ उन्होंने यह भी कह दिया कि यह उनकी जाती राय है और इसे बीजेपी की ओर से दिया गया बयान नहीं समझा जाना चाहिए।
दूसरी ओर, पार्टी की ओर से भावी प्रधानमंत्री तय किए जा चुके लालकृष्ण आडवाणी अपने इस बयान पर शुरू से कायम हैं कि वे इस डील को स्वीकार नहीं कर सकते। ऐसे में यदि मौजूदा सरकार यह तय करती है कि वह सभी पार्टियों की आम सहमति के बगैर इस डील पर आगे नहीं बढ़ेगी, तो भारत इस डील को गंवाकर एक अद्भुत मौका खो देगा।