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शेयरों की पुनर्खरीद और उसका महत्त्व

अंशधारकों को धनराशि वापस देने का यह अर्थ नहीं कि आप वृद्धि हासिल नहीं कर रहे या शायद आपको उस पूंजी की जरूरत नहीं हो जो आप मूल कारोबार से अर्जित करते हैं।

Last Updated- April 09, 2024 | 10:35 PM IST
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विश्व भर में और खासकर अमेरिका में कंपनियों द्वारा निवेशकों को पूंजी लौटाने का एक तरीका शेयरों की बायबैक (पुनर्खरीद) भी है। आंशिक तौर पर ऐसा शेयर आधारित कर्मचारी मुआवजे के कारण आई कमी की भरपाई के लिए किया जाता है और आंशिक तौर पर ऐसा बेहतर कर कुशलता के कारण यह निवेशकों को पूंजी लौटाने का प्राथमिक माध्यम बन गया है।

एक कम ज्ञात तथ्य यह है कि सन 2000 से ही अमेरिका में 5.5 लाख करोड़ डॉलर के शेयरों की बायबैक हुई। वे अमेरिकी शेयरों की मांग का अकेला सबसे बड़ा माध्यम रहे। मांग का अगला बड़ा स्रोत रहा विदेशी निवेशकों से खरीद जो इस अवधि में 1.8 लाख करोड़ डॉलर रही।

सन 2000 के बाद से घरेलू खुदरा निवेशकों से कुल 100 अरब डॉलर की खरीद की गई। इसमें घरेलू बचत और म्युचुअल फंड शामिल हैं। शेयर बाजार के क्षेत्र में अमेरिका के निरपवाद प्रदर्शन की एक बड़ी वजह रही है अमेरिकी कंपनियों द्वारा अपने ही शेयरों की निरंतर इतनी बड़ी खरीद। किसी भी अन्य देश की तुलना में यह गति और परिमाण अप्रत्याशित है।

फिलहाल हम अमेरिकी कंपनियों से वास्तविक रूप से सालाना एक लाख करोड़ रुपये के शेयरों की खरीद देख रहे हैं और यह आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। शेयर आधारित मुआवजे को निष्प्रभावी करने की आवश्यकता से परे शेयरों की पुनर्खरीद अब अंशधारकों को पूंजी लौटाने के प्राथमिक माध्यम के रूप में स्वीकार्य है। सभी तकनीकी दिग्गज कंपनियों ने बड़े पैमाने पर शेयरों की पुनर्खरीद की है। यहां तक कि मूल्य वृद्धि वाले शेयरों में प्रमुख एनविडिया ने छह महीने पहले 25 अरब डॉलर के शेयरों की पुनर्खरीद की घोषणा की।

अगर हम अधिक सूक्ष्म स्तर पर देखें तो ऐपल पुनर्खरीद की शक्ति का बहुत बड़ा उदाहरण है। अभी हाल तक दुनिया की सबसे मूल्यवान कंपनी रही ऐपल के लिए पुनर्खरीद अंशधारकों के मूल्य समीकरण का एक अहम हिस्सा रहा है। 2015 में आईफोन की बिक्री में कमी आनी शुरू हुई। तब से अब तक ऐपल की प्रति शेयर आय की समेकित सालाना वृद्धि औसतन 13 फीसदी रही है। इस अवधि में कंपनी की कुल बिक्री सालाना 6.4 फीसदी बढ़ी और कर पूर्व मुनाफा केवल 5.7 फीसदी बढ़ा।

यह अंतर कम कर दर और शेयर पुनर्खरीद से पैदा हुआ जिन्होंने मिलकर सालाना 6.7 फीसदी की प्रति शेयर आय वृद्धि दी। प्रति शेयर आय में 13 फीसदी की वृद्धि में से 5 फीसदी शेयरों की शुद्ध पुनर्खरीद से हासिल हुई। इस अवधि में 550 अरब डॉलर मूल्य के शेयरों की पुनर्खरीद हुई और कंपनी ने अपने 30 फीसदी से अधिक शेयर हटाए। 2015 से 2019 के बीच शेयरों की पुनर्खरीद सबसे अहम थी। उस वक्त कर पूर्व मुनाफे में कमी आई और कंपनी ने हर वर्ष करीब 6 फीसदी शेयरों की पुनर्खरीद की। इसका सात फीसदी का उच्चतम स्तर 2019 में समाप्त हुआ।

आज भी कंपनी हर वर्ष 85 अरब डॉलर से अधिक मूल्य के शेयरों की पुनर्खरीद करता है। ऐपल लाभांश भी देती है लेकिन फ्री कैश फ्लो (एफसीएफ) का केवल 15 फीसदी ही इस मार्ग से चुकाती है। 85 फीसदी एफसीएफ पुनर्खरीद के जरिये लौटा दिया जाता है। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि दुनिया की सबसे मूल्यवान कंपनी की 2015 से 2023 के बीच की आय वृद्धि में 40 फीसदी शेयरों की पुनर्खरीद से आई।

जब से ऐपल ने पूंजी की वापसी का यह मार्ग अपनाया, उसके मूल्यांकन में भी उल्लेखनीय सुधार देखने को मिला। 2016 के आरंभ में कंपनी की सापेक्ष कीमत /अग्रिम आय 0.6 थी जो अब 1.25 हो चुकी है और डेढ़ गुना बढ़ चुकी है।

मूल्यांकन विस्तार के एक हिस्से के लिए बाजार का वह व्यवहार उत्तरदायी है जिसके तहत वह कंपनी को उपभोक्ता फ्रैंचाइजी समझती है बजाय कि एक हार्डवेयर कंपनी के। परंतु थोड़ा श्रेय उस निर्णय को भी दिया जाना चाहिए जिसके तहत समस्त एफसीएफ शेयर धारकों को सौंपा गया। उच्च भुगतान अनुपात स्पष्ट रूप से उच्च मूल्यांकन और शेयरों पर बढ़ते प्रतिफल से संबद्ध है। निवेशक ऐसी कंपनियों को पसंद नहीं करते जो बेमतलब नकदी जमा करती हैं।

पूंजी की वापसी और पुनर्खरीद की यही शक्ति है। भारत के लिए इन बातों का क्या महत्त्व है? हमारे बाजारों में सूचना प्रौद्योगिकी सेवा कंपनियों और बजाज ऑटो जैसी इक्का-दुक्का कंपनियों के अलावा कोई पुनर्खरीद का इस्तेमाल नहीं करता। आंशिक तौर पर ऐसा करने के लिए बहुत सीमित कर प्रोत्साहन है और शेयर आधारित मुआवजे का भी चलन नहीं है। आज भी अधिकांश भारतीय कंपनियां पूंजी की वापसी को ऐसे देखती हैं मानो संबंधित शेयर उच्चतम स्तर पर पहुंच चुका हो। कई प्रवर्तक अभी भी कंपनी की नकदी को अपना पैसा मानते हैं और इसे अल्पांश हिस्सेदारों के साथ बांटना नहीं चाहते।

यह जोखिम भी है कि देश की दीर्घावधि संभावनाओं को लेकर वर्तमान आशावाद के चलते निवेश करते रहने पर जोर हो, भले ही मूल कारोबारों को मुनाफे में आई समस्त राशि की आवश्यकता नहीं हो। आज भारत में वृद्धि का हर अवसर उत्साहवर्धक नजर आती है।

यह उच्च मुनाफे और नकदी प्रवाह का दौर है। कारोबारी जगत का उत्साह बढ़ रहा है। हर कोई आशावादी और उत्साहित है। सबसे अच्छे समय में सबसे बुरी गलतियां होती हैं। पूंजीगत अनुशासन से फिसलने की संभावना रहती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि कंपनियां असंबद्ध कारोबारी निवेश का निकट से आकलन करेंगी और यह समझेंगी कि पूंजी प्रतिफल एक उपयुक्त विकल्प है।

अंशधारकों को धन वापस देने का अर्थ यह नहीं है कि आप वृद्धि नहीं हासिल कर रहे हैं। इसका यह अर्थ भी हो सकता है कि आपको अपने मूल कारोबार के लिए तमाम पूंजी की आवश्यकता नहीं है। उच्च कारोबारी मुनाफे वाले वर्तमान समय जैसे दौर निवेशकों के लिए अधिक खतरनाक होते हैं। यही वह स्थान है जहां पूंजीगत आवंटन की कला सामने आती है। कंपनियों को पूंजी पर प्रतिफल के अपने मानक को बरकरार रखना चाहिए।

अगली पीढ़ी कंपनियों के लिए यह और महत्त्वपूर्ण सबक है। इनमें से कई बहुत जल्दी बाजार में उतरेंगी। एक बार मुनाफा हासिल करने के बाद उनमें से कई कंपनियों के पास सीमित पूंजी होगी और वे भारी एफसीएफ तैयार करेंगी। निरंतर नए कारोबार में उतरने तथा नकदी का इस्तेमाल करने के बाद उन्हें पूंजी प्रतिफल और पुनर्खरीद की स्थिति पर विचार करना पड़ सकता है।

हर कंपनी की अपनी विशिष्ट परिस्थितियां और वृद्धि विकल्प होते हैं। पूंजी प्रतिफल भी एक ऐसा विकल्प होना चाहिए जिस पर प्रबंधन पूंजी आवंटन के समय विचार करते हैं। सभी नई वृद्धि परियोजनाएं और कारोबार हमेशा तार्किक नहीं होते। मौजूदा आकर्षण के बावजूद हमें पूंजी पर प्रतिफल की सीमा पर टिके रहना चाहिए। निवेशकों की तरह हमारा भी यह दायित्व है कि हम बाजार और मूल्यांकन के जरिये पूंजीगत अनुशासन कायम करें।

First Published - April 9, 2024 | 10:35 PM IST

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