बीमा कंपनियों द्वारा फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस के मामलों में की गई अपीलों पर सुप्रीम कोर्ट हर पखवाड़े सुनवाई करता है और पिछले कुछ दिनों में कोर्ट ने ऐसा किया भी है।
इससे जुड़े वैसे मामले जो मोटर एक्सिडेंट क्लेम्स ट्रिब्यूनल और हाई कोर्ट की दहलीज तक जाते हैं, उनकी संख्या की तो कोई कल्पना ही कर सकता है। दरअसल, फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस, परमानेंट अकाउंट नंबर (पैन) कार्ड और राशन कार्ड का कारोबार पिछले कुछ अर्से में काफी तेजी से फला-फूला है और हालत यह है कि ड्राइविंग कौशल नहीं होते हुए भी लोग ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने में कामयाब हो जाते हैं।
बीमा कंपनियों की चिंता दोहरी है। एक ओर तो फर्जी ड्राइविंग लाइसेंसों की वजह से बढ़ते हादसों के बाद क्षतिपूर्ति के लिए किए जाने वाले दावों से उन्हें दो-चार होना पड़ता है और दूसरी ओर कोर्ट के सख्त रवैये का भी सामना उन्हें करना पड़ता है।
मोटर वीइकल एक्ट के तहत तीसरी पार्टी (थर्ड पार्टी) को होने वाले शारीरिक नुकसान या मौत का अनिवार्य बीमा किए जाने की व्यवस्था है। गाड़ी मालिक और इंश्योरेंस कंपनी के अलावा वह तीसरा शख्स, जिसे हादसे की स्थिति में नुकसान पहुंचता है, थर्ड पार्टी कहलाता है।
यह एक समाज कल्याण से जुड़ा मसला है और थर्ड पार्टी को लेकर कोर्ट का रवैया बेहद संवेदनात्मक होता है, क्योंकि कोर्ट को लगता है कि थर्ड पार्टी को होने वाले नुकसान की वजह ड्राइवर या गाड़ी मालिक की गलती होती है। पर कोर्ट के इस दयालु रवैये से इंश्योरेंस कंपनियों के कारोबार पर बुरा असर पड़ रहा है।
पुरानी व्यवस्था के तहत यदि ड्राइवर या गाड़ी मालिक का लाइसेंस फर्जी पाया जाता था, इन मामलों में बीमा कंपनियों की जिम्मेदारी खत्म हो जाती थी। पर अब सब कुछ इतना आसान नहीं है।कोर्ट की सहानुभूति न सिर्फ पीड़ित के प्रति होती है, बल्कि इंश्योरेंस कंपनियों के मामले में जब-जब कानून की व्याख्या की बात आती है, वे बेहद सख्त हो जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई हालिया फैसलों में आखिरी जिम्मेदारी बीमा कंपनियों की ही मानी है।
सबसे ताजा मामला न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी बनाम दर्शना देवी का है। इस मामले में एक ट्रैक्टर का मालिक बिना लाइसेंस के ट्रैक्टर चला रहा था और ट्रैक्टर के मडगार्ड पर एक मजदूर बैठा था। अचानक मजदूर मडगार्ड से गिर पड़ा और टै्रक्टर के चक्के से दबकर उसकी मौत हो गई। ट्रिब्यूनल ने मजदूर के परिजनों को बतौर मुआवजा 2 लाख रुपये दिए जाने का फैसला दिया।
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने भी इस फैसले की तस्दीक की। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में इंश्योरेंस कंपनी की अपील खारिज कर दी, पर यह आदेश दिया कि मुआवजे की 2 लाख रुपये की रकम ट्रैक्टर मालिक से वसूली जाए। मोटर वीइकल एक्ट के सेक्शन 149 के मुताबिक वैसे मामलों में इंश्योरेंस कंपनी को मुआवजे की रकम नहीं देनी पड़ती है, जिसमें गाड़ी चलाने वाले के पास या तो लाइसेंस नहीं है या फिर फर्जी लाइसेंस है।
पर सुप्रीम कोर्ट ने तीसरी पार्टी के हित में इस नियम को हाल ही में थोड़ा लचीला बनाया है। कई ऐसे मामले हो सकते हैं जिनमें इस नियम की भूमिका आती है। यदि ड्राइवर के पास लाइसेंस नहीं है, तो ऐसे मामले में इंश्योरेंस कंपनी को पैसे का भुगतान नहीं करना पड़ेगा। सरदारी बनाम सुशील कुमार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा ही फैसला दिया। इस मामले में बिना लाइसेंस के ट्रैक्टर चला रहे एक ड्राइवर ने तांगे वाले को धक्का मार दिया था और तांगे वाले की मौत हो गई थी।
हालांकि बाकी मामलों में इंश्योरेंस कंपनियों का बच पाना बहुत आसान नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की नई व्याख्या के मुताबिक, यदि लाइसेंस फर्जी पाया गया, तो बीमा कंपनियां मुआवजा देने से तभी बच पाएंगी, जब वे यह साबित कर पाएं कि गाड़ी का मालिक इस बात से वाकिफ था कि उसके ड्राइवर के पास फर्जी लाइसेंस है और इसके बावजूद उसने ड्राइवर को गाड़ी सौंप दी थी (प्रेम कुमारी बनाम प्रहलाद देव)।
पर गाड़ी मालिक के खिलाफ इस तरह का सबूत पेश करना इंश्योरेंस कंपनियों के लिए काफी मुश्किल भरा काम होता है, खासकर ऐसे मामलों में जब डुप्लिकेट लाइसेंस ऑरिजिनल जैसे दिख रहे हों। यदि कंपनियां ऐसा साबित करने में नाकाम रहती हैं, तो वे मुआवजा देने की अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकतीं।
एक मामला यह हो सकता है कि शुरू में तो ड्राइवर के पास फर्जी लाइसेंस हो, पर बाद में उसने इसे रिन्यू कराकर ऑरिजिनल करवा लिया हो। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में भी यदि इंश्योरेंस कंपनी यह साबित कर दे कि हादसा गाड़ी मालिक की गैर-जिम्मेदारी या अनदेखी की वजह से हुआ है, तो मुआवजे के भुगतान की जिम्मेदारी इंश्योरेंस कंपनियों की नहीं होगी।
ओरियंटल इंश्योरेंस कंपनी बनाम पृथ्वी राज के मामले में ड्राइवर ने कहा कि शुरू में तो उसके पास फर्जी लाइसेंस था, पर बाद में उसे कानूनी प्रक्रिया के जरिये रिन्यू कर दिया गया।राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने ड्राइवर की यह दलील स्वीकार कर ली, पर जब मामले की अपील सुप्रीम कोर्ट में की गई तो सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में इंश्योरेंस कंपनी को माफ करते हुए मुआवजा देने की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लाइसेंस के रिन्यू करा लिए जाने को मूल अपराध का हल नहीं माना जा सकता। इसी तरह, एक मामला ऐसा आ सकता है जब हादसे के वक्त ड्राइवर के लाइसेंस की अवधि खत्म हो चुकी हो। हाल में ऐसा कोई मामला कोर्ट के सामने तो नहीं आया है, पर इस मामले में कोर्ट की राय इंश्योरेंस कंपनी के हित में जाती है। पर यदि ड्राइवर के पास लर्निंग लाइसेंस हो तो ऐसे मामलों में ऐसी स्थिति में इंश्योरेंस कंपनी को क्लेम का भुगतान करना पड़ता है।
यदि ड्राइवर के पास किसी खास तरह की गाड़ी को चलाने का लाइसेंस हो, पर वह दूसरी तरह की गाड़ी चला रहा हो, तो ऐसे मामले में कोर्ट के फैसले हालात के हिसाब से अलग-अलग रहे हैं।