क्या भारतीय प्रबंध संस्थानों (आईआईएम) द्वारा अपने 2 साल के पोस्ट ग्रैजुएट मैनेजमेंट कोर्सों की फीस में एकबारगी की गई तेज बढ़ोतरी जायज है, जिसे उन्होंने आगामी सत्र से लागू करने का फैसला किया है?
इस मुद्दे के पक्ष और विपक्ष दोनों में तरह-तरह के तर्क दिए जा रहे हैं। पर यदि समग्र रूप में देखा जाए तो फीस में बढ़ोतरी का समर्थन करने वालों की बातों में दम है। आईआईएम उच्च शिक्षा के उम्दा केंद्र हैं, जिन्हें ग्लोबल लेवल पर भी सम्मान हासिल है। तनख्वाह के ऑफरों के लिहाज से देखें तो भी आईआईएम के ‘प्रॉडक्ट्स’ हर साल ऊंची सैलरी का नया रेकॉर्ड बना रहे हैं।
देसी और बहुराष्ट्रीय कंपनियां उन्हें ठीक उसी अंदाज में लपकने को तैयार रहती हैं, जिस अंदाज में अमेरिका और यूरोप के जानेमाने बिजनेस स्कूलों के छात्रों को लपका जाता है।एक ऐसी पढ़ाई जो किसी शख्स को अच्छा विकास और अच्छी कमाई मुहैया कराती है, उसके लिए फीस के तौर पर 8 लाख रुपये (20 हजार डॉलर) से 11.5 लाख रुपये (28,570 डॉलर) देना जरूरत से ज्यादा फीस नहीं कही जाएगी, क्योंकि ज्यादातर लोग इस पढ़ाई को अपने भविष्य में निवेश के रूप में देखते हैं।
हां, यह बात भी सच है कि यहां पढ़ने आने वाले कई छात्रों की पारिवारिक पृष्ठभूमि आर्थिक रूप से अच्छी नहीं होती और उन्हें पढ़ाई के लिए बैंक से मोटा कर्ज लेने को मजबूर होना पडता है। पर इनमें से कम ही छात्र ऐसे होते हैं, जिन्हें पढ़ाई पूरी होते ही नौकरी मिलने के बाद लोन की रकम की वापसी में दिक्कत होती है। हालांकि इस बात का भी इंतजाम किया जाना चाहिए कि जरूरतमंदों को वजीफा दिया जाए।
साथ ही ऐसे छात्रों की फीस वापस किए जाने की भी व्यवस्था की जानी चाहिए, जो पढ़ाई के बाद कई तरह की सामाजिक सेवाओं में लग जाते हैं और उनके पास इतना पैसा नहीं होता कि वे अपने लोन की पुनर्अदायगी कर सकें। कुछ अमेरिकी विश्वविद्यालयों में फीस वापसी से संबंधित इंतजाम प्रचलित भी हैं।
विद्यार्थी के नजरिये से तो इस फीस बढ़ोतरी को काफी ज्यादा बताया जा रहा है, पर संस्थानों के नजरिये से यह बढ़ोतरी कितनी अहम है? संस्थानों को अपने कैंपस और उनमें की जाने वाली अकादमिक व्यवस्थाओं पर मोटे पैसे खर्च करने पड़ते हैं।पर आज भी यह अजीब ही है कि संस्थान में पढ़ाने वाले शिक्षकों की तनख्वाह बेहद कम है।
जिन छात्रों को ये शिक्षक पढ़ाते हैं, उनकी तनख्वाह के सामने शिक्षकों की तनख्वाह कहीं भी खरी नहीं उतर पाती। यह कहा जा सकता है कि सरकार औरया यूजीसी द्वारा शिक्षकों के लिए तय ये तनख्वाह अब बेमानी हो चली हैं।
इसे दुभार्ग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि आईआईटी और आईआईएम के शिक्षकों का वेतनमान वही है, जो बाकी संस्थानों के शिक्षकों का। वेतन के मामले में ये न सिर्फ अपने विदेशी समकक्षों से पीछे हैं, बल्कि देश के भीतर भी प्राइवेट प्रबंध संस्थानों के शिक्षक इस मामले में उनसे काफी आगे हैं।