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बुनियादी ढांचा: आधारभूत ढांचे पर मसौदा निर्देश से बहस तेज

। राष्ट्रीय राजमार्ग बिल्डर फेडेरेशन को इस बात का डर सता रहा है कि अगर आरबीआई का मसौदा प्रस्ताव प्रभाव में आया तो इससे वित्तीय बोझ काफी बढ़ जाएगा।

Last Updated- June 17, 2024 | 9:21 PM IST
RBI

आधारभूत ढांचा परियोजनाओं के वित्त पोषण (इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनैंसिंग) पर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का मसौदा दिशानिर्देश आने के बाद कई तरह के प्रश्न, चर्चा एवं चिंता सामने आए हैं। इस मसौदा दिशानिर्देश पर चर्चा के बीच भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) भविष्य में आवंटित होने वाले ऋणों के लिए शर्तें बदल रहा है।

एसबीआई ने प्रस्तावित दिशानिर्देशों के परियोजना वित्त (प्रोजेक्ट फाइनैंसिंग) पर होने वाले असर से निपटने के लिए यह कदम उठाया है। बैंक ने एक नया तरीका खोज निकाला है जिससे इसे बढ़े प्रावधान के कारण अतिरिक्त लागत ग्राहकों पर डालने में आसानी होगी। एसबीआई के ये तमाम उपाय यह संकेत भी दे रहे हैं कि आरबीआई प्रस्तावित नियमों में बहुत अधिक छूट देने के मूड में नहीं दिख रहा है।

इस बीच, सड़क एवं राजमार्ग मंत्रालय ने मौजूदा परियोजना वित्त ढांचे और उधारी दरों पर यथास्थिति बनाए रखने का अनुरोध किया है। मंत्रालय ऐसे किसी भी बदलाव का विरोध कर रहा है जिससे ब्याज दरें बढ़ सकती हैं। मंत्रालय ने केंद्रीय बैंक से आग्रह किया है कि राष्ट्र हित में बुनियादी ढांचे के वित्त पोषण पर आने वाली लागत नहीं बढ़ने दी जाए।

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने राष्ट्रीय राजमार्ग बिल्डर फेडेरेशन के साथ सलाह मशविरा भी शुरू कर दिया है। राष्ट्रीय राजमार्ग बिल्डर फेडेरेशन को इस बात का डर सता रहा है कि अगर आरबीआई का मसौदा प्रस्ताव प्रभाव में आया तो इससे वित्तीय बोझ काफी बढ़ जाएगा।

आखिर नई शर्तें क्या हैं? मई के शुरू में आरबीआई ने मसौदा दिशानिर्देश जारी किए जिनका मकसद परियोजना वित्त का ढांचा और मजबूत करना था। इन दिशानिर्देशों में कहा गया है कि बैंकों को निर्माणाधीन आधारभूत एवं वाणिज्यिक रियल एस्टेट परियोजनाओं के लिए आवंटित ऋण का 5 प्रतिशत हिस्सा प्रावधानों के रूप में अलग रखना होगा।

यह मौजूदा दरों से कहीं अधिक है जो वाणिज्यिक रियल एस्टेट ऋणों के मामले में 1 प्रतिशत, आवासीय परियोजनाओं के मामले में 0.75 प्रतिशत और परियोजना वित्त सहित अन्य प्रकार के ऋणों के लिए 0.40 प्रतिशत है।

परियोजनाओं के परिचालन की स्थिति में आने पर प्रावधान कम कर बकाया ऋण (आउटस्टैंडिंग फंडिंग) का 2.5 प्रतिशत तक किया जा सकता है। इसे विशिष्ट शर्तों के तहत और घटाकर 1 प्रतिशत तक किया जा सकता है। इतना ही नहीं, अगर परियोजनाएं पूरी होने में वास्तविक समय सीमा से छह महीने से भी अधिक देरी होती है तो उस स्थिति में बैंक ऐसे ऋणों को गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) के रूप में वर्गीकृत कर सकते हैं।

विभिन्न बैंकों के शीर्ष अधिकारी 5 प्रतिशत प्रावधान के नकारात्मक प्रभावों को लेकर चिंता जता रहे हैं। उन्हें इस बात का डर है कि ब्याज दरें बढ़ने से ऋण आवंटन की रफ्तार कमजोर पड़ सकती है। ऊंची ब्याज दरें परियोजना लागत बढ़ा सकती हैं और कई उद्यमों के लिए वित्तीय तौर पर टिके रहना मुश्किल हो सकता है।

इस बीच, सभी परियोजनाओं पर छह महीने का मोरेटोरियम अपनी अत्यधिक कड़ी शर्तों के लिए आलोचना झेल रहा है। इन सभी चिंताओं के बीच ऐसे समय में आधारभूत ढांचे की रफ्तार कम होने का जोखिम बढ़ गया है जब पूंजीगत व्यय में लगातार तेजी आ रही है। वित्त पोषण जारी रहने को लेकर विनिर्माता (डेवलपर) अलग ही चिंता से जूझ रहे हैं।

विश्लेषकों को आशंका है कि परियोजनाओं के निर्माण एवं परिचालन चरणों के दौरान प्रावधान से जुड़े नए मसौदा निर्देशों का असर पूरे रियल एस्टेट क्षेत्र पर दिख सकता है। इससे विनिर्माताओं के लिए निर्माण खर्च बढ़ सकता है जिससे बाद में खरीदारों के लिए भी जायदाद खरीदना आसान नहीं रह जाएगा।

टियर 2 और टियर 3 शहरों में विनिर्माताओं को बड़े विनिर्माताओं की तुलना में अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। टियर 2 और टियर 3 डेवलपर अपने आंतरिक स्रोतों के बजाय बाहरी पूंजी पर काफी हद तक निर्भर करते हैं।

इन तमाम बातों के बीच आरबीआई की चिंता को समझना भी जरूरी है। पिछले दो दशकों के दौरान एनपीए का खतरा काफी बढ़ गया था जिससे कर्जदाता और ग्राहक दोनों के वित्तीय स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर हो रहा था।

भारत में एनपीए का अध्ययन करें तो 1992-2009 के बीच एनपीए में गिरावट के बाद 2008 के बाद इसमें भारी बढ़ोतरी हुई। इसका मुख्य कारण आधारभूत परियोजनाओं के लिए आवंटित ऋणों का अटकना था। एनपीए में बढ़ोतरी के इस रुझान को ‘बहीखाते की दोहरी समस्या’ के रूप में दर्शाया गया है जिसमें बैंक और कंपनियां दोनों ही वित्तीय दबाव से जूझने लगीं। इससे भारत के बैंकिंग तंत्र के लिए ऐतिहासिक चुनौती खड़ी हो गई थी।

आरबीआई (RBI) का रुख बिल्कुल साफ है कि वह इस पूरे प्रकरण का दोहराव होने नहीं देना चाहता है। लिहाजा, एनपीए रुझानों पर नजर रखना देश के बैंकिंग तंत्र की स्थिरता एवं विश्वसनीयता के लिए सर्वाधिक महत्त्व है। आरबीआई ने इसे देखते हुए ही प्रावधान संबंधी ये दिशानिर्देश जारी किए हैं।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस चर्चा में अपना दृष्टिकोण भी रखा और कहा कि मसौदा दिशानिर्देश का निर्धारण करने से पहले सभी सुझावों पर चर्चा और विचार होना चाहिए।

एसबीआई के चेयरमैन, यूनियन बैंक के निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी और केनरा बैंक ने अपने-अपने संस्थानों की तैयारी या प्रस्तावित बदलावों के प्रभाव कम करने के लिए अपने-अपने सुझाव दिए हैं। पावर फाइनैंस कमीशन ने मसौदा दिशानिर्देशों का अध्ययन करने के बाद कहा है कि इससे उनके मुनाफे पर कोई असर नहीं होगा।

इस बीच, पंजाब नैशनल बैंक (PNB) प्रावधान के नियमों में प्रस्तावित बदलाव विभिन्न श्रेणियों के आधारभूत परियोजनाओं के वित्त पोषण के मामले लागू होने पर स्थिति स्पष्ट करने की मांग कर रह है। गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाली वित्त उद्योग विकास परिषद ने मसौदा दिशानिर्देशों पर आपत्ति जताई है और इस संबंध में आरबीआई को एक पत्र लिखने की तैयारी कर रही है।

सार्वजनिक क्षेत्र के एक बैंक के अधिकारी ने संशोधित प्रावधान की जरूरत पर सवाल उठाए हैं। इस अधिकारी ने कहा कि ज्यादातर परियोजनाओं से सरकार का सीधा लेना-देना है। अधिकारी ने यह भी कहा कि परियोजना वित्त में सभी के लिए एक जैसी शर्त रखना उपयुक्त नहीं है।

वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों का विभाग मसौदा दिशानिर्देशों पर बैंकों और आधारभूत परियोजनाओं को ऋण देने वाले ऋणदाताओं से प्रतिक्रियाएं जुटाने में सहयोग दे रहा है। इस पर विचार होने के बाद वरिष्ठ अधिकारी आरबीआई के साथ बैठक करेंगे और इस मुद्दे पर सरकार का रुख स्पष्ट करेंगे। सभी संबंधित पक्षों को 15 जून तक सुझाव देने के लिए कहा गया था।

आरबीआई भी अपने इस मसौदा दिशानिर्देशों पर मिल रही प्रतिक्रियाओं पर माथापच्ची कर रहा है। केंद्रीय बैंक को बैंकिंग क्षेत्र की वित्तीय सेहत सुरक्षित रखने और आर्थिक वृद्धि के लिए अनुकूल माहौल तैयार करने के बीच संतुलन स्थापित करना होगा।

यह कहा जा रहा है कि आरबीआई इस पूरे मामले समाधान निकालने के लिए आवश्यकता से अधिक कदम उठा रहा है। यह सुझाव भी दिया जा रहा है कि एक समान प्रावधान नियमों के बजाय सभी संस्थानों के लिए अलग-अलग नजरिया रखना अधिक उचित होगा। जो भी हो, यह सभी मान रहे हैं कि आधारभूत ढांचे में निवेश अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में प्रमुख योगदान देता आ रहा है और आगे भी देता रहेगा।

(लेखक आधारभूत क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं। लेख में वृंदा सिंह का भी योगदान)

First Published - June 17, 2024 | 9:17 PM IST

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