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सेनवैट से झुलस रहा है देसी माचिस उद्योग

Last Updated- December 05, 2022 | 4:32 PM IST

भारत का दियासलाई उद्योग आजकल मुश्किलों की आग में झुलस रहा है। इस उद्योग को घरेलू मुश्किलों केअलावा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।


दरअसल इस उद्योग को टैक्स (सेनवैट) में राहत नहीं मिलने की वजह से इसके लिए पाकिस्तान और इंडोनेशिया जैसे प्रमुख दियासलाई उत्पादक देशों से मुकाबला करने में काफी मुश्किल हो रही है। साथ ही दियासलाई इंडस्ट्री को इससे जुड़े अंसगठित क्षेत्र से भी काफी चुनौती मिल रही है।


तमिलनाडु के दक्षिणी जिलों में असंगठित क्षेत्र का दबदबा है। दियासलाई पर 12 फीसदी की दर सेंट्रल वैल्यू ऐडेड टैक्स (सेनवैट) लगता है।


असंगठित क्षेत्र इस टैक्स को अदा नहीं करते हैं और इस वजह से इस इंडस्ट्री के विकास को नुकसान पहुंचने की आशंका नजर आ रही है। गौरतलब है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा दियासलाई उत्पादक देश है।


शिवकासी स्थित एशिया मैच कंपनी के अशोक निदेशक एस. श्रीराम कहते हैं कि अंसगठित क्षेत्र की दियासलाई निर्माता कंपनियों की वजह से सरकार को सालाना 120 रुपये करोड़ टैक्स का चूना लग रहा है।


उनके मुताबिक दियासलाई उद्योग से सेनवैट के रूप में सरकार को महज 55 करोड़ रुपये सालाना राजस्व प्राप्त हो रहा है। अशोक ऑल इंडिया चैंबर ऑफ मैच इंडस्ट्रीज (एआईसीएमआई) के प्रमुख हैं। इस संगठन में इस क्षेत्र की 200 कंपनियां शामिल हैं।


अशोक कहते हैं कि माचिस का उत्पादन मशीन और मैन्युल (हस्तचालित) दोनों तरीकों से हो रहा है। इस वजह से एक बड़ी समस्या उत्पादन के वर्गीकरण की खड़ी हो जाती है।


उन्होंने बताया कि लघु स्तर की बहुत सारी कंपनियां मशीन के जरिए माचिस का उत्पादन करती हैं, जबकि उन्होंने खुद को हस्तउत्पादक घोषित कर रखा है। इस वजह से ये खुद को 12 फीसदी सेनवैट से बचा लेते हैं, जबकि बड़ी कंपनियों को यह टैक्स अदा करना पड़ता है।


इस इंडस्ट्री का संगठित क्षेत्र माचिस की तीलियों और इसके डब्बे को तैयार करने में भी मशीनी प्रक्रिया का सहारा लेता है, जबकि इस काम में लगीं असंगठित क्षेत्र की कंपनियां इन चीजों को सीधे आउटसोर्स कर लेती हैं और अपने उत्पाद को 100 फीसदी हस्तउत्पाद बताकर टैक्स से बच जाती हैं।


शिवकासी स्थित दियासलाई बनाने वाली कंपनी सुंदरवेल के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, 2003 तक दियासलाई के डब्बों पर कीमतों का उल्लेख करना जरूरी था और इसके चलते पूरी इंडस्ट्री के लिए टैक्स से बचना नाममुमकिन था।


 इस सिस्टम के खत्म होने के बाद सेनवैट लागू किया गया, जिसके तहत टैक्स का निर्धारण मात्रा के बजाय बिक्री की राशि पर किए जाने का प्रावधान है।


अशोक के मुताबिक, अब टैक्स से बचना एक ट्रेंड बन चुका है। एआईसीएमई ने वित्त मंत्री पी. चिदंबरम से दियासलाई इंडस्ट्री पर से सेनवैट हटाकर इसके बदले 1 फीसदी कर (सेस) लगाने की मांग की है।


संगठन को उम्मीद है कि तय मानदंडों के तहत केवीआईसी और दूसरी सरकारी एजेंसियों के जरिए रजिस्टर्ड हैंडमेंड दियासलाई उत्पादकों को भी यह कर अदा करना होगा। एआईसीएमआई के अधिकारियों के मुताबिक, टैक्स नियमों के पालन को बढ़ावा देने की दिशा में एक और विकल्प कारगर साबित हो सकता है।


इसके तहत सेनवैट की दर को 12 फीसदी से घटाकर 4 फीसदी किया जा सकता है। अधिकारियों का कहना है कि लेकिन इस बजट में इस बाबत कोई प्रावधान नहीं किया गया।


एआईसीएमई के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में दियासलाई का उत्पादन सालाना तकरीबन 9 करोड़ बंडल है। इनमें लगभग 1 करोड़ 80 लाख बंडल येन-केन-प्रकारेण टैक्स से खुद को बचा लेते हैं। संगठित क्षेत्र के 7 करोड़ 20 लाख बंडल के उत्पादन में 66 लाख बंडलों का निर्यात किया जाता है और इसके बाद बचे बंडलों पर लगे टैक्स के जरिए 175 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होना चाहिए।


 लेकिन इस टैक्स के जरिए महज 55 करोड़ रुपये प्राप्त होते हैं। एआईसीएमई के अशोक कहते हैं कि उत्पाद अधिकारियों के लिए इस उद्योग में शामिल अंसगिठत क्षेत्र के हजारों वैसे खिलाड़ियों पर नजर रखना बहुत मुश्किल है, जो अवैध तरीके से सेनवैट से बचते रहे हैं।


उनके मुताबिक, पिछले कुछ समय में रुपये में 5-6 फीसदी की बढ़ोतरी के बावजूद संगठित क्षेत्र पर इसका ज्यादा असर नहीं पड़ा है। हालांकि, भारतीय दियासलाई इंडस्ट्री को पाकिस्तान और इंडोनेशिया जैसे मुल्कों से तगड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।


पाकिस्तान को तीलियों के लिए लकड़ी भी सस्ते में मिल रही है और साथ ही उसे डॉलर के मुकाबले रुपये की बढ़त का भी फायदा मिल रहा है। भारत ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में जहां 1 हजार डब्बों के एक कार्टून के लिए 9.5 डॉलर ( तकरीबन 380रुपये) कीमत तय कर रखी है, वहीं पाकिस्तान ने एक कार्टून दियासलाई की कीमत महज 6.5 डॉलर (तकरीबन 260 रुपये) तय की है।


अशोक कहते हैं कि जाहिर है हम कीमतें बढ़ाने में सक्षम नहीं हैं और अब हम सेनवैट टैक्स लाभों से भी वंचित हो रहे हैं। फिलहाल दियासलाई उद्योग के प्रतिनिधियों का कहना है कि इस उद्योग को बचाने के लिए सेहतमंद टैक्स व्यवस्था की जरूरत है।

First Published - March 12, 2008 | 9:42 PM IST

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