facebookmetapixel
Test Post कैश हुआ आउट ऑफ फैशन! अक्टूबर में UPI से हुआ अब तक का सबसे बड़ा लेनदेनChhattisgarh Liquor Scam: पूर्व CM भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य को ED ने किया गिरफ्तारFD में निवेश का प्लान? इन 12 बैंकों में मिल रहा 8.5% तक ब्याज; जानिए जुलाई 2025 के नए TDS नियमबाबा रामदेव की कंपनी ने बाजार में मचाई हलचल, 7 दिन में 17% चढ़ा शेयर; मिल रहे हैं 2 फ्री शेयरIndian Hotels share: Q1 में 19% बढ़ा मुनाफा, शेयर 2% चढ़ा; निवेश को लेकर ब्रोकरेज की क्या है राय?Reliance ने होम अप्लायंसेस कंपनी Kelvinator को खरीदा, सौदे की रकम का खुलासा नहींITR Filing 2025: ऑनलाइन ITR-2 फॉर्म जारी, प्री-फिल्ड डेटा के साथ उपलब्ध; जानें कौन कर सकता है फाइलWipro Share Price: Q1 रिजल्ट से बाजार खुश, लेकिन ब्रोकरेज सतर्क; क्या Wipro में निवेश सही रहेगा?Air India Plane Crash: कैप्टन ने ही बंद की फ्यूल सप्लाई? वॉयस रिकॉर्डिंग से हुआ खुलासाPharma Stock एक महीने में 34% चढ़ा, ब्रोकरेज बोले- बेचकर निकल जाएं, आ सकती है बड़ी गिरावट

Editorial: एक नई शुरुआत! ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर का काम पूरा

यह कॉरिडोर पंजाब, हरियाणा के अलावा उत्तर प्रदेश से होता हुआ बिहार तक गया है और निश्चित रूप से यह मालवहन के समय को लगभग आधा कर देगा।

Last Updated- October 27, 2023 | 8:18 PM IST
Railways

पंजाब से बिहार तक जाने वाले 1,337 किलोमीटर लंबे ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (EDFC) का काम पूरा हो चुका है और आगामी 1 नवंबर को उसके संभावित उद्घाटन को उत्सव के रूप में देखा जा रहा है।

यह कॉरिडोर पंजाब, हरियाणा के अलावा उत्तर प्रदेश से होता हुआ बिहार तक गया है और निश्चित रूप से यह मालवहन के समय को लगभग आधा कर देगा।

इससे पश्चिमोत्तर के राज्यों में स्थित ताप बिजली घरों तक कोयला जल्द पहुंचाने में मदद मिलेगी। गर्मियों में जब बिजली की मांग बहुत बढ़ जाती है तो यह समस्या बहुत परेशान करती है। ऐसे में इसे एक बेहतर लाभ माना जा सकता है।

ईडीएफसी एक व्यापक परियोजना का हिस्सा है जिसमें 1,506 किलोमीटर लंबा वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर शामिल है जो महाराष्ट्र और गुजरात को उत्तर प्रदेश और हरियाणा के साथ जोड़ेगा। 2005 में प्रस्तावित और 2008 में कैबिनेट की मंजूरी पाने वाली इस परियोजना को बेहतरीन अधोसंरचना परियोजना होना था।

इस समय जबकि ईडीएफसी की शुरुआत की तैयारी हो चुकी है, इस परियोजना को लेकर कई प्रश्न उठ खड़े हुए हैं जो भविष्य में इतने बड़े पैमाने पर शुरू होने वाली परियोजनाओं के लिए जरूरी सबक प्रदान कर सकते हैं।

इनमें प्रमुख सबक है 2017-18 की मूल समयसीमा से पांच वर्ष की देरी। यह देरी परियोजना के दोनों चरणों पर बहुत भारी पड़ी और इसकी लागत 54 फीसदी बढ़कर 1.24 लाख करोड़ रुपये हो गई। 1,337 किलोमीटर लंबा ईडीएफसी जिसके कुछ हिस्से 2020 से ही चालू हो गए हैं, की लागत 51,000 करोड़ रुपये रही है।

देरी की एक वजह तो वही है जो देश में किसी भी बड़ी अधोसंरचना परियोजना में सामने आती है यानी जमीन का अधिग्रहण। परंतु रेलवे की दिक्कतों ने भी अहम भूमिका निभाई।

उदाहरण के लिए 2022 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (डीएफसीसीआईएल) की खिंचाई करते हुए कहा था कि ठेकेदारों को जमीन सौंपने में देरी, डिजाइन तैयार करने में देरी, जमीन का इस्तेमाल बदलने और उपकरण संबंधी कामों में देरी के कारण लागत बढ़ रही है।

यह साफ तौर पर ढांचागत कमी की ओर संकेत था। ईडीएफसी की लंबाई कम करने को भी भलीभांति नहीं समझाया गया। मूल रूप से ईडीएफसी को पश्चिम बंगाल में डानकुनी तक जाना था लेकिन मौजूदा कॉरिडोर बिहार के सोन नगर में समाप्त हो जाता है। अब सरकार का कहना है कि सोन नगर से पश्चिम बंगाल तक का हिस्सा डानकुनी के दक्षिण-पूर्व में आंदुल में समाप्त होगा।

मार्ग में इस बदलाव को लेकर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया, हालांकि यह संभव है कि नया टर्मिनल मालवहन की दृष्टि से बेहतर हो क्योंकि यह हावड़ा स्टेशन और कलकत्ता बंदरगाह के निकट है। 400 किलोमीटर लंबा यह हिस्सा डीएफसीसीआईएल द्वारा नहीं बल्कि रेलवे द्वारा बनाया जाएगा लेकिन इसकी वजह स्पष्ट नहीं की गई है।

आखिर में, एक प्रश्न यह भी है कि ट्रेनें किस गति से दौड़ेंगी। सरकार ने 2019 में घोषणा की थी कि यहां ट्रेनें औसतन 70 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलेंगी जबकि भारतीय रेल की पटरियों पर वे औसतन 26 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ही चलती हैं।

कॉरिडोर में उनकी अधिकतम रफ्तार 100 किमी प्रति घंटे होने की बात कही गई थी। जबकि बाहर यह 75 किमी प्रति घंटे है। लेकिन अब अधिकारियों का कहना है कि औसत गति 50-60 किमी प्रति घंटे ही होगी। हालांकि यह रेलवे की औसत गति से काफी अधिक है लेकिन मूल घोषणा से काफी कम भी है।

डीएफसीसीआईएल के अधिकारियों का कहना है कि 95 फीसदी परियोजना मार्च 2024 तक पूरी हो जाएगी। यदि ऐसा हुआ तो देश में उद्योग जगत की कई दिक्कतों में उल्लेखनीय कमी आएगी।

रेलवे मालवहन की धीमी गति के कारण ही उसने काफी हिस्सेदारी सड़क परिवहन के हाथों गंवा दी है और अब कुल मालवहन का केवल 27 फीसदी उसके पास है। 2030 तक इसे बढ़ाकर 45 फीसदी करने की योजना है। डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर का संचालन इस लक्ष्य को हासिल करने की राह में पहली बड़ी परीक्षा होगी।

First Published - October 16, 2023 | 10:41 PM IST

संबंधित पोस्ट