facebookmetapixel
Test Post कैश हुआ आउट ऑफ फैशन! अक्टूबर में UPI से हुआ अब तक का सबसे बड़ा लेनदेनChhattisgarh Liquor Scam: पूर्व CM भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य को ED ने किया गिरफ्तारFD में निवेश का प्लान? इन 12 बैंकों में मिल रहा 8.5% तक ब्याज; जानिए जुलाई 2025 के नए TDS नियमबाबा रामदेव की कंपनी ने बाजार में मचाई हलचल, 7 दिन में 17% चढ़ा शेयर; मिल रहे हैं 2 फ्री शेयरIndian Hotels share: Q1 में 19% बढ़ा मुनाफा, शेयर 2% चढ़ा; निवेश को लेकर ब्रोकरेज की क्या है राय?Reliance ने होम अप्लायंसेस कंपनी Kelvinator को खरीदा, सौदे की रकम का खुलासा नहींITR Filing 2025: ऑनलाइन ITR-2 फॉर्म जारी, प्री-फिल्ड डेटा के साथ उपलब्ध; जानें कौन कर सकता है फाइलWipro Share Price: Q1 रिजल्ट से बाजार खुश, लेकिन ब्रोकरेज सतर्क; क्या Wipro में निवेश सही रहेगा?Air India Plane Crash: कैप्टन ने ही बंद की फ्यूल सप्लाई? वॉयस रिकॉर्डिंग से हुआ खुलासाPharma Stock एक महीने में 34% चढ़ा, ब्रोकरेज बोले- बेचकर निकल जाएं, आ सकती है बड़ी गिरावट

Editorial: रोजगार रहित वृद्धि!

सरकार के रोजगार सर्वेक्षण और स्वतंत्र आर्थिक विशेषज्ञों द्वारा किए गए अध्ययन रोजगार संबंधी नतीजों की ढांचागत खामियों को समय-समय पर रेखांकित करते रहे हैं।

Last Updated- October 27, 2023 | 8:20 PM IST
Employment in India

भारत के लिए सबसे बड़ी नीतिगत चुनौतियों में से एक रही है युवाओं और बढ़ती श्रम योग्य आबादी के लिए रोजगार की व्यवस्था करना। सन 1980 के दशक के मध्य से ही हमारी आर्थिक वृद्धि में तेजी आ रही है लेकिन रोजगार की स्थिति में कोई वांछित बदलाव नहीं आ रहा है।

हालांकि कुछ पहलुओं में सुधार हुआ है। सरकार के रोजगार सर्वेक्षण और स्वतंत्र आर्थिक विशेषज्ञों द्वारा किए गए अध्ययन रोजगार संबंधी नतीजों की ढांचागत खामियों को समय-समय पर रेखांकित करते रहे हैं।

अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की एक नई रिपोर्ट जिसमें विभिन्न स्रोतों से हासिल आंकड़ों मसलन सावधिक श्रम शक्ति सर्वेक्षण, उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण, आर्थिक जनगणना और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण आदि का इस्तेमाल किया गया, उसने व्यापक तौर पर रोजगार की स्थितियों का आकलन किया है। कुछ आंकड़ों और निष्कर्षों को व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है लेकिन इस विषय के महत्त्व को देखते हुए जरूरत है कि इस पर निरंतर बहस जारी रहे।

जैसा कि अध्ययन में रेखांकित किया गया है, बीते वर्षों में गैर कृषि क्षेत्र के रोजगार में इजाफा हुआ है। बहरहाल, हमें अच्छे वेतन वाले नियमित रोजगार हासिल नहीं हुए। सन 1983 और 2019 के बीच गैर कृषि रोजगारों की हिस्सेदारी में करीब 20 फीसदी का इजाफा हुआ।

परंतु नियमित वेतन वाले रोजगार केवल तीन फीसदी ही बढ़े। संगठित क्षेत्र में यह इजाफा दो फीसदी से भी कम था। प्रभावी तरीके से देखें तो इसका अर्थ यह हुआ कि कृषि क्षेत्र से बाहर आने वाले अधिकांश लोग कम वेतन वाले और यदाकदा वाले काम करते हैं। यह बात ध्यान देने लायक है कि पुरुष जहां बहुत बड़ी तादाद में निर्माण क्षेत्र के कामकाज में लग गए, वहीं महिलाओं के कृषि क्षेत्र से अलग होने का अर्थ था उनका श्रम शक्ति से बाहर हो जाना।

ग्रामीण भारत में महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी 2000 के दशक के 40 फीसदी से कम होकर 28 फीसदी रह गई। महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी 2019 से बढ़ी है लेकिन उनमें से अधिकांश स्वरोजगार कर रही हैं। श्रम शक्ति में महिलाओं की कम भागीदारी का एक अर्थ यह भी है भारत की कुल श्रम भागीदारी दर कम बनी हुई है और यह समस्त वृद्धि को प्रभावित कर रहा है।

श्रम शक्ति में शामिल हो रहे युवाओं और शिक्षितों के लिए रोजगार की स्थिति खासतौर पर चुनौतीपूर्ण है। अध्ययन में यह रेखांकित किया गया है कि स्नातकों के लिए बेरोजगारी की दर करीब 15 फीसदी है लेकिन युवा स्नातकों के मामले में यह बढ़कर 42 फीसदी हो जाती है।

बुजुर्गों और कम शिक्षित लोगों के लिए बेरोजगारी की दर काफी कम है। यानी भारत अपने शिक्षित लोगों के लिए पर्याप्त रोजगार नहीं तैयार कर पा रहा है। यह भी संभव है कि युवा स्नातकों के पास शायद सही कौशल न हो। एक उत्साहित करने वाला निष्कर्ष है कि सभी समुदायों के लिए नहीं लेकिन फिर भी अंतर-पीढ़ीगत गतिशीलता में सुधार हुआ है।

उदाहरण के लिए 2004 में आम श्रमिकों में से 80 फीसदी के बेटों ने भी वही पेशा अपना लिया। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से इतर लोगों की बात करें तो 2018 तक यह अनुपात घटकर 53 फीसदी रह गया। जबकि अनुसूचित जाति-जनजाति के मामले में बहुत कम गिरावट आई।

वास्तविक समस्या यह है कि भारत पर्याप्त रोजगार तैयार ही नहीं कर सका। बहरहाल दिलचस्प यह है कि अध्ययन के अनुसार दीर्घावधि में सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि और रोजगार तैयार करना दोनों आपस में संबद्ध नहीं हैं। अलग तरह से देखें तो बीते वर्षों की उच्च वृद्धि की तुलना में समुचित रोजगार तैयार नहीं हुए हैं और यह भी संभव है कि भविष्य की वृद्धि का भी यही नतीजा हो।

अध्ययन में कहा गया है कि इसकी एक वजह बढ़ती श्रम उत्पादकता भी हो सकती है जो रोजगार के प्रभाव को निरस्त करती है। यह भी संभव है कि कई अन्य विकासशील देशों के उलट भारत में वृद्धि कम कौशल वाले विनिर्माण से संचालित न हो। जबकि ऐसे ही रोजगार में कृषि से बाहर आ रहे लोगों का समायोजन करने की अधिक संभावना होती है। रोजगार रहित वृद्धि का बड़ा जोखिम यह है कि यह दीर्घावधि में टिकाऊ साबित नहीं होगी। नीति निर्माताओं को इस बात से अवश्य चिंतित होना चाहिए।

First Published - September 21, 2023 | 9:16 PM IST

संबंधित पोस्ट