facebookmetapixel
Test Post कैश हुआ आउट ऑफ फैशन! अक्टूबर में UPI से हुआ अब तक का सबसे बड़ा लेनदेनChhattisgarh Liquor Scam: पूर्व CM भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य को ED ने किया गिरफ्तारFD में निवेश का प्लान? इन 12 बैंकों में मिल रहा 8.5% तक ब्याज; जानिए जुलाई 2025 के नए TDS नियमबाबा रामदेव की कंपनी ने बाजार में मचाई हलचल, 7 दिन में 17% चढ़ा शेयर; मिल रहे हैं 2 फ्री शेयरIndian Hotels share: Q1 में 19% बढ़ा मुनाफा, शेयर 2% चढ़ा; निवेश को लेकर ब्रोकरेज की क्या है राय?Reliance ने होम अप्लायंसेस कंपनी Kelvinator को खरीदा, सौदे की रकम का खुलासा नहींITR Filing 2025: ऑनलाइन ITR-2 फॉर्म जारी, प्री-फिल्ड डेटा के साथ उपलब्ध; जानें कौन कर सकता है फाइलWipro Share Price: Q1 रिजल्ट से बाजार खुश, लेकिन ब्रोकरेज सतर्क; क्या Wipro में निवेश सही रहेगा?Air India Plane Crash: कैप्टन ने ही बंद की फ्यूल सप्लाई? वॉयस रिकॉर्डिंग से हुआ खुलासाPharma Stock एक महीने में 34% चढ़ा, ब्रोकरेज बोले- बेचकर निकल जाएं, आ सकती है बड़ी गिरावट

Editorial: हल्दीराम से अमूल तक, ग्लोबल मंच पर भारतीय ब्रांड्स की मजबूती और चुनौतियां

वर्ष1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था के वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए खुलने के बाद से ही भारतीय घर-परिवारों में विदेशी कंपनियों का ही दबदबा रहा है।

Last Updated- January 10, 2025 | 9:55 PM IST
From Haldiram to Amul, strengths and challenges of Indian brands on the global stage हल्दीराम से अमूल तक, ग्लोबल मंच पर भारतीय ब्रांड्स की मजबूती और चुनौतियां

कई विदेशी प्राइवेट इक्विटी फर्मों द्वारा देश की स्नैक्स फूड निर्माता कंपनी हल्दीराम में हिस्सेदारी खरीदने के लिए हो रही होड़ हमें यह भी याद दिलाती है कि वैश्विक बाजारों में भारतीय ब्रांडों की उपस्थिति यदाकदा ही नजर आती है। वर्ष1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था के वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए खुलने के बाद से ही भारतीय घर-परिवारों में विदेशी कंपनियों का ही दबदबा रहा है। कई भारतीय ब्रांड या तो गायब हो गए या विदेशी प्रतिस्पर्धा के हाथों अपनी जगह गंवा बैठे।

ओनिडा और वीडियोकॉन जहां एक समय टीवी, वॉशिंग मशीन और घरेलू उपयोग के उपकरणों के मामले में देश में दबदबा रखते थे, वहीं अब जापानी, कोरियाई और चीन के ब्रांड ही शोरूम पर छाए हुए नजर आते हैं। कारों की बात करें तो जापान की सुजूकी द्वारा भारतीय ब्रांड मारुति के साथ बाजार में आने के साथ ही प्रीमियर पद्मिनी और ऐंबेसडर बाजार से गायब हो गईं।

कार बाजार में भी जापान, कोरिया, जर्मनी और चीन की कंपनियां उपभोक्ताओं की पसंद बनी हुई हैं। टाटा और महिंद्रा ऐंड महिंद्रा ही देसी अपवाद के रूप में बाजार में हैं। दैनिक उपयोग की उपभोक्ता वस्तुओं की बात करें तो एंकर, निरमा, अंकल चिप्स और बिन्नी जैसे ब्रांड जो एक समय बहुराष्ट्रीय कंपनियों को कड़ी टक्कर देते थे, अब वे या तो गायब हो चुके हैं या बाजार के बहुत छोटे से हिस्से तक सिमट चुके हैं।

इसके विपरीत हल्दीराम उन चुनिंदा भारतीय कंपनियों में शामिल हैं जिसने न केवल लेज, नेस्ले, केलॉग्स, हैरिबो तथा अन्य बहुराष्ट्रीय ब्रांडों की बाढ़ के बीच न केवल अपनी मौजूदगी बनाए रखी बल्कि वृद्धि भी हासिल की। उसने अपने ब्रांड को वैश्विक छवि भी प्रदान की। अब यूनाइटेड किंगडम, उत्तरी अमेरिका और दक्षिण पूर्व और पश्चिम एशिया में उसकी फैक्टरियां और रेस्टोरेंट हैं।

गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड (जीसीएमएमएफ) का प्रमुख ब्रांड अमूल एक और उल्लेखनीय उदाहरण है। भारत की श्वेत क्रांति का गौरव अब 80,000 करोड़ रुपये का ब्रांड बन चुका है जिसने विदेशी ब्रांडों और असंगठित क्षेत्र की लगातार बढ़ती प्रतिस्पर्धा के बीच दूध, डेरी और चॉकलेट के अपने मुख्य कारोबार का बहुत मजबूती से विस्तार किया है।

अमूल न केवल अमेरिका और यूरोपीय संघ समेत 50 से अधिक देशों को​ निर्यात करता है बल्कि वह ग्लोबल डेरी ट्रेड का एक सदस्य भी है। यह वह प्लेटफॉर्म है जहां दुनिया के छह शीर्ष डेरी कारोबारी अपने उत्पाद बेचते हैं। इन बातों के बीच देखा जाए तो वैश्विक स्तर पर स्वदेशी ब्रांडों की बहुत कम मौजूदगी है। इसके अलावा विदेशी बाजारों में पहुंच बनाने वाली कंपनियों की बात करें तो बजाज के दोपहिया वाहन, अफ्रीका और पश्चिम एशिया में कई दशकों से मौजूद हैं और एयरटेल का टेलीफोन नेटवर्क पूरे अफ्रीका में है।

भारतीय ब्रांड वैश्विक प्रतिस्पर्धा के आगे घुटने टेक रहे हैं। कई तो खुद को अनुबंधित निर्माताओं में तब्दील कर रहे हैं। यह बताता है कि उनमें उस दीर्घकालिक सोच और रणनीतिक कल्पना की कमी है जो ब्रांड तैयार करने के लिए आवश्यक है। ये कमियां दिखाती हैं कि कैसे संरक्षणवादी लाइसेंस राज ने कंपनियों की प्रतिस्पर्धी क्षमता और सोच प्रक्रिया को कमजोर किया है।

कहने का अर्थ यह नहीं है कि भारतीय कारोबार वैश्विक प्रतिस्पर्धा का मुकाबला नहीं कर सकते। उनमें से कई खुली प्रतिस्पर्धा में गुजर कर ऐसा करने में सफल साबित हो चुकी हैं। उदाहरण के लिए जेट एयरवेज (बंद होने के पहले), इंडिगो और विस्तारा (एयर इंडिया में विलय तक) ने दुनिया की सबसे बड़ी विमानन कंपनियों की मौजूदगी और प्रतिस्पर्धा के बीच अंतरराष्ट्रीय आसमानों में अपने लिए जगह बनाई।

अब अमृत, रामपुर और जॉन पाल जैसे सिंगल माल्ट ब्रांड स्कॉट ब्रुअरीज के दबदबे वाले क्षेत्र में तेजी से अपनी जगह बना रहे हैं। इन नए भारतीय ब्रांडों के सही मायनों में विश्वस्तरीय बनने की सराहना करनी चाहिए।

First Published - January 10, 2025 | 9:55 PM IST

संबंधित पोस्ट