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संपादकीय: मॉनसून की बारिश में कृषि उपज की बरबादी न हो

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुख्य मुद्रास्फीति दर 4% से नीचे बनी हुई है, लेकिन खाद्य पदार्थों की ऊंची महंगाई ने समग्र मुद्रास्फीति दर को रिजर्व बैंक के लक्ष्य से ऊपर रखा है।

Last Updated- May 28, 2024 | 10:58 PM IST
Rice production will be a record 150 million tons, USDA raised estimates

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने फिर यह बात कही है कि इस साल देश में मॉनसून की बारिश सामान्य से ज्यादा होगी। वर्षा सिंचित क्षेत्रों में भी इस साल अच्छी बारिश होने की उम्मीद है जो कृषि पैदावार बढ़ाने में मददगार साबित होगी। ऊंचे उत्पादन से स्वाभाविक रूप से खाद्य महंगाई पर काबू पाने में मदद मिलेगी। यह गौर करना अहम होगा कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुख्य मुद्रास्फीति दर 4 फीसदी से नीचे बनी हुई है, लेकिन खाद्य पदार्थों की ऊंची महंगाई ने समग्र मुद्रास्फीति दर को रिजर्व बैंक के लक्ष्य से ऊपर रखा है।

उदाहरण के लिए अप्रैल में खाद्य मुद्रास्फीति दर 8.7 फीसदी थी। महंगाई के प्रबंधन के लिहाज से देखें, जब खाद्य उत्पादन में सुधार से कीमतों और महंगाई पर अंकुश बने रहने की संभावना है, भारत को जल्द खराब होने वाले उत्पादों की आपूर्ति श्रृंखला बेहतर करने पर भी काम करना चाहिए जिनकी महंगाई के उतार-चढ़ाव में ज्यादा भूमिका होती है। उदाहरण के लिए कुछ महीने पहले सब्जियों की कीमतों ने समग्र मुद्रास्फीति दर को बढ़ा दिया था।

यह इस तथ्य के बावजूद है कि भारत दुनिया में सब्जियों और फलों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। यहां साल 2022-23 में बागवानी उत्पादों की पैदावार करीब 35.19 करोड़ टन रही और उसी वर्ष में उन्होंने कुल अनाज उत्पादन को पीछे छोड़ दिया। लेकिन सच यह भी है कि इनमें से टनों उत्पाद बरबाद हो गए। करीब 15 फीसदी फल और सब्जियां उपज हासिल करने के बाद ही बरबाद हो जाती हैं।

जलवायु परिवर्तन की वजह से पड़ने वाली अतिशय गर्मी से आने वाले वर्षों में हालत और बदतर हो सकती है। बुनियादी ढांचे में सुधार से इस बरबादी को कम करने में मदद मिल सकती है। देश में शीत भंडार गृह और प्रशीतन सुविधाएं अपर्याप्त हैं जो पूरे आपूर्ति श्रृंखला के लिए अड़चन है।

तापमान नियंत्रित आपूर्ति श्रृंखला से खराब हो सकने वाली सामग्री को संरक्षित करने में काफी मदद मिलती है और इससे यह सुनिश्चित होता है कि उपभोक्ताओं तक खाद्य पदार्थ अधिक से अधिक सही स्थिति में पहुंच सकें। ध्यान देने की बात यह भी है कि देश में करीब 3.9 करोड़ टन की मौजूदा शीत भंडार गृह क्षमता के एक बड़े हिस्से का इस्तेमाल ही नहीं हो पाता है।

यही नहीं, अभी जो शीत भंडार गृह इकाइयां हैं उनका भौगोलिक इलाकों के हिसाब से वितरण भी असमान है। उदाहरण के लिए ज्यादातरण शीत भंडार गृह सुविधाएं उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात, पंजाब और आंध्र प्रदेश में केंद्रित हैं, जबकि बिहार और मध्य प्रदेश में ऐसी सुविधाएं अपर्याप्त हैं। ज्यादातर शीत भंडार गृह केंद्रों का डिजाइन इस तरह का है कि वे एक समय में एक ही जिंस का संग्रहण कर पाते हैं। इसलिए देश में मल्टी-स्टोरेज शीत भंडार गृह क्षमता को बढ़ाने की जरूरत है।

भारत के ज्यादातर किसान गरीब और छोटे, बिखरे जोत वाले हैं तथा खेती से उनकी कमाई बहुत कम होती है, इसलिए यह संभव नहीं है कि विकेंद्रित तरीके से भंडारण ढांचे में निवेश किया जा सके। देश की करीब 92 फीसदी शीत भंडार गृह इकाइयों का संचालन और स्वामित्व निजी क्षेत्र में है, इसलिए भंडारण ढांचे में कमी की समस्या के समाधान के लिए सरकार के दखल की गुंजाइश है।

वैसे तो ऐसे भंडारण केंद्रों, पैक हाउस सहित, की स्थापना के लिए सरकार 35 से 50 फीसदी तक सब्सिडी देती है, फिर भी इनकी लागत काफी ज्यादा होती है। खेतों और थोक बाजारों या मंडियों के बीच काफी दूरी और खराब सड़कों जैसी अन्य समस्याएं भी आपूर्ति श्रृंखला में अवरोध को बढ़ा देती हैं जिससे ढुलाई के दौरान ही कुछ पैदावार खराब हो जाती है। भारत में सड़क संजाल का करीब 30 फीसदी हिस्सा अब भी कच्चा है जिससे कृषि पैदावार को मंडियों तक ले जाने में काफी दूरी और समय लगता है और इसका असर भी कीमतों पर पड़ता है।

प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर खाद्य पदार्थों की बरबादी को काफी कम किया जा सकता है। देश में होने वाली ऐसी बरबादी को कम से कम करने के लिए कृषि में मशीनीकरण को बढ़ाने, सटीक कृषि दस्तूर अपनाने, जलवायु अनुकूल कृषि-खाद्य प्रणाली अपनाने जैसे उपाय अहम हो सकते हैं। हालांकि भंडारण और सड़क संजाल के बुनियादी ढांचे में क्षमता सुधार तथा खेतों से मंडियों के बीच दूरी कम करना नीतिगत प्राथमिकता बनी रहनी चाहिए। आपूर्ति श्रृंखला में सुधार से कीमतों में उतार-चढ़ाव को रोकने में मदद मिलेगी जिससे उत्पादकों और उपभोक्ताओं, दोनों का भला होगा।

First Published - May 28, 2024 | 10:58 PM IST

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