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Editorial: RBI की MPC बैठक के फैसले से हैरानी नहीं, मगर महंगाई दर के लक्ष्य पर रहेगी नजर

RBI MPC Meet 2024: आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था की आर्थिक वृद्धि दर 7.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है।

Last Updated- August 08, 2024 | 9:41 PM IST
No surprise from the decision of RBI's MPC meeting, but inflation target will be monitored RBI की MPC बैठक के फैसले से हैरानी नहीं, मगर महंगाई दर के लक्ष्य पर रहेगी नजर
RBI मुख्यालय में मौद्रिक नीति वक्तव्य पर प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान गवर्नर शक्तिकांत दास डिप्टी गवर्नर एम.डी. पात्रा, एम. राजेश्वर राव, स्वामीनाथन जे. और टी रबी शंकर के साथ।

RBI 50th MPC Meet:  गुरुवार को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की 50वीं बैठक के नतीजे से किसी को कोई हैरानी नहीं हुई। इसका अंदाजा पहले से था कि एमपीसी की बैठक में नीतिगत दरें यथावत रहेंगी और केंद्रीय बैंक के नजरिये में भी कोई बदलाव नहीं होगा। ऐसा हुआ भी और आरबीआई ने रीपो दर 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखी।

एमपीसी ने आर्थिक वृद्धि और मुद्रास्फीति के अनुमानों में भी कोई बदलाव नहीं किया। आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था की आर्थिक वृद्धि दर 7.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में वृद्धि दर भी 7.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है। एमपीसी को लगता है कि समग्र मुद्रास्फीति (हेडलाइन इन्फ्लेशन) चालू वित्त वर्ष में औसतन 4.5 प्रतिशत के स्तर पर रह सकती है। वित्त वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही में समग्र मुद्रास्फीति 4.4 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया है।

यद्यपि, मौद्रिक नीति से संबंधित घोषणाओं में अधिकांश बातें अनुमानों के अनुरूप ही रहीं परंतु मुद्रास्फीति लक्ष्य निर्धारित करने के तरीके, मौद्रिक नीति संचालन एवं वित्तीय स्थिरता का खास तौर पर जिक्र किया गया।

आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने इन तीनों विषयों से जुड़ी मौलिक बातों का उल्लेख किया। नवीनतम आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि ‘भारत में मुद्रास्फीति लक्ष्य निर्धारित करते समय खाद्य वस्तुओं को बाहर रखना चाहिए, अर्थात इस पर विचार नहीं करना चाहिए’।

इसके पीछे मुख्य तर्क यह दिया गया कि खाद्य मुद्रास्फीति प्रायः मांग पर निर्भर नहीं करती है और आपूर्ति मोर्चे पर होने वाली हलचल इसे अधिक प्रभावित करती है। समीक्षा में कहा गया कि मांग में वृद्धि से मूल्यों में होने वाले परिवर्तन से अल्प अवधि के नीतिगत उपायों से बेहतर तरीके से निपटा जा सकता है।

इस सप्ताह के शुरू में इस समाचार पत्र ने तर्क दिया था कि खाद्य मुद्रास्फीति को नजरअंदाज करना उचित नहीं है। आरबीआई गवर्नर ने सभी बातों पर स्थिति स्पष्ट कर दिया है। इससे किसी भी तरह के संदेह के समाधान में मदद मिलनी चाहिए। इनमें कुछ व्यापक बिंदुओं पर चर्चा करना आवश्यक है।

समग्र उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति दर का लक्ष्य तय करना आरबीआई का प्रमुख ध्येय है। इस सूचकांक में खाद्य मुद्रास्फीति का भारांश लगभग 46 प्रतिशत है, इसलिए इसे बिल्कुल नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उपभोक्ता मुद्रास्फीति को अन्य बातों की तुलना में खाद्य कीमतों के संदर्भ में अधिक समझते हैं। ध्यान देने योग्य है कि मई और जून में समग्र मुद्रास्फीति में खाद्य महंगाई की हिस्सेदारी 75 प्रतिशत से अधिक रही।

खाद्य मुद्रास्फीति घरेलू बजट को भी प्रभावित करती है, जिसका भविष्य में वास्तविक मुद्रास्फीति की दशा-दिशा पर असर पड़ता है। पिछले कुछ महीनों में घरेलू मुद्रास्फीति से जुड़ी चिंता बढ़ गई है। खाद्य मुद्रास्फीति लगातार ऊंचे स्तर पर रहने से परिवारों का बजट बिगड़ सकता है और यह प्रमुख मुद्रास्फीति दर को भी प्रभावित कर सकता है। परिवारों में व्यवहार के स्तर पर बदलाव से मुद्रास्फीति समस्या का कारण बन सकती है और इससे आर्थिक लागत भी बढ़ जाएगी। एमपीसी खाद्य वस्तुओं की कीमतों में अस्थायी बढ़ोतरी को अधिक तवज्जो भले न दे परंतु, इनमें निरंतर बढ़ोतरी नजरअंदाज नहीं की जा सकती।

वित्तीय एवं बैंकिंग क्षेत्र की स्थिरता के संदर्भ में दास ने कहा कि खुदरा निवेशकों के लिए निवेश के वैकल्पिक साधन अधिक लोकप्रिय हो रहे हैं और बैंकों के लिए जमा हासिल करना आसान नहीं रह गया है।

इसका नतीजा यह हुआ है कि बैंक ऋण आवंटन बढ़ाने के लिए अन्य स्रोतों से रकम जुटा रहे हैं परंतु यह व्यवहार संरचनात्मक तरलता से जुड़ी समस्याओं को जन्म दे सकता है। इस बात पर भी जोर दिया गया कि पिछले साल हुए एहतियाती उपायों के बाद भी व्यक्तिगत ऋण खंड में कुछ खास मामलों में अधिक रकम बांटी जा रही है। हालांकि, वित्तीय या बैंकिंग क्षेत्र की स्थिरता के लिए तत्काल कहीं से खतरा नजर नहीं आ रहा है और भारतीय बैंकिंग प्रणाली में पूंजी की कमी नहीं है, परंतु केंद्रीय बैंक ने जिन बातों का उल्लेख किया है उन्हें संकेत मानते हुए किसी संभावित खतरे को समय रहते दूर करने में कोई हर्ज नहीं है।

पिछले कुछ दिनों में वैश्विक वित्तीय बाजार में मची उथल-पुथल पर आरबीआई ने अनावश्यक प्रतिक्रिया देने से परहेज किया है, जो एक अच्छी रणनीति है। बाहरी मोर्चे पर मजबूत स्थिति और आर्थिक वृद्धि लगातार जारी रहने की उम्मीदों के बीच एमपीसी अपने मकसद से नहीं भटकी है और मुद्रास्फीति प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित रखा है।

First Published - August 8, 2024 | 9:41 PM IST

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