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Editorial: बैंकों के ऋण और जमा वृद्धि के बीच कैसे कम होगा अंतर?

घरों की वित्तीय बचत में सुधार जहां अर्थव्यवस्था के लिए अहम है, वहीं बैंक अतिरिक्त बचत जुटाने के लिए और बहुत कुछ कर सकते हैं।

Last Updated- August 15, 2024 | 12:49 AM IST
Bank Holiday

हाल के दिनों में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास दोनों ने बैंकिंग क्षेत्र में ऋण और जमा वृद्धि के बीच बढ़ते अंतर को लेकर चिंता जताई। दास इस विसंगति के बारे में सार्वजनिक रूप से पहले से ही चर्चा करते रहे हैं। उदाहरण के लिए गत सप्ताह मौद्रिक नीति संबंधी निर्णय की घोषणा करते समय उन्होंने कहा कि वैकल्पिक निवेश केंद्र खुदरा निवेशकों के लिए अधिक आकर्षक होते जा रहे हैं।

ऐसे में फंडिंग के मोर्चे पर बैंकों को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इसके परिणामस्वरूप बैंक अल्पावधि के गैर खुदरा फंड तथा अन्य उपायों पर निर्भर हैं ताकि अपने ऋण की बढ़ती मांग की पूर्ति कर सकें। इससे बैंकिंग तंत्र ढांचागत नकदी संकट के जोखिम का शिकार हो सकता है। जमा वृद्धि कुछ समय से ऋण वृद्धि से पीछे है जिसके संभावित परिणाम हमें झेलने पड़ सकते हैं। जैसा कि इस समाचार पत्र ने बुधवार को प्रकाशित किया, कुछ बैंक जमा आकर्षित करने के लिए नई किस्म की रणनीति अपना रहे हैं।

यह देखना होगा कि ऐसे उपाय अंतर को पाटने में कैसे काम करते हैं। उदाहरण के लिए गत वित्त वर्ष में जब ऋण 20 फीसदी की दर से बढ़ रहा था, तब जमा वृद्धि केवल 14 फीसदी थी। इस अंतर को रिजर्व बैंक की ताजा वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में भी रेखांकित किया गया। यह रुझान ऋण-जमा अनुपात में भी देखने को मिलता है जो सितंबर 2021 के बाद बढ़ा है।

दिसंबर 2023 में यह 78.8 फीसदी के साथ उच्चतम स्तर पर पहुंचा और मार्च 2024 तक दोबारा घटकर 76.8 फीसदी रह गया। निजी क्षेत्र के बैंकों के मामले में यह अनुपात खासतौर पर अधिक है। हालांकि गत दो-चार साल में कुछ विचलन नजर आया है लेकिन वित्त मंत्री और रिजर्व बैंक के गवर्नर दोनों ने इस मसले को रेखांकित करके तथा बैंकों को उपयुक्त कदम उठाने को कहकर सही किया है।

यह सही है कि बैंकिंग व्यवस्था को कोई तात्कालिक खतरा नहीं है लेकिन विचलन के कारणों तथा इसके बड़ी समस्या बन जाने के पहले उठाए जाने वाले उपायों को लेकर बहस एक आवश्यक है। महामारी के बाद अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ ही ऋण में इजाफा हुआ। यह बढ़ोतरी नॉमिनल सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि से तेज है और इस बात को समझा जा सकता है। बहरहाल जमा वृद्धि में कमी की कई वजह हो सकती हैं।

संभव है कि आम परिवारों ने अन्य उपायों का रुख कर लिया हो क्योंकि रिजर्व बैंक ने अर्थव्यवस्था को मदद पहुंचाने के लिए वास्तविक नीतिगत दर को कुछ समय से नकारात्मक कर रखा है। हाल के वर्षों में देश के शेयर बाजारों का अच्छा प्रदर्शन भी इसकी वजह हो सकता है। एक अन्य वजह हो सकती है परिवारों की वित्तीय बचत में गिरावट। ताजा उपलब्ध आंकड़े दिखाते हैं कि 2022-23 में यह जीडीपी के 5.3 फीसदी के साथ कई दशकों के निचले स्तर पर आ गई है।

घरों की वित्तीय बचत में सुधार जहां अर्थव्यवस्था के लिए अहम है, वहीं बैंक अतिरिक्त बचत जुटाने के लिए और बहुत कुछ कर सकते हैं। मार्च के अंत में अधिसूचित वाणिज्यिक बैंकों का शुद्ध ब्याज मार्जिन 3.6 फीसदी था। फंड के लिए होड़ को देखते हुए बैंकों को जमा जुटाने के लिए मार्जिन के मोर्चे पर त्याग करना होगा तथा बैलेंस शीट को स्थिर बनाए रखना होगा।

निजी बैंक प्राय: बेहतर स्थिति में है क्योंकि उनका ब्याज मार्जिन बेहतर है। बहरहाल एक बड़ा और दीर्घकालिक मुद्दा है आम सरकारी बजट घाटे का लगातार ऊंचे स्तर पर रहना। ऋण की लागत कम रखने के लिए बैंक जमा के एक हिस्से को नकदी परिसंपत्तियों खासकर सरकारी बॉन्ड में रखते हैं। धीरे-धीरे इस जरूरत को कम करने से ब्याज दरों को बचत की मांग और आपूर्ति के साथ तालमेल वाला बनाया जा सकेगा और आम बचत को प्रोत्साहन दिया जा सकेगा। चूंकि इस प्रक्रिया के लिए बड़े आर्थिक समायोजन की आवश्यकता है इसलिए शायद ऐसा निकट भविष्य में नहीं हो। फिलहाल बैंकों को कम मार्जिन के हिसाब से समायोजन करना होगा और उच्च जमा दर की पेशकश करनी होगी।

First Published - August 14, 2024 | 11:22 PM IST

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