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खाद्य मुद्रास्फीति और मौद्रिक नीति: आर्थिक समीक्षा में उभरी चिंताएं

आर्थिक समीक्षा में कहा गया कि भारत में मुद्रास्फीति को लक्षित करने के ढांचे में इस बात पर भी विचार होना चाहिए कि मुद्रास्फीति को बिना खाद्य कीमतों के लक्ष्य बनाया जाए।

Last Updated- August 22, 2024 | 9:51 PM IST
RBI's warning on food inflation pressure, caution necessary in monetary policy फूड इंफ्लेशन के दबाव पर RBI की चेतावनी, मौद्रिक नीति में सतर्कता जरूरी

इस समय लगातार उच्च खाद्य मुद्रास्फीति और मौद्रिक नीति पर इसके असर को लेकर एक दिलचस्प और जीवंत बहस चल रही है। हालांकि यह विषय नया नहीं है और मुद्रास्फीति को लक्षित करने की लचीली व्यवस्था को अपनाए जाने के समय से ही यह बहस का विषय रही है, लेकिन आर्थिक समीक्षा में की गई टिप्पणियों ने एक तरह से इसे नए सिरे से उभार दिया। आर्थिक समीक्षा में कहा गया कि भारत में मुद्रास्फीति को लक्षित करने के ढांचे में इस बात पर भी विचार होना चाहिए कि मुद्रास्फीति को बिना खाद्य कीमतों के लक्ष्य बनाया जाए।

वित्त मंत्रालय के अर्थशास्त्र के जानकारों का कहना है कि उच्च खाद्य कीमतें अक्सर आपूर्ति क्षेत्र की दिक्कतों की वजह से होती हैं, न कि मांग क्षेत्र की। अल्पावधि को ध्यान में रखने वाले नीतिगत उपाय अतिरिक्त समेकित मांग से उत्पन्न होने वाले मूल्य दबाव को सीमित करने के लिए होते हैं। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने अपने पिछले मौद्रिक नीति संबंधी वक्तव्यों और बाद में सार्वजनिक चर्चाओं में केंद्रीय बैंक की स्थिति स्पष्ट कर दी।

पहली बात, रिजर्व बैंक को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति के चार फीसदी का लक्ष्य दिया गया है और खाद्य कीमतें इसमें 46 फीसदी हिस्सेदारी रखती हैं इसलिए उनकी अनदेखी संभव नहीं। दूसरा ऊंची खाद्य मुद्रास्फीति दर आम पारिवारिक मुद्रास्फीति संबंधी अनुमानों को प्रभावित करती है जिसका वास्तविक मुद्रास्फीति संबंधी नतीजों के भविष्य पर असर पड़ सकता है।

रिजर्व बैंक के ताजा मासिक बुलेटिन में एक विश्लेषणात्मक अध्याय भी इस विषय पर है। डिप्टी गवर्नर माइकल देवव्रत पात्र एवं अन्य के शोध आलेख में हालांकि केंद्रीय बैंक का आधिकारिक नजरिया नहीं है लेकिन यह बताता है कि आखिर क्यों केंद्रीय बैंक समग्र मुद्रास्फीति प्रबंधन में खाद्य पदार्थों की अनदेखी नहीं कर सकता है।

जून 2020 से जून 2024 के बीच औसत खाद्य मुद्रास्फीति इससे पहले के चार सालों के 2.9 फीसदी के स्तर से काफी अधिक थी। इस इजाफे को मोटे तौर पर एक ही समय में लगे कई झटकों, जलवायु संबंधी घटनाओं और मॉनसून के वितरण से जोड़कर देखा गया। इसके परिणामस्वरूप विचारार्थ अवधि में से करीब 57 फीसदी महीनों में खाद्य मुद्रास्फीति की दर छह फीसदी से अधिक रही। सब्जियों की कीमतों में इजाफे को आमतौर पर अस्थायी माना जाता है।

बहरहाल, करीब 45 फीसदी महीनों के दौरान इनमें दो अंकों की वृद्धि देखी गई। अनाज तथा अन्य उत्पादों में 53 फीसदी महीनों के दौरान छह फीसदी से अधिक महंगाई देखी गई। स्पष्ट है कि खाद्य मुद्रास्फीति बीते कुछ सालों से गंभीर चुनौती बनी हुई है। यह बात भी रेखांकित करने योग्य है कि निर्यात प्रतिबंध समेत सरकार के कई उपायों के बीच निरंतर ऊंची खाद्य मुद्रास्फीति देखने को मिली।

आलेख में यह भी दर्शाया गया है कि खाद्य मुद्रास्फीति का मुद्रास्फीति के अनुमानों पर महत्त्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव होता है जबकि मौद्रिक नीति का नकारात्मक। उच्च खाद्य मुद्रास्फीति से मुद्रास्फीति अनुमानों में अनिश्चितता आ सकती है जिससे समग्र मुद्रास्फीति प्रबंधन जटिल हो सकता है। यह भी पाया गया कि खाद्य मुद्रास्फीति विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में कच्चे माल की लागत तथा उत्पादन पर असर डालती है। यह भी कहा गया कि खाद्य कीमतों ने बीते कुछ सालों में कोर मुद्रास्फीति दर पर ऊपरी दबाव कायम किया है जिसे मौद्रिक नीति ने दूर किया। ऐसे में रिजर्व बैंक समग्र मुद्रास्फीति निष्कर्षों में खाद्य कीमतों के दबाव को नकार नहीं सकता।

रिजर्व बैंक का अनुमान है कि चालू वर्ष में हेडलाइन मुद्रास्फीति दर 4.5 फीसदी रहेगी। अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में इसके 4.4 फीसदी रहने का अनुमान है। हालांकि कुछ अर्थशास्त्री मानते हैं कि खाद्य मुद्रास्फीति की दर आने वाले महीनों में कमी आएगी। बहरहाल, रिजर्व बैंक के लिए बेहतर यही है कि वह सतर्क रहे।

First Published - August 22, 2024 | 9:51 PM IST

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