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संपादकीय: वित्तीय मजबूती से रेटिंग में होगा सुधार

रेटिंग एजेंसी को उम्मीद है कि भारत में चुनावी नतीजे कुछ भी हों, यहां आर्थिक और वित्तीय नीतियों में निरंतरता बनी रहेगी।

Last Updated- May 30, 2024 | 9:32 PM IST
भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर अगले वित्त वर्ष 7 फीसदी!, Indian economy likely to expand at around 7% in FY25, says FinMin

आम चुनाव की मतगणना, जो अगली सरकार का राजनीतिक स्वरूप तय करेगी, से कुछ ही दिन पहले एसऐंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने बुधवार को भारत के बारे में अपने नजरिये को ‘स्थिर’ से बढ़ाकर ‘पॉजिटिव’ कर दिया।

यह दुनिया की शीर्ष रेटिंग एजेंसियों में से एक है और इसने भारत के बारे में 2014 से अब तक पहली बार अपने आउटलुक में बदलाव किया है। हालांकि एजेंसी ने भारत की अपनी सॉवरिन रेटिंग बरकरार रखी है- जो निवेश ग्रेड में सबसे नीचे है।

राजनीतिक स्थिरता, आर्थिक सुधारों और दीर्घकालिक तरक्की जैसे कई कारकों की वजह से रेटिंग एजेंसी ने नजरिये में बदलाव किया है। रेटिंग एजेंसी को उम्मीद है कि अगले कुछ वर्षों में भी भारत की वृद्धि की ऐसी ही गति बनी रहेगी।

भारत कोरोना महामारी से वास्तव में मजबूती से उबरा है और भारतीय अर्थव्यवस्था 7 फीसदी से ज्यादा दर से बढ़ी है। पिछले वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) के करीब 8 फीसदी के दर से बढ़ने की उम्मीद है, जिसके पूरे वर्ष के लिए आंकड़े शुक्रवार को जारी होंगे।

रेटिंग एजेंसी को उम्मीद है कि भारत में चुनावी नतीजे कुछ भी हों, यहां आर्थिक और वित्तीय नीतियों में निरंतरता बनी रहेगी। पिछले कुछ वर्षों में सरकार के व्यय के तरीके में सुधार हुआ है और बुनियादी ढांचे के विकास पर जोर बढ़ा है। इससे मध्यम अवधि में आर्थिक तरक्की में मदद मिल सकती है। वैसे तो सरकार अब राजकोषीय मजबूती की तरफ आगे बढ़ रही है, लेकिन भारत की समग्र राजकोषीय स्थिति अब भी एक अड़चन बनी हुई है।

रेटिंग एजेंसी ने अपनी टिप्पणी में यह रेखांकित किया है कि अगर राजकोषीय घाटे में उल्लेखनीय कमी आई तो वह भारत की रेटिंग बढ़ा सकती है।

उसको उम्मीद है कि केंद्र सरकार का आम बजट घाटा मौजूदा वर्ष के सकल घरेलू उत्पाद के 7.9 फीसदी से घटकर वर्ष 2027-28 तक 6.8 फीसदी रह जाएगा। हालांकि ऋण-जीडीपी अनुपात ऊंचा बना रहेगा और यह 2027-28 तक भी 80 फीसदी से नीचे नहीं जा पाएगा।

यह गौर करना अहम होगा कि महामारी के बाद वृद्धि काफी हद तक सरकार के पूंजीगत व्यय की वजह से हुई है और अगर राजकोषीय मजबूती के लक्ष्य को भी हासिल करना है तो इसे आगे बनाए रखना सरकार के लिए मुश्किल होगा।

इस प्रकार, अगली सरकार के लिए नीतिगत चुनौती यह होगी कि निवेश को किस तरह से बढ़ावा दिया जाए क्योंकि इस तरीके से ही राजकोषीय घाटे में लगातार कमी के साथ मध्यम अवधि में वृद्धि की गति को बनाए रखा जा सकता है। इससे रेटिंग में सुधार के लिए भारत का पक्ष भी मजबूत होगा। मौजूदा साल में तो भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा सरकार को बजट अनुमान से ज्यादा अधिशेष देने से राजकोषीय दबाव कम होगा।

अब यह देखना होगा कि अगली सरकार, जो कि मौजूदा वित्त वर्ष के लिए जुलाई में पूर्ण बजट पेश कर सकती है, किस तरह से इस अतिरिक्त हस्तांतरण का इस्तेमाल करती है। यह उचित होगा कि सरकार मौजूदा वर्ष में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 5.1 फीसदी के बजट अनुमान से और कम करे और इसे मध्यम अवधि में 4.5 फीसदी के आसपास तक ले जाए।

हालांकि, आरबीआई के अधिशेष हस्तांतरण से मिलने वाली राहत के बावजूद, अगली सरकार का ध्यान राजस्व संग्रह बढ़ाने पर होना चाहिए ताकि भारत की राजकोषीय स्थिति में संरचनात्मक रूप से सुधार हो।

इस संबंध में एक सीधा उपाय यह हो सकता है कि वस्तु एवं सेवा कर (GST) की व्यवस्था को ठीक किया जाए। उत्साह की बात यह है, जैसा कि इस अखबार ने खबर दी है, जीएसटी परिषद की फिटमेंट कमिटी ने दरों को तर्कसंगत बनाने पर काम शुरू कर दिया है। इस समिति में केंद्र और राज्य दोनों के अधिकारी होते हैं। वैसे तो हाल के वर्षों में राजस्व संग्रह में सुधार हुआ है, लेकिन जीएसटी प्रणाली ने मोटे तौर पर खराब प्रदर्शन किया है।

जीएसटी दरों और स्लैब को तार्किक बनाने के काफी समय से लंबित मामले को हल किया गया तो इससे राजस्व संग्रह बढ़ेगा और केंद्र एवं राज्यों, दोनों सरकारों की राजकोषीय हालत में सुधार होगा। अगली केंद्र सरकार को निश्चित रूप से प्रत्यक्ष कर सुधारों का पुनर्मूल्यांकन करना होगा और कर प्रशासन के क्षमता निर्माण पर काम करना होगा। राजस्व संग्रह में सुधार से दीर्घकालिक आर्थिक वृद्धि में मदद के लिए राजकोषीय गुंजाइश हासिल होगी।

First Published - May 30, 2024 | 9:28 PM IST

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