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Editorial: शुल्कों से निपटने की हो रणनीति

चुनाव प्रचार अभियान के दौरान ट्रंप ने चीन से आने वाले सामान पर 60 प्रतिशत तक शुल्क लगाने का वादा किया था, इसलिए 10 प्रतिशत शुल्क तो उनके इस वादे से मेल नहीं खाता है।

Last Updated- February 03, 2025 | 10:22 PM IST
Trump 25% tariffs on all steel and aluminum imports go into effect

पिछले साल चुनाव प्रचार अभियान के दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने कहा था कि शुल्क ‘उनका पसंदीदा शब्द’ है। 20 जनवरी को पद संभालने के बाद ट्रंप अपने एजेंडे में शामिल सभी बातों को लागू करने के लिए फुर्ती से कदम बढ़ा रहे हैं। लिहाजा अगर ट्रंप प्रशासन ने कनाडा, मेक्सिको से आयातित सामान पर 25 प्रतिशत और चीन से आने वाली वस्तुओं पर 10 प्रतिशत शुल्क लगाने की घोषणा की है तो इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। ट्रंप ने यह भी कहा है कि यूरोपीय संघ (ईयू) पर भी जल्द ही शुल्क लगाया जाएगा। यहां चौंकाने वाली बात एक ही है कि अमेरिका ने अपने मित्र और सहयोगी देशों पर अधिक शुल्क थोपा है मगर चीन पर कम शुल्क लगाया गया है। चुनाव प्रचार अभियान के दौरान ट्रंप ने चीन से आने वाले सामान पर 60 प्रतिशत तक शुल्क लगाने का वादा किया था, इसलिए 10 प्रतिशत शुल्क तो उनके इस वादे से मेल नहीं खाता है। मगर ट्रंप के ये कदम एक निश्चित खांचे में बैठते जरूर दिख रहे हैं क्योंकि वह अधिकनायकवादी शासकों की तुलना में अमेरिका के सहयोगी लोकतांत्रिक देशों के खिलाफ अधिक कड़ा तेवर अपनाते रहे हैं। परंतु इन शुल्कों के परिणाम मुद्रास्फीति के रूप में भी दिख सकते हैं और इस बात की चिंता ट्रंप प्रशासन के दिलो-दिमाग में जरूर घूम रही होगी। यही कारण है कि कनाडा से तेल आयात पर मात्र 10 प्रतिशत शुल्क लगाने की घोषणा की गई है। कनाडा से आने वाला तेल अमेरिका में ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। चीन पर शुल्क लगाने से मुद्रास्फीति का जोखिम कितना बढ़ेगा इस बारे में अनुमान लगाना फिलहाल मुश्किल है।

ट्रंप के इन कदमों के पीछे जिम्मेदार कारणों के अलावा भारत को एक खास बात  दिमाग में रखनी चाहिए। ट्रंप एक हाथ से लेने और एक हाथ से देने यानी सौदा बराबर करने में विश्वास रखते हैं। कनाडा और मेक्सिको पर इतने अधिक शुल्क इसलिए लगाए गए हैं कि क्योंकि ट्रंप अमेरिका के पड़ोसी देशों के साथ जल्द से जल्द अनुकूल सौदा करना चाह रहे होंगे। मगर चीन और यूरोपीय संघ जैसे बड़े व्यापारिक साझेदार देशों के साथ बातचीत और मोलभाव ज्यादा करना पड़ेगा, इसलिए शुरुआती शुल्कों का मकसद इस मोर्चे पर बातचीत और सौदेबाजी की गुंजाइश बनाए रखना है। भारत को ऐसी रणनीति अपनानी होगी, जिसमें इन सभी पहलुओं का ध्यान रखा जाए। कुछ बदलाव स्पष्ट रूप से दिखने भी लगे हैं। शनिवार को संसद में पेश बजट में इस संबंध में काफी कुछ स्पष्ट कर दिया गया। प्रभावी शुल्क दरों का वास्तव में कितना असर होगा यह हमेशा स्पष्ट नहीं होता है मगर यह संदेश जरूर दे दिया गया कि भारत ट्रंप प्रशासन से शुल्कों के रूप में मिलने वाली किसी चुनौती को टालने के लिए सीमा शुल्कों में एकतरफा कमी करने के लिए तैयार है।

राष्ट्रपति ट्रंप के निर्णयों को अमेरिका की चिंताएं दूर करने के लिए कदम उठाने की उनकी इच्छाशक्ति और ताकत के विभिन्न संकेतों के रूप में देखा जाना चाहिए। आखिर अमेरिका की जनता ने ट्रंप के वादों पर गौर करने के बाद ही उन्हें सत्ता सौंपी है। भारत को उन वस्तुओं की पहचान करनी होगी, जिनकी भारतीय बाजारों में पहुंच बढ़ने से अमेरिकी प्रशासन अधिक खुश हो सकता है।  इसके अलावा अगर ट्रंप भारत पर कोई शुल्क लगाते हैं तो उनके लिए जवाबी कदम भी तैयार रहने चाहिए और इन्हें लेकर संकेत भी स्पष्ट होने चाहिए। भारत को न तो कम तवज्जो दी जा सकती है और न ही ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने के बाद वैश्विक व्यापार में आए बदलाव से ही वह इनकार कर सकता है। परंतु सरकार को यह भी समझना चाहिए कि नए व्यापारिक साझेदारों के साथ रिश्ते तैयार करने और पुराने संबंधों में मजबूती बढ़ाने के लिए यह एकदम माकूल समय है। अमेरिका के कदमों से वैश्विक व्यापार को जो चोट पहुंच रही है, उनके बीच टिके रहने के लिए व्यापारिक साझेदारों के साथ संबंध मजबूत बनाने होंगे। फिर बात चाहे क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी जैसे बहुपक्षीय सौदों की हो या उन द्विपक्षीय समझौतों (जैसे यूरोपीय संघ के साथ) की जिन्हें प्रभावी बनाने में देरी हो रही है।

First Published - February 3, 2025 | 10:19 PM IST

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