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शिक्षा की भूख से पहले मिटाएं पेट की भूख

Last Updated- December 05, 2022 | 4:40 PM IST


गरीब बच्चे स्कूल बीच में नहीं छोड़ें, इसके लिए उसके पूरे परिवार की भूख मिटानी जरूरी है। केरल में इस बाबत शुरू किया गया कार्यक्रम इस बात को और पुख्ता करता है।


 

लड़कियों को पढ़ाई बीच में ही छोड़ने को क्यों विवश होना पड़ता है? हालांकि इस मामले में लड़के भी पीछे नहीं हैं। इसके पीछे कारण हैपेट की मार। पांचवीं कक्षा के अंदर स्कूल छोड़ने वाली लड़कियों की तादाद 25 प्रतिशत है, जबकि इस दौरान स्कूल छोड़ने वाले लड़कों की संख्या 30 फीसदी है। वहीं हाईस्कूल स्तर पर लड़कियों के लिए यह दर 63 प्रतिशत और लड़कों के लिए 60 प्रतिशत है।


 


पश्चिम बंगाल के चपरा में रहने वाली महुआ सुंदरी एक अधेड़ उम्र की मुस्लिम महिला हैं। उनके 6 बच्चे हैं। उनके 3 बेटों में से 2 ने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी, जबकि 1 ने तो स्कूल का मुंह भी नहीं देखा। उनकी 3 पुत्रियोंसागोरी, सुकीला और दुखीला में से पहली 2 पुत्रियां चौथी और पांचवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी करने के बाद कामकाज की तलाश में दिल्ली चली आईं, जबकि दुखीला ने अपनी मां के साथ रहने का फैसला किया।


 


दुखीला ने अपनी मां के साथ रहकर पढ़ाई जारी रखी। सागोरी ने चौथी कक्षा में ही पढ़ाई क्यों छोड़ दी, इस बारे में वह कहती है कि आगे पढ़ाई के लिए संसाधन जुटाना काफी मुश्किल था। उसने बताया कि पांचवीं के बाद आपको खुद से किताबें खरीदनी पड़ती हैं और साथ ही स्कूल की फीस भी चुकानी पड़ती है। लेकिन उसके पिता के बीमार होने की वजह से उसके लिए इन खर्चों को वहन करना काफी मुश्किल था। सागोरी का मानना है कि वह बेहद भाग्यशाली है कि उसे काम मिल गया है। स्कूल की उसकी दोस्तों की 13 वर्ष की उम्र में ही शादी हो गई। उसके अनुसार जल्दी शादी करना सस्ता पड़ता है। उस समय शादी के लिए 25 हजार रुपये, कुछ स्वर्ण आभूषण, एक साइकिल या कभीकभी बाइक की भी मांग की जाती थी। उसकी बहन सुकीला से भी इसी तरह के दहेज की मांग की गई।


 


संबंधियों और ग्रामीणों की आलोचनाओं के बीच दोनों बहनों ने काम करने और पैसा कमाने का फैसला किया। वह चाहती है कि दुखीला अपनी शिक्षा पूरी करे। वास्तव में भूख का कोई विकल्प नहीं है और महुआ सुंदरी जैसे एक गरीब परिवार के लिए शिक्षा भूख का समाधान नहीं है। हां, महुआ को इसका एक लाभ जरूर मिला है। स्कूल में महुआ को एक सरकारी योजना में शामिल किया गया है। स्कूल में महुआ खाना बनाती हैं। लेकिन उनके अपने बच्चों को पढ़ाई जारी रखने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ। इस काम से महुआ को कुछ आमदनी हो जाती है। परिवार की बाकी जिम्मेदारी शादीशुदा 3 बेटों में से 1 और उसकी कामकाजी पुत्रियों पर है।


 


सर्वशिक्षा अभियान का मकसद बच्चों को शिक्षा जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करना है। इस अभियान के तहत शौचालयों का निर्माण, पेयजल की आपूर्ति और अल्पसंख्यकों के लिए छात्रवृत्तियों आदि पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। हालांकि मुहआ जैसी महिलाओं को इस बात के बारे में कुछ भी पता नहीं है। गरीबों को शिक्षा मुहैया कराने के लिए सरकार कस्तूरबा आवासीय विद्यालयों की तरह कई और स्कूलों का भी निर्माण कर रही है।


 


यहां सवाल यह पैदा होता है कि क्या इन सरकारी उपायों से इस समस्या का हल निकल पाएगा? सबसे पहले गरीब और जरूरतमंदों की पहचान करने की जरूरत है। इसके बाद इन लोगों की समस्याओं की पहचान कर उन्हें दूर किए जाने की जरूरत है। हालांकि 1 अरब से अधिक की आबादी में हर शख्स तक पहुंचना असंभव जान पड़ता है। केरल ने गरीब परिवारों के लिए खास बजट बनाने की साहसिक पहल की है। इस राज्य में आश्रय नामक कार्यक्रम के तहत अब तक 600 पंचायतों से लगभग 50 हजार परिवारों की पहचान की गई है और इनके लिए 254 करोड़ रुपये सुनिश्चित किए गए हैं। प्रत्येक बेघर परिवार को इस कार्यक्रम के तहत गृह निर्माण के लिए 50 हजार रुपये मुहैया कराए गए हैं। इन परिवारों के सदस्यों को कुदुम्बश्री स्वसहायता समूहों के जरिये रोजगार भी मुहैया कराए गए हैं।


 


सर्वाधिक गरीब लोगों की पहचान के लिए यह पता लगाया गया है कि संबद्ध गरीब परिवार का भूमि या घर पर मालिकाना हक तो नहीं है और परिवार का मुखिया पुरुष है या महिला या फिर अशिक्षित सदस्य। इस अभियान के संदर्भ में यह पूरी तरह नहीं कहा जा सकता कि परिवार को बच्चों की शिक्षा और भविष्य को लेकर सलाह दी जा रही है, लेकिन पहचान की प्रक्रिया तेज गति से आगे बढ़ रही है। आश्रय कार्यक्रम के जरिए समाज के वंचित वर्गों तक पहुंचने की अच्छी कोशिश की गई है।


 


भारत के अन्य हिस्सों में भी बेघर लोगों, पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चों , बेरोजगारों, बुजुर्गों और विकलांगों की समस्याओं के समाधान के लिए इस कार्यक्रम से सबक लिया जा सकता है। केंद्र ने लड़कियों को 10वीं कक्षा में पहुंचने और इससे आगे पढ़ाई करने पर प्रति माह 500 रुपये मुहैया कराने की स्कीम चला रखी है। इसका उद्देश्य लड़कियों को शिक्षा के प्रति जागरूक करना है। वैसे, यह स्कीम अब तक काफी सफल भी रही है। लेकिन इसके लिए एक शर्त भी रखी गई है। यह बालिका अपने मातापिता की इकलौती संतान होनी चाहिए। लेकिन महुआ सुंदरी की तीनों बेटियां कभी भी इन शर्तों पर खरी नहीं उतरेंगी।

First Published - March 18, 2008 | 2:08 AM IST

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