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Editorial: बढ़ेगा कल्याण योजनाओं पर व्यय

राज्यों के रुझान को देखते हुए कह सकते हैं कि केंद्र में अगली सरकार बनाने के इच्छुक गठबंधन इस दिशा में और घोषणाएं कर सकते हैं।

Last Updated- July 23, 2023 | 8:53 PM IST
Editorial: Expenditure on welfare schemes will increase

बीते कुछ सप्ताह में राष्ट्रीय बहस व्यापक रूप से इस बात पर केंद्रित रही है कि 2024 के लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए किस तरह राजनीतिक शक्तियां गोलबंदी कर रही हैं। गठबंधनों की व्यवहार्यता और उनके जीतने की संभावनाएं जहां अभी उभर ही रही हैं, वहीं इस बात पर चर्चा करना उचित होगा कि संभावित करीबी मुकाबला आ​र्थिक प्रबंधन के लिए क्या मायने रखेगा?

अभी भी नि​श्चित निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगा लेकिन हाल ही में संपन्न हुए कुछ विधानसभा चुनावों तथा आगामी विधानसभा चुनावों से कुछ संकेत निकल सकते हैं। इस बीच कल्याण कार्यक्रमों पर ध्यान बढ़ा है। उदाहरण के लिए कर्नाटक में कांग्रेस ने कई वादे किए जिनमें महिलाओं के लिए मुफ्त बस सेवा का वादा शामिल था। ये वादे कारगर साबित हुए। राजस्थान में दिसंबर में चुनाव होने हैं, वहां की कांग्रेस सरकार ने इस दिशा में नई-नई पहल की हैं। सस्ते गैस सिलिंडर समेत कई घोषणाओं के बाद वहां की अशोक गहलोत सरकार ने गत सप्ताह न्यूनतम आय गारंटी विधेयक पारित कर दिया।

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इसके तहत राज्य सरकार न्यूनतम आय गारंटी मुहैया कराएगी। यह या तो काम के जरिये या फिर अर्हता प्राप्त आबादी को नकदी हस्तांतरण के माध्यम से किया जाएगा। रोजगार की बात करें तो सरकार ग्रामीण इलाकों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अ​धिनियम (मनरेगा) के तहत अ​धिकतम कार्य दिवसों की तादाद पूरी हो जाने के बाद 25 दिन का अतिरिक्त काम मुहैया कराएगी।

इसी प्रकार शहरी इलाकों में हर वयस्क को वित्त वर्ष में कम से कम 125 दिनों तक न्यूनतम वेतन के साथ रोजगार दिया जाएगा। अगर राज्य के अ​धिकारी आवेदन देने के 15 दिन के भीतर रोजगार देने में नाकाम रहे तो आवेदक बेरोजगारी भत्ता पाने का हकदार होगा। आबादी का एक हिस्सा जो उम्रदराज, दिव्यांग या विधवा आदि है उसे भी पेंशन दी जाएगी जिसमें सालाना 15 फीसदी का इजाफा किया जाएगा।

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नि​श्चित तौर पर आबादी के ऐसे हिस्से को नकदी हस्तांतरण का विरोध करना मु​श्किल है जो काम करने की ​स्थिति में न हो, मिसाल के तौर पर बुजुर्ग और दिव्यांग। यहां तक कि रोजगार वाला हिस्सा भी अ​स्तित्व के लिए जरूरी रोजगार दिलाने पर केंद्रित है। उदाहरण के लिए मनरेगा, ने महामारी के दौरान बड़े पैमाने पर परिवारों की मदद की। परंतु शहरी इलाकों में काम मुहैया कराना अपेक्षाकृत कठिन हो सकता है और यह भी कहा जा सकता है कि 125 दिनों का रोजगार पर्याप्त नहीं होगा। बहरहाल, आ​र्थिक प्रबंधन के संदर्भ में बात यह है कि सरकारें केवल वंचित वर्ग को सहायता मुहैया कराने तक नहीं रुकतीं।

उदाहरण के लिए कई राज्य चुनिंदा उपभोक्ताओं को नि:शुल्क या भारी स​ब्सिडी पर बिजली मुहैया कराते हैं। कई राज्य पुरानी पेंशन देने लगे हैं जिसका अर्थ यह है कि सरकार सारे राज्य की कीमत पर चुनिंदा लोगों को मदद पहुंचाएगी। केंद्र सरकार भी जमीन वाले सभी किसानों को आय समर्थन दे रही है। वह करीब 81 करोड़ योग्य लाभा​र्थियों को भी नि:शुल्क खाद्यान्न दे रही है।

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ऐसे तमाम खर्चों में सभी आवश्यक नहीं होते हैं और यही वित्तीय प्रबंधन को जटिल बनाता है। राज्यों के रुझान को देखते हुए कह सकते हैं कि केंद्र में अगली सरकार बनाने के इच्छुक गठबंधन इस दिशा में और घोषणाएं कर सकते हैं। ऐसे में संभव है कि राज्यों से कुछ विचार लेकर उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर आजमाया जाए।

राजकोषीय प्रबंधन के क्षेत्र में इसके परिणाम सकारात्मक नहीं होंगे। आबादी के बड़े हिस्से को मदद पहुंचाने की जरूरत की बुनियादी वजह है सरकार की समुचित रोजगार तैयार करने में अक्षमता। उम्मीद की जानी चाहिए कि निकट भविष्य में इस प्रश्न को हल किया जाएगा।

First Published - July 23, 2023 | 8:53 PM IST

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