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अर्थतंत्र: अमेरिका में ऋण सीमा पर विवाद एवं इसके आर्थिक परिणाम, बता रहे हैं एक्सपर्ट

Last Updated- May 29, 2023 | 12:12 AM IST
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राष्ट्रपति जो बाइडन और अमेरिकी संसद के प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष एवं रिपब्लिकन पार्टी के सांसद केविन मैकार्थी ऋण सीमा बढ़ाने पर ‘सैद्धांतिक रूप’ में सहमत हो गए है। अब इस सैद्धांतिक सहमति को 5 जून से पहले अमेरिकी संसद के दोनों सदनों सीनेट और प्रतिनिधि सभा में पारित कराना होगा।

हालांकि, रिपब्लिकन पार्टी के कुछ सांसद इस सहमति का विरोध कर सकते हैं, मगर फिलहाल तो ऋण सीमा पर मंडराता खतरा टल गया है। पिछले कुछ समय से अमेरिका में ऋण सीमा बढ़ाने पर बाइडन प्रशासन और रिपब्लिकन पार्टी के वार्ताकार किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रहे थे।

ऋण सीमा पर चल रही खींचातानी के बीच अमेरिका की वित्त मंत्री जेनेट येलेन ने आगाह किया था कि अमेरिकी सरकार 1 जून से अपने बिल का भुगतान करने में सक्षम नहीं रह जाएगी। अमेरिका में ऋण सीमा से अभिप्राय है कि वहां सरकार बाजार या अन्य स्रोतों से कितनी रकम उधार ले सकती है। यह सीमा वर्तमान में 31.4 लाख करोड़ डॉलर है।

अगर किसी कारणवश अमेरिकी सांसद में ऋण सीमा बढ़ाने का प्रस्ताव पारित नहीं हुआ तो इसके गंभीर आर्थिक परिणाम हो सकते हैं। अमेरिका ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया पर इसका असर हो सकता है। अमेरिका की अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे सुस्त हो रही है। वहां की सरकार की व्यय क्षमता ऋण सीमा बढ़ाने के क्रम में किसी तरह की शर्त के आड़े आने से प्रभावित हुई या मध्यम अवधि में इसमें कमी आने का खतरा बढ़ा तो उत्पादन पर प्रतिकूल असर होगा।

हालांकि, इसकी आशंका कम है मगर अमेरिकी सरकार अगर ऋण भुगतान में विफल रहती है तो इसके ऐसे गंभीर परिणाम होंगे जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। अमेरिकी सरकार के बॉन्ड दुनिया में सर्वाधिक सुरक्षित माने जाते हैं मगर इन पर प्रतिफल के भुगतान में देरी या विफलता से वित्तीय बाजार में हाहाकार मच जाएगा और इसके परिणाम दीर्घकालिक होंगे।

वास्तव में, ऋण सीमा बढ़ाने को लेकर जिस तरह अनावश्यक विवाद हुआ है उसे देखते हुए केंद्रीय बैंक सहित बड़े निवेशक अपनी निवेश योजनाओं पर दोबारा विचार करने पर बाध्य हो जाएंगे। रेटिंग में कमी हुई (हालांकि, इसकी आशंका बहुत कम है) तो बाजार से भारी मात्रा में रकम की निकासी हो सकती है। यह रकम कहां जाएगी यह चर्चा का एक अलग विषय होगा।

फिलहाल, यह बात भी विचारणीय है कि राजकोषीय मोर्चे पर केवल ऋण सीमा ही अमेरिका के लिए एक मात्र चुनौती नहीं है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में राजकोषीय घाटा संरचनात्मक रूप से बढ़ गया है जिसका अमेरिकी एवं वैश्विक अर्थव्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव होगा। कांग्रेस बजट कार्यालय (सीबीओ) के अनुसार आने वाले दशक में अमेरिका का राजकोषीय घाटा औसतन वहां के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 6.1 प्रतिशत रहेगा। हाल के दशकों में यह औसतन 3.6 प्रतिशत रहा है।

इसका आशय यह है कि अमेरिकी सरकार बचत का एक बड़ा हिस्सा अपने पास रख लेगी और शेष उद्देश्यों के लिए रकम कम रह जाएगी। इसके अलावा, सरकार की उधारी से ब्याज दरें भी बढ़ जाएंगी। अमेरिका में रकम की कमी और ब्याज दर बढ़ने से तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में पूंजी का प्रवाह प्रभावित हो सकता है। इससे इन देशों की आर्थिक वृद्धि दर एवं वित्तीय स्थिरता दोनों ही प्रभावित होंगी।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अनुमानों के अनुसार अमेरिका में सामान्य बजट घाटा 2023 के जीडीपी के 122.2 प्रतिशत से बढ़कर 2028 तक 136.2 प्रतिशत तक हो सकता है। तुलना के दृष्टिकोण से 2018 में सामान्य बजट घाटा जीडीपी का 107.4 प्रतिशत रहा था।

सार्वजनिक ऋण में इतनी तेज वृद्धि से ब्याज भुगतान ऐसे समय में काफी अधिक बढ़ जाएगा जब महंगाई दर नरम पड़ने के बावजूद ब्याज दरें ऊंचे स्तरों पर बनी रह सकती हैं। हालांकि, अमेरिका इस मामले में अकेला नहीं है। वैश्विक सार्वजनिक ऋण 2018 के लगभग 83 प्रतिशत की तुलना में 2028 तक बढ़कर जीडीपी का लगभग 100 प्रतिशत हो जाएगा।

कोविड महामारी के कारण दुनिया के अधिकांश देशों में ऋण का स्तर तेजी से बढ़ा है। 2020 में वैश्विक सार्वजनिक ऋण जीडीपी के प्रतिशत के रूप में 15 प्रतिशत अंक से अधिक बढ़ गया है। इसका मतलब यह है कि कोविड महामारी के झटके के बाद उत्पादन में अवश्य इजाफा हुआ होगा लेकिन अधिक ब्याज भुगतान एवं कमजोर आर्थिक वृद्धि की स्थिति लगातार बनी रहेगी।

भारत में भी सार्वजनिक ऋण में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। माना जा रहा है कि सामान्य सरकारी घाटा 2028 तक जीडीपी का कम से कम 83 प्रतिशत से अधिक ही रहेगा। विकसित देशों की तुलना में भारत पर इसका प्रभाव अधिक होगा। विकसित देशों और भारत के राजस्व में अंतर इसका कारण है।

आईएमएफ द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार जीडीपी के अंश के रूप में सरकार का राजस्व 2021 में 20.16 प्रतिशत था। अमेरिका में यह आंकड़ा उसी वर्ष 31.46 प्रतिशत था। ऊंचे सार्वजनिक ऋण के साथ कम राजस्व, सरकार के घाटे का लगातार ऊंचे स्तरों पर रहना लोक वित्त का प्रबंधन कठिन और कठिन बना देंगे। लोकलुभावन नीतियों पर सरकार द्वारा व्यय बढ़ाने से परिस्थितियां सुधरने के बजाय और बिगड़ जाएंगी।

सरकार को स्थितियां नियंत्रण में रखने के लिए समझ-बूझ के साथ व्यय और राजस्व बढ़ाने के उपाय करने होंगे। प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर संग्रह दोनों बढ़ाने के लिए काफी संभावनाएं मौजूद हैं। अप्रत्यक्ष कर के मोर्चे पर कर दरों एवं श्रेणियों में अति आवश्यक बदलाव अब भी विचाराधीन हैं। यद्यपि, संग्रह अवश्य बढ़ा है मगर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का प्रदर्शन कई पेचीदा समस्याओं के कारण अपेक्षित स्तर पर नहीं रहा है।

प्रत्यक्ष कर के बिंदु पर सरकार ने इस वर्ष पूंजीगत लाभ कर से जुड़े प्रावधानों में बदलाव किए हैं, जिनसे मदद मिलनी चाहिए। कर प्रणाली को अधिक सक्षम बनाने के लिए सरकार करदाताओं को रियायत मुक्त विकल्प अपनाने के लिए कह रही है। मगर कर वंचना रोकने के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता होगी। ऐसा प्रतीत होता है कि कई लोग अब भी कर भुगतान करने से बच रहे हैं। ‘इकनॉमिक ऐंड पॉलिटिकल वीकली’ पत्रिका में हाल में प्रकाशित आलेख में अर्थशास्त्री रवींद्र एच ढोलकिया ने लिखा है कि लगभग 40 प्रतिशत व्यक्तिगत आय पर अब भी कर भुगतान नहीं हो रहा है।

इस दृष्टि से और अधिक सक्षम प्रणाली एवं तकनीक के इस्तेमाल से कर वंचना करने वाले अधिक से अधिक लोग एवं उनकी आय पर शिकंजा कसा जा सकता है। कर संग्रह बढ़ाए बिना ऋण एवं घाटे का समाधान करना न केवल कठिन होगा बल्कि इससे क्षमता विस्तार में खर्च करने की सरकार की क्षमता पर भी प्रतिकूल असर होगा।

First Published - May 29, 2023 | 12:12 AM IST

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