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राजकोष पर भारी पड़ेगी मुफ्त खाद्यान्न योजना

मुफ्त खाद्यान्न योजना चुनावों को ध्यान में रखकर चलाई जा रही है लेकिन दीर्घाव​धि में यह जो आ​र्थिक बोझ डालेगी वह इससे हासिल होने वाले अल्पकालिक लाभों पर भारी पड़ेगी। बता रहे हैं ए के भट्टाचार्य

Last Updated- December 29, 2022 | 9:14 PM IST
Free food grains scheme will be heavy on the exchequer
BS

केंद्र सरकार ने गत सप्ताह यह निर्णय लिया कि वह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अ​धिनियम (एनएफएसए) के तहत मुफ्त खाद्यान्न आपूर्ति जारी रखेगी। उसके इस निर्णय पर उचित ही सवाल उठ रहे हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत 81 करोड़ लोगों को आपूर्ति किए जाने वाले अनाज का केंद्रीय निर्गम मूल्य बढ़ाकर खाद्य स​ब्सिडी बिल कम करने के बजाय सरकार ने उसे नि:शुल्क कर दिया है। इस प्रकार राजकोषीय विवेक के सिद्धांत का पालन नहीं किया गया। इससे भी बुरी बात यह है कि यह कदम कई राज्य सरकारों को इस बात के लिए प्रेरित कर सकता है कि वे राजकोषीय दृ​ष्टि से गैरजवाबदेह हो जाएं और ऐसी ही अन्य योजनाएं शुरू कर दें।

इस बारे में कोई गलती नहीं करें। वर्ष 2023 में नौ राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में यह निर्णय पूरी तरह चुनावी हितों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि लोकतंत्र का त्योहार सभी राजनीतिक दलों द्वारा राजनीतिक विवेक की कीमत पर ही मनाया जाएगा। ऐसे में इस तथ्य से कोई राहत नहीं मिलती है कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 81 करोड़ लाभा​र्थियों को पांच किलोग्राम अनाज नि:शुल्क देने की योजना को बंद किया गया है। एनएफएसए अब दिसंबर 2023 तक के लिए नि:शुल्क अनाज योजना रह गया है और मई 2024 में आम चुनाव होने हैं, ऐसे में लगता यही है कि इसे कम से कम कुछ महीनों के लिए अवश्य बढ़ाया जाएगा।

पिछले दिनों जो किया गया उसका दीर्घकालिक परिणाम राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के लिए दिक्कतदेह साबित हो सकता है और ऐसा केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर संभव है। परंतु इसका परिणाम केंद्रीय वित्त मंत्रालय के​ लिए दो अल्पकालिक फायदों के रूप में भी सामने आएगा। 2022-23 के 3.3 लाख करोड़ रुपये के अनुमानित खाद्य स​ब्सिडी बिल के बरअक्स देखें तो 2023-24 में यह कम होकर 2.15 लाख करोड़ रुपये का रह जाएगा। अगर मान लिया जाए कि अगले वर्ष अर्थव्यवस्था 11 फीसदी की दर से विकसित होगी तो इससे वित्त मंत्रालय को सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में 0.4 फीसदी के बराबर बचत होगी। उर्वरक स​ब्सिडी से होने वाली बचत को मिला दें जो जीडीपी के 0.3 फीसदी के बराबर होगी तो वित्त मंत्रालय के पास 2023-24 में जीडीपी के 0.7 फीसदी के बराबर की बचत होगी। इससे पूंजीगत व्यय में कुछ राहत मिलेगी।

सरकार ने खाद्य स​ब्सिडी के मामले में अपनी देनदारी की अनि​श्चितता को जिस तरह कम किया है वह भी एक लाभ है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के जाने के बाद अब सरकार को शेष चुनौती का सामना एनएफएसए के जरिये अनाज का वितरण करके करना होगा। 2024 के आम चुनाव की राजनीतिक बाध्यताओं को देखते हुए लगता नहीं है कि 2024 के मध्य के पहले एनएफएसए को मूल्य व्यवस्था के अधीन लाया जाएगा। परंतु बीते कुछ वर्षों के उलट वित्त मंत्रालय अब इस बात को लेकर स्पष्ट होगा कि अगले कुछ वर्षों में खाद्य स​ब्सिडी को लेकर उस पर कितना बोझ होगा।

अप्रैल 2020 में लॉ​न्चिंग के बाद से ही प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना केंद्रीय वित्त मंत्रालय के लिए खतरे की घंटी थी। यकीनन मंत्रालय गरीबों को नि:शुल्क अन्न उपलब्ध कराने के विचार के ​खिलाफ नहीं था क्योंकि यह तबका कोविड से बहुत बुरी तरह प्रभावित हुआ था। मंत्रालय की चिंता केवल यह थी कि जिस तरह इसकी घोषणा की गई उससे व्यय नियोजन प्रभावित हुआ।

मार्च 2020 में लॉकडाउन की घोषणा के तत्काल बाद सरकार ने इस योजना की शुरुआत की थी। आरंभ में इसे अप्रैल से जून 2020 के लिए शुरू किया गया था। लेकिन बाद में इसे जुलाई से नवंबर 2020 तक पांच माह के लिए और बढ़ा दिया गया। 2021 के आरंभ में कोविड की दूसरी लहर के आगमन के बाद सरकार ने इस योजना को दोबारा पेश किया। आरंभ में इसे मई-जून 2021 के लिए प्रस्तुत किया गया था लेकिन बाद में दो किस्तों में इसे सितंबर 2022 तथा आगे दिसंबर 2022 तक के लिए बढ़ा दिया गया।

बार-बार किए जाने वाले अव​धि विस्तार तथा पांच महीनों के अंतराल के बाद इसे दोबारा पेश करने से वित्त मंत्रालय की व्यय योजना को झटका लगा। 2020-21 में बजट ने खाद्य ​स​ब्सिडी के लिए केवल 1.16 लाख करोड़ रुपये की व्यवस्था की थी। इस बात को समझा जा सकता था क्योंकि फरवरी 2020 में बजट पेश किए जाते समय महामारी का असर पूरी तरह सामने नहीं आया था।

आश्चर्य नहीं कि 2020-21 में खाद्य स​ब्सिडी का वास्तविक बिल 5.41 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ गया। ऐसा केवल प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना की वजह से नहीं हुआ ब​ल्कि भारतीय खाद्य निगम के पिछले बकाये के निपटान की भी इसमें भूमिका रही। वर्ष 2021-22 का बजट फरवरी 2021 में पेश किया गया। यहां एक बार फिर खाद्य स​ब्सिडी की कम रा​शि मिली। चूंकि फरवरी 2021 में उक्त योजना नहीं चल रही थी इसलिए वित्त मंत्रालय ने 2021-22 में खाद्य स​ब्सिडी के 2.43 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान जताया। हालांकि इस मद में उसका वास्तविक व्यय 2021-22 में 2.9 लाख करोड़ रुपये के साथ कहीं अ​धिक ​था।

इसी प्रकार फरवरी 2022 में पेश किए गए बजट में वित्त मंत्रालय का अनुमान था कि उक्त योजना मार्च 2022 तक समाप्त हो जाएगी। इसीलिए उसने पूरे वर्ष के लिए 2.1 लाख करोड़ रुपये के खाद्य स​ब्सिडी बोझ का अनुमान लगाया था। परंतु बजट पेश होने के बाद योजना को दो बार आगे बढ़ाया गया। अब अनुमान है कि 2022-23 में वास्तविक खाद्य स​ब्सिडी बिल 3.3 लाख करोड़ रुपये रहेगा। गत सप्ताह प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को एनएफएसए में समाहित करके सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत नि:शुल्क अन्न आपूर्ति को एक वर्ष यानी दिसंबर 2023 तक बढ़ाने का जो निर्णय लिया गया उसका अर्थ यह है कि वित्त मंत्रालय अब 2023-24 में खाद्य ​स​ब्सिडी को लेकर अपनी देनदारी ज्यादा स्पष्ट तरीके से तय कर सकता है। पिछले तीन बजटों के दौरान सरकार को यह सुविधा हासिल नहीं थी।

ऐसे में आशा की जानी चाहिए कि आगामी बजट में सरकार के खाद्य सब्सिडी विधेयक को लेकर ऐसे आंकड़े सामने आएंगे जो हकीकत के करीब हों। आशा की जानी चाहिए कि एनएफएसए की तकदीर और इसके तहत आवंटित होने वाले अनाज की कीमत को लेकर भी सही समय पर निर्णय लिया जाएगा ताकि कोई नई अनि​श्चितता सामने न आए। लेकिन इस बात में कम ही संदेह है कि नि:शुल्क खाद्यान्न योजना दीर्घाव​धि में केंद्र और राज्यों दोनों के लिए जो​खिम समेटे है। यह जो​खिम 2023-24 में वित्त मंत्रालय को होने वाले सीमित लाभ की तुलना में काफी अ​धिक है।

First Published - December 29, 2022 | 9:14 PM IST

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