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टैरिफ से मिले झटकों के बीच भारत के लिए अवसर 

वैश्विक शुल्क युद्ध के खतरे तो हैं लेकिन इससे भारत के लिए एक अवसर भी तैयार हो रहा है कि वह चीन से निकलने का फैसला करने वाली कंपनियों के लिए बेहतर गंतव्य साबित हो।

Last Updated- May 02, 2025 | 10:40 PM IST
Trump tariffs
टैरिफ की घोषणा करते अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप | फाइल फोटो

अमेरिका द्वारा 2 अप्रैल को टैरिफ लगाने की घोषणा (जिसे बाद में 9 जुलाई तक निलंबित कर दिया गया) और इसकी प्रतिक्रिया में जवाबी कार्रवाई, विशेषतौर पर चीन के द्वारा की गई कार्रवाई, वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा नकारात्मक झटका है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का अनुमान है कि वर्ष 2025 में वैश्विक वृद्धि धीमी होकर 2.8 फीसदी हो जाएगी जो जनवरी के 3.3 फीसदी के पूर्वानुमान से कम है। 

भारत पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा, हालांकि कई अन्य प्रमुख उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं  की तुलना में उतना नहीं प्रभावित होगा। भारतीय अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से घरेलू मांग के दम पर चलती है जिसमें दुनिया और अमेरिका को कुल निर्यात, इसके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का क्रमश: 22 फीसदी और 2 फीसदी ही है। यह हिस्सेदारी कई उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कम है। आईएमएफ ने वर्ष 2025-26 के लिए भारत के वृद्धि पूर्वानुमान को 30 आधार अंक घटाकर 6.2 फीसदी कर दिया है। 

वैश्विक अर्थव्यवस्था की गति धीमी होने और बढ़ती अनिश्चितता ने भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कुछ और जोखिम की स्थिति पैदा कर दी है। पहला, मौजूदा शुल्क युद्ध का बड़ा शिकार घरेलू निजी पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) चक्र हो सकता है जिसमें कई वर्षों तक सुस्ती रहने के बाद फिर से सुधार के संकेत दिखने लगे थे। कमजोर वैश्विक मांग और बढ़ी हुई अनिश्चितता के माहौल में कंपनियां अब अपनी निवेश योजनाओं को और टाल सकती हैं। इससे भारत की वृद्धि संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, साथ ही सामान्य सरकारी वित्त में सुधार करना और ऋण-जीडीपी अनुपात को एक टिकाऊ स्तर तक कम करना और भी चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।

दूसरा, व्यापार युद्ध भारत के आईटी (सूचना प्रौद्योगिकी) सेवा निर्यात को भी प्रभावित करेगा।  हालांकि अमेरिकी टैरिफ केवल माल निर्यात को लक्षित करते हैं लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था और विशेष रूप से अमेरिकी अर्थव्यवस्था की गति धीमी होने के कारण आईटी सेवाओं की वृद्धि पर भी प्रतिकूल असर होगा।  

आईटी सेवाओं का निर्यात वैश्विक मांग के लिहाज से बेहद संवेदनशील है और यह अनुमान लगाया गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में 1 फीसदी की मंदी से आईटी निर्यात में 2 फीसदी से अधिक की कमी आती है। यदि अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी का सामना करती है तो आईटी सेवाओं के निर्यात को विशेष रूप से बड़ा झटका लग सकता है, जिसकी आशंका 2 अप्रैल को टैरिफ से जुड़े कदम उठाने के बाद और बढ़ गई है। 

वहीं दूसरी ओर यह गौर करना चाहिए कि वर्ष 2018-20 के दौरान अमेरिका और चीन के बीच पिछले व्यापार युद्ध के कारण, भारत के आईटी सेवाओं की मांग में वृद्धि हुई क्योंकि कई अमेरिकी कंपनियों ने चीन की आईटी सेवाओं पर अपनी निर्भरता कम कर दी है और भारत की आईटी कंपनियों से अपनी आउटसोर्सिंग बढ़ा दी। दवाओं के निर्यात के मामले में भी यही घटनाक्रम देखने को मिला। हालांकि यह देखना होगा कि इस बार भी ऐसा ही रुझान देखने को मिलता है या नहीं।

तीसरा, व्यापार शुल्क ने जटिल वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं के लिए बड़ी बाधाएं पैदा कर दी हैं जिसके तहत कई मध्यवर्ती माल पर लगाए जाने वाले शुल्क में तेज वृद्धि हुई है जो अंतिम उत्पाद बनने से पहले कई देशों से गुजरते हैं। कई भारतीय विनिर्माता इलेक्ट्रॉनिक्स, वाहन के कलपुर्जों और दवा सामग्री आदि के लिए चीन से आयात पर निर्भर होते हैं। आपूर्ति श्रृंखला में किसी भी तरह की बाधा महत्त्वपूर्ण चीजों की आपूर्ति में देरी कर सकती है और इससे हमारा विनिर्माण प्रभावित हो सकता है। 

वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी वास्तव में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कुछ हद तक सकारात्मक है। पहला, यह मंदी वैश्विक जिंस कीमतों के लिए काफी नकारात्मक है। ब्रेंट क्रूड की कीमतें 1 अप्रैल के 75 डॉलर प्रति बैरल से घटकर 8 अप्रैल को 63 डॉलर प्रति बैरल हो गईं। हालांकि इसके बाद 17 अप्रैल को यह फिर से बढ़कर 68 डॉलर प्रति बैरल हो गई। वहीं आईएमएफ ने अपने वैश्विक वृद्धि अनुमानों में वर्ष 2025 में तेल की कीमतों में 15.5 फीसदी की गिरावट का अनुमान लगाया है।

इससे भारत के चालू खाता घाटे को कम करने और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद मिलनी चाहिए। एक और कारक है जो मुद्रास्फीति के लिए सकारात्मक हो सकता है। टैरिफ वाॅर से स्टील और एल्युमीनियम जैसे जिंसों की अधिकता होने की संभावना है जिससे उनकी कीमतों में नरमी आ सकती है। हालांकि दूसरी ओर इन धातुओं के उत्पादकों और निर्यातकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसके अलावा डंपिंग का भी खतरा है जिससे हमें सावधान रहने की जरूरत है।

दूसरा, अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मंदी और उसके व्यापार संबंधों को लेकर बढ़ती अनिश्चितता के कारण अमेरिका से पूंजी निकलकर विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की ओर जा सकती है। जैसा कि पहले भी बताया गया है कि मौजूदा शुल्क युद्ध का भारत पर कम असर होने की उम्मीद है।

इसके साथ ही कई दूसरी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत की वृद्धि संभावनाएं बेहतर हैं, ऐसे में भारत बड़ी मात्रा में पूंजी आकर्षित कर सकता है। अहम बात यह है कि अक्टूबर 2024 से फरवरी 2025 के दौरान एक बड़ी गिरावट के बाद भारतीय शेयरों का मूल्यांकन फिर से आकर्षक हो गया है। भारतीय शेयर बाजार में फिर से दिलचस्पी दिखाते हुए विदेशी संस्थागत निवेशक, पिछले कुछ महीने तक शुद्ध विक्रेता बने रहने के बाद 16 अप्रैल से शुद्ध खरीदार बन गए हैं।

तीसरा, अहम बिंदु यह है कि वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं के कामकाज में व्यवधान, जो समस्त अंतरराष्ट्रीय व्यापार का लगभग 70 फीसदी का प्रतिनिधित्व करता है, चीन-प्लस-वन रणनीति को भारी बढ़ावा दे सकता है। चीन-प्लस-वन  रणनीति पर ध्यान दिए जाने के 10 साल बाद भी, भारत इसका अधिक फायदा उठाने में सक्षम नहीं हुआ है। चीन-प्लस-वन रणनीति के बड़े लाभार्थियों में दक्षिण पूर्व एशियाई अर्थव्यवस्थाएं रही हैं। अमेरिका ने अपने कई प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में भारत के लिए कम टैरिफ का प्रस्ताव किया है।

भारत, कई अन्य उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में चीन- प्लस-वन रणनीति का लाभ उठाने के लिए बेहतर स्थिति में है। यह एक बेहतर मौका है। भारत को उन सभी कंपनियों के लिए एक विश्वसनीय गंतव्य के रूप में खुद को स्थापित करने के लिए जो करना पड़े, वह सब कुछ करना चाहिए जो चीन से अपने विनिर्माण आधार को स्थानांतरित करने की योजना बना रही हैं।

चौथा, अमेरिका द्वारा भारत पर लगाया गया 26 फीसदी का जवाबी शुल्क कई अन्य उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं पर लगाए गए टैरिफ की तुलना में बहुत कम है जैसे कि चीन (135 फीसदी), कंबोडिया (49 फीसदी), वियतनाम (46 फीसदी), थाईलैंड (36 फीसदी), बांग्लादेश (37 फीसदी) और इंडोनेशिया (32 फीसदी) पर लगाए गए शुल्क। इससे अन्य प्रतिस्पर्द्धी देशों की तुलना में भारत के तुलनात्मक लाभ में सुधार हुआ है।

उदाहरण के तौर पर परिधान और वस्त्रों में (चीन, वियतनाम और बांग्लादेश की तुलना में) भारत को एक तुलनात्मक बढ़त हासिल होगी। चीन परिधान का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है जो अमेरिका के कुल परिधान आयात का 22 फीसदी भेजता है। हमें अपने वस्त्र निर्यात को बढ़ावा देने के लिए इसका लाभ उठाने की आवश्यकता है।

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि वैश्विक व्यापार और वृद्धि में टैरिफ युद्ध का तत्काल प्रभाव स्पष्ट रूप से दिख रहा है लेकिन मध्यम अवधि में चीजें कैसे सामने आएंगी इसका फिलहाल अनुमान लगाना मुश्किल है। हालांकि अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत के अपेक्षाकृत कम प्रभावित होने की उम्मीद है। साथ ही व्यापार युद्ध ने भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का एक प्रमुख खिलाड़ी बनने का एक शानदार मौका दिया है।

First Published - May 2, 2025 | 10:29 PM IST

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