महंगाई दर आज वृहत-अर्थशास्त्र की गंभीर समस्या बनकर उभर रही है। इसकी गंभीरता इतनी है कि हाल ही में पैदा हुईं कई दूसरी नकारात्मक चीजें इसके सामने फीकी पड़ गई हैं।
मिसाल के तौर पर औद्योगिक उत्पादन को लिया जा सकता है, जिसके सूचकांक में गिरावट पर पिछले दिनों खूब हाय-तौबा मचा था।थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई की दर 15 मार्च को खत्म हुए हफ्ते में 6.68 फीसदी (जो प्रोविजनल है) हो गई है। पिछले साल भी इसी वक्त महंगाई दर 6.56 फीसदी के आसपास थी। लिहाजा यह नहीं कहा जा सकता कि महंगाई दर के नए आंकड़ों के लिए लो बेस जिम्मेदार है।
दरअसल, यदि महंगाई के इंडेक्स के अंतिम आंकड़े को उसके प्रोविजनल आंकड़े के मुकाबले ज्यादा मानें (जैसा अमूमन होता है), तो महंगाई की दर अब तक 7 फीसदी के ऊपर पहुंच गई होगी। यह आंकड़ा राजनीतिक तापमान बढ़ाने के लिए काफी है। खास तौर पर विपक्ष और वामपंथी पार्टियां इस मसले पर आने वाले दिनों में सरकार के खिलाफ जंग शुरू कर सकती हैं।
सरकारी नुमाइंदे इस मसले पर पहले ही रक्षात्मक मुद्रा में आ चुके हैं और महंगाई दर पर नकेल कसने की दिशा में कई पहलें की की जा चुकी हैं। उदाहरण के तौर पर, खाने के तेल पर आयात शुल्क का कम किया जाना। इस तरह की चर्चाएं भी गर्म हैं कि रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की अपनी आगामी समीक्षा में ब्याज दरों में बढ़ोतरी करेगा।पर बड़ा सवाल यह है कि क्या ये कदम महंगाई पर काबू पाने में मददगार साबित होंगे?
यह सच है कि पिछले कुछ दिनों में महंगाई दर में बढ़ोतरी की वजह खाद्य पदार्थों की कीमतों में आया उछाल था, पर इस बार महंगाई दर बढ़ने का सरोकार खाने के सामान की कीमतों से नहीं है। शायद सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के पीछे वह राजनीतिक संवेदनशीलता रही है, जो खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ने को लेकर पैदा हुईं।
पर इस बार कीमतों में बढ़ोतरी गैर-खाद्य प्राथमिक वस्तुओं (जिनकी कीमतों में पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 14.6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है), बुनियादी धातुओं और मिश्र धातुओं (22.6 फीसदी की वृध्दि) की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से हुई है। खाद्य पदार्थों की कीमतों में तो महज 8.2 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जिसे बहुत ज्यादा नहीं कहा जा सकता।
लिहाजा इस बात में कोई दो राय नहीं कि महंगाई पर नकेल कसे जाने के लिए सरकार द्वारा हाल में उठाए गए कदम नाकाफी हैं। उदाहरणस्वरूप, नारियल तेल के आयात शुल्क में की गई कटौती को ही ले लें। जैसा कि अक्सर होता है, इस तेल का निर्यात करने वाले देशों ने भारत सरकार के फैसले का स्वागत किया।
भारत सरकार के ऐलान के फौरन बाद इन देशों ने इन तेलों की निर्यात कीमतों में इजाफा कर दिया। आयात शुल्क में कटौती का फायदा उन देशों के किसानों को हुआ, न कि भारतीय उपभोक्ताओं को। सरकार को सही दिशा में कदम उठाने की कवायद करनी चाहिए।