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माइक्रो क्रेडिट संस्थानों को फंड से रंगने की पहल

Last Updated- December 10, 2022 | 5:31 PM IST

मोहम्मद युनूस ने बांग्लादेश में लघुस्तर पर लोगों को कर्ज मुहैया कराकर वहां की तस्वीर बदलने में अहम भूमिका अदा की है।


सोशल इनवेस्टमेंट फोरम ‘रंग दे’ का दावा है कि भारत में भी इस तर्ज पर काम कर गरीब एवं निम्न मध्यवर्ग के लोगों की हालत में सुधार लाया जा सकता है। इस फोरम की स्थापना रामकृष्ण एनके नामक शख्स ने आईसीआईसीआई फाउंडेशन की मदद से की है।


फोरम एक पोर्टल के रूप में काम करता है, जिसका मकसद लघु स्तर पर सस्ते कर्ज (लो कॉस्ट माइक्रो क्रेडिट) मुहैया कराना है।राम कहते हैं कि मेरे जेहन में सवाल था कि क्या लो कॉस्ट क्रेडिट का वाकई में अस्तित्व है? राम ने बताया, ‘ मैंने इस बारे में सेमिनारों में सुना था, लेकिन किसी को इस पर अमल करते नहीं देखा था।


मुझे लगता था कि यह व्यावहारिक  रूप से संभव नहीं है।’ हालांकि बाद में उनकी धारणा बदल गई है। इसके बाद उन्होंने इस साल 26 जनवरी को ‘रंग दे बंसती’ अंदाज में अपना ड्रीम वेंचर शुरू किया। यह वेंचर आम लोगों के लिए निवेश मंच मुहैया कराता है। लोग इसमें कम से कम 1 हजार रूपये तक जमा कर सकते हैं और साल के अंत में उन्हें इस रकम को वापस लेने की आजादी होगी।


इस रकम पर उन्हें 3.5 फीसदी की दर से ब्याज भी मिलेगा और साथ ही दूसरों की मदद करने की संतुष्टि भी प्राप्त होगी। हालांकि, इसके संचालन में पोर्टल लाभ कमाने वाले माइक्रो फाइनैंस संस्थाओं के बजाय आम लोगों की मदद लेगा, क्योंकि इन संस्थाओं के पास फंड प्राप्त करने का जरिया नहीं होता है और इस वजह से उन्हें अपना अस्तित्व बचाने के लिए नो-प्रॉफिट मॉडल को त्यागना पड़ता है।


राम कहते हैं कि मध्य आय वर्ग में आनेवाला शख्स किसी खास मकसद के लिए 500 से 1,000 रुपये तक की वित्तीय सहायता कर सकता है। लेकिन वह इससे ज्यादा कुछ नहीं कर सकता।वह बार-बार ऐसा नहीं कर सकता। लेकिन ‘रंग दे’ स्कीम के तहत हर कोई इसमें बार-बार निवेश कर सकता है। इस स्कीम में आप अपने निवेश को कभी भी निकाल सकते हैं और साथ इस पर 3.5 फीसदी का ब्याज भी आपको मिलता रहेगा।


वह कहते हैं कि इस वजह से फोरम में कोई भी शख्स कभी-कभी रकम निवेश कर सकता है। राम और उनकी पत्नी स्मिता ने सस्ते छोटी संस्थाओं और लोगों को ब्लॉग के जरिये सस्ता माइक्रो क्रेडिट उपलब्ध कराने के आइडिया पर मिलकर चर्चा की और उन्होंने पाया कि इस काम में आईटी इंडस्ट्री टेक्नलोजी के रूप में उनकी मदद करने को तैयार है।


हालांकि, इस योजना पर खर्च होने वाली राशि काफी ज्यादा थी और ये दंपति यह खर्च वहन करने में सक्षम नहीं थे। संयोगवश आईटी पेशेवरों की एक टीम इन्फोसिस से अलग हुई थी और कुछ अलग हटकर काम करना चाहती थी। इस टीम ने राम के साथ हाथ मिला लिया और सौदा तय हो गया। हालांकि दंपति के पास महज करीब 2 लाख 40 हजार रुपये थे, जबकि इंजीनियरों को इस प्रोजेक्ट के लिए 33 हजार डॉलर (करीब 13 लाख 20 हजार रुपये) की जरूरत थी।


इसके मद्देनदर सौदे में तय हुआ कि दंपति को पूरी राशि इंजीनियरों को बाद में अदा करनी होगी। नतीजा आपके सामने है। इसे आईसीआईसीआई फाउंडेशन की तरफ से भी कुछ वित्तीय मदद मिली है। इसमें सबसे ज्यादा निवेश करने वाले शख्स हमारे परिचित हैं, जिन्होंने इस वेंचर में 50 हजार रुपये निवेश किए हैं।


इस पोर्टल के जरिये कई लोगों को लोन का लाभ पहुंचाया जा चुका है। नागपुर के नॉन प्रॉफिट माइक्रो फाइनैंस संस्थान सीबीएमडी ने ऐसे 31 लोगों की पहचान की है और इन्हें सहायता मुहैया कराई गई है। राम ने बताया कि अब तक लोन के रूप में 1 लाख 50 हजार रुपये का भुगतान किया जा चुका है।


साथ ही 10 नए लोगों ने मदद के लिए इस पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करवाया है। इस पोर्टल के जरिये जरूरतमंदों को 8.5 फीसदी की दर से कर्ज मुहैया कराया जाता है। इस संपूर्ण कवायद का मकसद वैसे नॉन-प्रॉफिट माइक्रो के्रेडिट संस्थाओं के लिए मदद मुहैया कराना है, जो काफी छोटे हैं और कुछ गांवों या ब्लॉकों तक सीमित हैं।


राम का कहना है कि माइक्रो फाइनैंस संस्थान को फंडिंग संस्थाओं से मदद के लिए उनका बड़ा होना जरूरी शर्त है। इन संस्थानों के नॉन बैंकिंग फाइनेंशल कंपनी (एनबीएफसी) बनने के लिए कम से कम 2 करोड़ रुपये की पूंजी होनी चाहिए। सिर्फ एनबीएफसी को विभिन्न फंडों की मदद मिल सकती है।

First Published - April 9, 2008 | 12:04 AM IST

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