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अतार्किक विकल्प: हिचकोले खाती भारत की आर्थिक वृद्धि की गाड़ी

भारत की अर्थव्यवस्था यदा-कदा ही मंदी के दलदल में पूरी तरफ फंसती है मगर यह भी सच है कि लगातार तेज रफ्तार दौड़ने में इसकी सांस फूलने लगती है।

Last Updated- January 06, 2025 | 10:42 PM IST
Budget 2025: Government should promote economic reforms, economists gave suggestions आर्थिक सुधार को बढ़ावा दे सरकार, अर्थशास्त्रियों ने दिए सुझाव
प्रतीकात्मक तस्वीर

नवंबर के शुरू में मैंने अपने एक आलेख में जिक्र किया था कि भारतीय अर्थव्यवस्था अनुमान के मुताबिक ही बिना उत्साह आगे बढ़ रही है। भारत की अर्थव्यवस्था यदा-कदा ही मंदी के दलदल में पूरी तरफ फंसती है मगर यह भी सच है कि लगातार तेज रफ्तार दौड़ने में इसकी सांस फूलने लगती है। कुछ ही दिनों बाद यह दिख भी गया, जब वित्त वर्ष 2024 में 8.2 प्रतिशत पर पहुंचने वाली भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर वित्त वर्ष 2025 की पहली तिमाही में फिसल कर 6.6 प्रतिशत रह गई। चालू वित्त वर्ष की ही दूसरी तिमाही में यह 5.4 प्रतिशत तक लुढ़क गई। जीडीपी निकट भविष्य में दोबारा 8 प्रतिशत वृद्धि हासिल करता तो नहीं दिखता मगर यह 5 प्रतिशत से नीचे भी नहीं जाएगा। अगर पुरानी ‘हिंदू वृद्धि दर’ 3.5 प्रतिशत (1950 से 1980 तक सालाना औसत वृद्धि दर) थी तो अब नई हिंदू वृद्धि दर 5.5 प्रतिशत हो गई है।

पिछली तिमाही में आर्थिक सुस्ती के कई कारण सरकार ने बताए हैं। पहला कारण भारतीय रिजर्व बैंक की सख्त मौद्रिक नीति है तो दूसरा कारण आम चुनाव एवं विधानसभा चुनावों के कारण केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा कम पूंजीगत व्यय बताया गया है। तीसरा कारण देश के भीतर राजनीतिक कारणों, वैश्विक अनिश्चितता, अत्यधिक क्षमता और भारत में विदेशी माल पाटे जाने के डर से सुस्त निजी पूंजीगत व्यय।

ये सभी कारण सही हो सकते हैं मगर ये महज तात्कालिक हैं और बाद में बदल भी सकते हैं। अगली बार जब जीडीपी आंकड़े जारी होंगे तो इनमें कमजोरी के लिए वैश्विक आर्थिक कमजोरी, तेल की बढ़ती कीमतें या देश के भीतर पूंजीगत व्यय में और भी कमी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। असल बात तो यह है कि खराब नीतियों, खराब प्रशासन (भारी भ्रष्टाचार समेत) और ज्यादा खर्च में कम नतीजे देने वाली व्यवस्था में उलझी भारतीय अर्थव्यवस्था कमजोर है। सरकार की नवंबर 2024 की मासिक आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि ‘वैश्विक अनिश्चितताओं, जरूरत से अधिक उत्पादन और देसी बाजार में विदेशी सस्ता माल छाने के डर से निजी पूंजीगत व्यय में कमजोरी दिखी है’।

इन समस्याओं का समाधान चुटकी बजाकर नहीं किया जा सकता। फिर आने वाली तिमाहियों में निजी पूंजीगत व्यय एकाएक कैसे बढ़ जाएगा? भारतीय अर्थव्यवस्था मोटे तौर पर एक गति में आगे बढ़ती रही है और इसमें साधारण वृद्धि ही हुई है। हमारी वृद्धि दूसरे कई देशों से तेज हो सकती है मगर इतनी नहीं है कि भारत को मध्यम आय वाला देश बना सके। ‘अमीर देशों’ की जमात में आने का सपना पूरा होने का तो सवाल ही नहीं उठता।

अहम सवाल यह है कि क्या यह हकीकत शेयर बाजार में भी नजर आती है? 6 प्रतिशत की वृद्धि दर अच्छी मानी जा सकती है मगर इसके बल पर शेयर बाजार में छप्परफाड़ तेजी तो नहीं आ सकती। खास तौर पर तब तो बिल्कुल नहीं आ सकती, जब खास तौर पर स्मॉल-कैप शेयर दो साल से अपनी रफ्तार से चौंका रहे हों। एसऐंडपी बीएसई स्मॉलकैप सूचकांक 2023 में 47.52 प्रतिशत और 2024 में 29 प्रतिशत चढ़ा है। निफ्टी माइक्रोकैप 250 सूचकांक ने तो और भी छलांग लगाई। यह 2023 में 66.44 प्रतिशत और 2024 में 34.35 प्रतिशत ऊपर गया है। इस बीच बड़े शेयरों की सुस्ती निफ्टी 50 पर भारी पड़ी, जिस कारण यह 2023 में केवल 20 प्रतिशत और 2024 में मात्र 9.58 प्रतिशत ही चढ़ पाया। फिर भी लगातार नवें साल यह बढ़त पर बंद हुआ। इन सब के बावजूद यह मान लेना नासमझी होगी कि यह शानदार रिटर्न हमेशा जारी रहेगा। निवेशकों को पूछना चाहिए कि आर्थिक वृद्धि साधारण (6 प्रतिशत के आसपास) रही तो क्या स्मॉलकैप और माइक्रोकैप राजस्व और मुनाफे में लगातार असाधारण वृद्धि दर्ज कर पाएंगे?

छोटी भारतीय कंपनियों के लगातार मजबूत प्रदर्शन करने की एक वजह है। वित्त वर्ष 2023 की अंतिम तिमाही से ही उन्हें सरकार के भारी-भरकम खर्च का भरपूर फायदा मिला है। पिछले कई वर्षों की सुस्त आर्थिक वृद्धि को देखते हुए मोदी सरकार ने रेल, सड़क, शहरी परिवहन, जल, ऊर्जा परिवर्तन और रक्षा उत्पादन जैसे बुनियादी ढांचे पर सालाना लगभग 11 लाख करोड़ रुपये खर्च कर अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने की कोशिश की। वित्त वर्ष 2024 के दौरान कुल व्यय में सरकारी पूंजीगत व्यय 24 प्रतिशत हो गया, जो वित्त वर्ष 2014 में केवल 14 प्रतिशत था। मगर पिछले साल 33.7 प्रतिशत बढ़ा सरकारी पूंजीगत व्यय चालू वित्त वर्ष की अप्रैल से अक्टूबर की अवधि में 6.6 प्रतिशत घट गया। भारतीय अर्थव्यवस्था के इस मुख्य इंजन की गति धीमी पड़ी तो जीडीपी वृद्धि दर भी घट गई।

उम्मीद की जा रही है कि चालू वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही में सरकार का पूंजीगत व्यय तेजी से बढ़ जाएगा। मगर सरकार के पूंजीगत व्यय के भरोसे बैठे रहने का अपना जोखिम है क्योंकि यह काफी हद तक राजस्व के आंकड़े पर निर्भर करता है, जो कमजोर दिख रहा है। देश की अर्थव्यवस्था नई ‘हिंदू वृद्धि दर’ पर आ रही है और केंद्र तथा राज्य सरकारों के कुल राजस्व की वृद्धि दर 2024-25 की अप्रैल से अक्टूबर अवधि में घटकर 10.8 प्रतिशत रह गई है, जो वित्त वर्ष 2023 में 18 प्रतिशत और 2024 में 14 प्रतिशत थी। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह में भी कमी आई है। वित्त वर्ष 2023 में 26.2 प्रतिशत वृद्धि दर्ज करने के बाद जीएसटी संग्रह वित्त वर्ष 2024 में मात्र 11.9 प्रतिशत बढ़ा था और चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में इसमें केवल 9.3 प्रतिशत वृद्धि हुई है।

कहानी यहीं खत्म नहीं होती क्योंकि परेशान करने वाले कुछ दूसरे संकेत भी सामने आने लगे हैं। वित्त वर्ष 2025 की पहली छमाही में बिजली खपत की वृद्धि दर कम होकर 3.9 प्रतिशत रह गई, जो वित्त वर्ष 2024 में 9.7 प्रतिशत थी। इसी दौरान सीमेंट उत्पादन में भी महज 1.8 प्रतिशत वृद्धि हुई और ईंधन खपत में भी केवल 3.3 प्रतिशत इजाफा हुआ। हालांकि ठोस निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी मगर कमजोरी के ये संकेत बरकरार रहे तो भारत वैसी ही लंबी आर्थिक सुस्ती में फंस सकता है, जैसी 2014 से 2019 के बीच दिखी थी। अगर इन संकेतकों में थोड़ा भी सुधार हुआ तो संतुष्टि की बात होगी क्योंकि इनमें किसी बड़ी तेजी की उम्मीद करने की कोई वजह अभी नजर ही नहीं आ रही।

आर्थिक वृद्धि को दमखम देने वाले इंजन कहां गए? परिस्थितियां चाहे अनुकूल हों या प्रतिकूल, ऊंची वृद्धि दर की उम्मीदों का क्या होगा जिनके सहारे बाजार पहले ही उछल चुका है, खासकर उन छोटी कंपनियों में आई तेजी का क्या होगा, जो पिछले दो साल से उम्मीद से कहीं ज्यादा रिटर्न दे रही हैं? निवेशकों के लिए यही असली सवाल है।

(लेखक डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट मनीलाइफ डॉट इन के संपादक और मनीलाइफ फाउंडेशन के न्यासी हैं)

First Published - January 6, 2025 | 10:26 PM IST

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