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अब दिलों को जीतने में लगी रिटेल इंडस्ट्री

Last Updated- December 06, 2022 | 12:43 AM IST

संगठित रिटेल उद्योग इन दिनों अपने आलोचकों को खुश करने के लिए अपनी रणनीति को और बेहतर बनाने में जुटा है।


इसके तहत इन कंपनियों द्वारा इंडस्ट्री कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सबिलिटी निभा कर आलोचकों का दिल जीतने की कोशिश की जा रही है।आईटीसी और रिलायंस ने अपनी-अपनी कंपनियों में सड़कों पर काम करने वाले हॉकरों की भर्ती का अभियान शुरू किया है।


गौरतलब है कि ये हॉकर बड़ी रिटेल कंपनियों के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी हैं। इसके अलावा भारती द्वारा हाल में लुधियाना में खोले गए रिटेल चेन ‘ईजी डे’ में भी इस तरह की रणनीति अपनाई जा रही है। भारती ने लुधियाना में एक ही जगह के आसपास 3 रिटेल चेन खोला है और इसमें काम करने वाले सेल्समैन भी इलाके के आसपास के लोग ही हैं। भारती रिटेल लिमिटेड भारती इंटरप्राइजेज की सब्सिडियरी कंपनी है।


भारती रिटेल चेन ने मांस बेचने वालों, फल-सब्जी वेंडरों, घरेलू महिलाओं, रिटायर्ड लोगों, ग्रामीण आबादी, विकलागों और नौजवानों को अपनी सेल्स टीम का हिस्सा बनाया है। भारती रिटेल के प्रवक्ता ने बताया कि कंपनी समग्र विकास के प्रति प्रतिबध्द है और जहां भी इसके स्टोर खुलेंगे, वहां इस बात का ख्याल रखा जाएगा कि इस बिजनेस से आसपास के लोगों को भी फायदा पहुंचे।


इतना ही नहीं कंपनी शारीरिक रूप से लाचार लोगों को रिटल इंडस्ट्री के बारे में शिक्षा भी मुहैया करा रही है। इसके अलावा वैसे लोगों को इसकी ट्रे्निंग दी जा रही है, जिन्हें रोजगार प्राप्त करने की योग्यता के दायरे से बाहर रखा जाता है।


प्रवक्ता ने कहा कि कंपनी फिलहाल पंजाब पर फोकस कर रही है और दूसरे इलाके में अपने पांव पसारने से पहले बाजार के एक हिस्से पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहेगी। उनके मुताबिक, कंपनी ने 2015 तक पूरे भारत में अपने ऑपरेशन शुरू करने के तहत 200-250 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।
 
हालांकि एफडीआई वॉच के डायरेक्टर धर्मेंद्र कुमार का कहना है कि कुछ स्ट्रीट वेंडरों और विकलांग लोगों की भर्ती को तब तक एक छलावा कहा जा सकता है, जब तक रिटेल इंडस्ट्री इस बात का खुलासा नहीं करती कि कुल कर्मचारियों में ऐसे लोगों का प्रतिशत क्या है।


वह कहते हैं कि स्ट्रीट वेंडरों और रिटायर्ड लोगों की तादाद सिर्फ 1,000 के आसपास होगी, लेकिन कंपनियां इसके जरिये जमकर प्रचार अभियान चलाने की कोशिश करती हैं। इसके मद्देनजर इस कवायद का मकसद इस बाबत हो रहे विरोध को प्रभावहीन बनाना है, न कि वेंडरों को रोजगार मुहैया कराना।


पिछले साल आईटीसी ने समग्र रिटेल का अपना मॉडल लॉन्च किया था और चौपाल फ्रेश रिटेल स्कीम के तहत 150 वेंडरों को ठेला मुहैया कराए गए थे। इसके पीछे रणनीति माथे पर सामान लेकर बेचने वाले वेंडरों के लिए ठेला मुहैया कराकर आईटीसी द्वारा उत्पादित और वित्त पोषित उत्पादों की बिक्री करना था। इसके अलावा इस स्कीम में फ्रेंचाइजी का विकल्प भी उपलब्ध था।


कुमार ने बताया कि आईटीसी को यह प्रोजेक्ट कुछ हफ्तों के बाद बंद करना पड़ा था। उनका कहना है कि अगर ये कंपनियां वंचित तबकों के लिए कुछ करने के मामले में वाकई गंभीर हैं तो उन्हें इन (कंपनियों के) स्टोर्स में काम करने वाले लोगों की तादाद के बारे में खुलासा करना चाहिए। इस बाबत पूछे जाने पर आईटीसी के अधिकारियों ने इस मामले में कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। हालांकि उन्होंने इस बात को माना कि यह चौपाल फ्रेश रिटेल स्कीम अब वजूद में नहीं है।

First Published - April 30, 2008 | 12:03 AM IST

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