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Opinion: लाल सागर में नौसेना की तैनाती के क्या हैं मायने

भारतीय नौसेना वर्ष 2008 के बाद पहली बार मजबूती से और एक-एक लक्षित मकसद से इस क्षेत्र में समुद्री डकैती विरोधी अभियान चला रही है। बता रहे हैं हर्ष वी पंत और कार्तिक बोम्माकांति

Last Updated- February 12, 2024 | 10:03 PM IST
लाल सागर में नौसेना की तैनाती के क्या हैं मायने, Dynamic shift: Indian Navy in the Red Sea

भारतीय नौसेना ने अदन की खाड़ी और पश्चिमी अरब सागर में अब तक का सबसे बड़ा जहाजी बेड़ा तैनात किया है।  हालांकि यह तैनाती यमन में ईरान से समर्थन पाने वाले हूती विद्रोहियों के खिलाफ अमेरिका-ब्रिटेन की चल रही मौजूदा सैन्य कार्रवाई का हिस्सा नहीं है। भारतीय नौसेना के इस अभूतपूर्व विशाल बेड़े में 12 युद्धपोत शामिल हैं जिनमें से दो अत्याधुनिक पोत अदन की खाड़ी में और शेष 10 पोत उत्तरी और पश्चिमी अरब सागर में तैनात हैं।

इन क्षेत्रों में पिछली बार के बेड़े की तैनाती की तुलना में मौजूदा तैनाती एक महत्त्वपूर्ण बदलाव को दर्शा रही है, खासतौर पर जिस तरह से इस अभियान की क्षमता और इसका दायरा बेहद व्यापक प्रतीत हो रहा है। भारतीय नौसेना के अभियान के केंद्र में समुद्री लुटेरों और जहाजों के बंधक विरोधी अभियान अहम रहे हैं जो एक महत्त्वपूर्ण नौसैनिक विशेष बल अभियान का पूरक भी है।

अदन की खाड़ी और उत्तर तथा पश्चिमी अरब सागर में लगभग छह साल की शांति के बाद समुद्री लूटपाट के लिए हमले की बढ़ती तादाद ने सबको हैरान कर दिया है। सोमालिया के समुद्री दस्यु समूहों ने वर्ष 2008 और 2018 के बीच की अवधि में बड़े पैमाने पर जहाजों को निशाना बनाया था। हालांकि, वर्ष 2018 से वर्ष 2023 के अंत तक बहुत कम या न के बराबर समुद्री लूटपाट की घटनाएं हुईं। 

इजरायल और हमास के बीच युद्ध से ऐसी परिस्थितियां बनीं कि ईरान का समर्थन पाने वाले हूती विद्रोहियों ने अदन की खाड़ी और लाल सागर में इजरायल और उसके समर्थक पश्चिमी देशों से जुड़े  व्यापारिक मालवाहक जहाजों को निशाना बनाना शुरू किया और इस तरह फिर से समुद्री लुटेरों की वापसी हुई है और इस तरह के हमले भी अब बढ़ गए हैं।

इस पृष्ठभूमि में भारतीय नौसेना को वर्ष 2008 के बाद पहली बार काफी ताकत के साथ एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य से जहाजी बेड़े की तैनाती करने का आदेश दिया गया है। वर्ष 2008 में इसने पहली बार गश्त शुरू की थी और अदन की खाड़ी में समुद्री लुटेरों की गई आक्रामक कार्रवाई का मुकाबला करने के लिए इसके जहाजी बेड़े को तैनात किया गया था।

दरअसल, यहां भारत की मौजूदा नौसैनिक उपस्थिति, किसी भी अन्य देश की तुलना में पूर्वी अफ्रीकी तट और अदन की खाड़ी में अधिक है। पहले भारतीय नौसेना रक्षात्मक रुख अपनाने, ज्यादा सावधानी बरतने के साथ सहज थी लेकिन अब जहाजी बेड़े की तैनाती से इस रुझान में बदलाव दिख रहा है और यह काफी हद तक भारतीय नौसेना के नेतृत्व और इसकी क्षमता के बढ़ते आत्मविश्वास का परिणाम है।

वर्ष 2000 के दशक के अंत में, उत्तर-पश्चिमी अरब सागर और अदन की खाड़ी में भारतीय नौसेना की उपस्थिति सीमित थी। समुद्री डकैती रोकने से जुड़े अभियानों से निपटने के लिए नौसेना कार्रवाई इस हद तक सीमित थी कि भारतीय बेड़े के एक युद्धपोत ने कुछ सफलताएं हासिल कीं, लेकिन यह किसी अभियान के लिए जरूरी क्षमता और पूर्वी अफ्रीकी तट, खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के देशों और अन्य नौसेनाओं के साथ सहयोगात्मक रवैया बनाए रखने के लिहाज से अपर्याप्त थी।

जिस क्षेत्र में भारतीय नौसेना के जहाज, समुद्री डकैतों के हमले से निपटने के लिए फिलहाल तैनात किए गए हैं, उसका क्षेत्रफल 25 लाख वर्ग समुद्री मील है, जिसके चलते किसी भी अकेली नौसेना के लिए गश्त लगाने का काम बेहद कठिन हो सकता है। हालांकि, मौजूदा तैनाती से संकेत मिलते हैं कि भारतीय नौसेना की क्षमता अधिक है और इसे इस बात की समझ है कि एक विशाल जल क्षेत्र में, जटिल समुद्री डकैती रोधी अभियानों को तेजी और प्रभावी ढंग से बिना कोई खून-खराबा किए हुए कैसे पूरा किया जाएगा।

भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से भी देखा जाए तो इस प्रतिबद्धता को विदेश मंत्री एस जयशंकर कुछ इस तरह व्यक्त करते हैं, ‘जब आसपास के देश में परिस्थितियां खराब हो रही हों और हम यह कहने लगें कि हमारा इससे कोई लेना-देना नहीं है, तब हमें जिम्मेदार देश नहीं माना जाएगा।’ यह भारत की व्यापारिक जहाजों की सुरक्षा और रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण जलमार्गों के माध्यम से नौवहन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी लेने की मजबूत प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

हाल में समुद्री डाकुओं के हमले में आई तेजी के चलते मालवाहक जहाजों का आवागमन बाधित हुआ है और इस कारण जहाजों को बंधक बनाने की घटनाएं बढ़ी हैं। भारतीय नौसेना ने समुद्री लुटेरों के हमलों पर बेहद मजबूती से और प्रभावी ढंग से अपनी प्रतिक्रिया देते हुए लगातार हमले किए हैं।

भारतीय नौसेना द्वारा पहले किए गए कई राहत-बचाव कार्यों की तुलना में यह कदम उसके बदले हुए रुख को दर्शाता है। जनवरी की शुरुआत में, भारतीय नौसेना के मरीन कमांडो (मार्कोस) को आईएनएस चेन्नई मिसाइल पर तैनात  किया गया जिसने बहरीन जा रहे लाइबेरिया के झंडे वाले जहाज सहित 15 भारतीय चालक दल के सदस्यों को बचाया। वहीं 26 जनवरी को, नौसेना के आईएनएस विशाखापत्तनम ने ब्रिटेन से जुड़े एक टैंकर को बचाने की पहल की जिसे हूती मिसाइल ने निशाना बनाया था। 

इसके बाद, गश्त लगाने वाले पोत, आईएनएस सुमित्रा ने जनवरी के अंत में सोमालिया के तट पर दो बंधक बनाए जाने वाले जहाजों को बचाया। पहले अभियान के तहत 28 जनवरी को, भारतीय युद्धपोत ने ईरान के झंडे वाले जहाज और इसके 19 पाकिस्तानी चालक दल को कब्जे में लेने वाले समुद्री लुटेरों से बचाया। इसके 48 घंटे के बाद आईएनएस सुमित्रा ने एक अन्य ईरानी झंडे वाले वाले जहाज को बचाया, जिस पर करीब 19 पाकिस्तानी चालक दल के सदस्य थे। भारतीय नौसेना द्वारा किए गए सभी अभियान इसकी तेज प्रतिक्रिया देने की क्षमता और इसके निरंतर परिचालन प्रदर्शन को दर्शाते हैं।

हालांकि वर्ष 2008 और 2018 के बीच करीब एक दशक की अवधि के दौरान जितने समुद्री हमले हुए उसकी तुलना में मौजूदा समुद्री हमले कुछ भी नहीं हैं। हाल के दिनों में समुद्री लुटेरों की गतिविधियां अचानक नहीं बढ़ी हैं बल्कि इसका तथ्य यह है कि पश्चिम एशिया एक ऐसा क्षेत्र बन गया है जहां भारतीय नौसेना की उच्च स्तर की सतर्कता आवश्यक है।

(लेखक क्रमशः ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली में अध्ययन एवं विदेश नीति के उपाध्यक्ष और राष्ट्रीय सुरक्षा एवं रक्षा विषय के वरिष्ठ फेलो हैं)

First Published - February 12, 2024 | 10:03 PM IST

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