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Pawan Kalyan: आंध्र प्रदेश की राजनीति में पवन कल्याण का भविष्य

भाजपा का आंध्र प्रदेश में कुछ खास असर नहीं है। पार्टी ने हाल ही में डी पुरंदेश्वरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जो कुछ वर्ष पहले कांग्रेस से भाजपा में आई हैं।

Last Updated- July 21, 2023 | 10:58 PM IST
Pawan Kalyan: The future of Pawan Kalyan in Andhra Pradesh politics

तेलुगू के अभिनेता-राजनेता पवन कल्याण की सन 2012 में आई सुपरहिट फिल्म गब्बर सिंह में खलनायक बार-बार उनसे एक ही प्रश्न पूछता है: ‘क्या तुमको पता है मैं यहां कितना लोकप्रिय हूं?’ इसके उत्तर में कल्याण कहते हैं, ‘लोकप्रियता एक गुजरते हुए बादल की तरह होती है। जब मौसम गर्म होता है, तो यह गायब हो जाती है। मैं आकाश की तरह हूं: चाहे जो भी हो, तूफान हो, बिजली चमकती हो या बारिश होती हो- मैं जस का तस रहता हूं।’

कुछ दृश्यों के बाद वह दर्शकों के शोर-सीटियों की आवाज और तालियों के बीच अपने दुश्मन को धूल धूसरित कर देते हैं। फिल्म ने दुनिया भर में 150 करोड़ रुपये कमाए और तेलुगू फिल्मों के इतिहास में सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्मों में से एक बन गई। परंतु वह सिनेमा था। राजनीति में पवन कल्याण बहुत सफल नहीं हो सके।

उन्होंने 2014 में अपने राजनीतिक संगठन जन सेना पार्टी की शुरुआत की थी। शायद उनके भाई और अभिनेता चिरंजीवी ही उनकी प्रेरणा बने। उन्होंने 2008 में प्रजा राज्यम पार्टी की स्थापना की थी। जमीनी स्तर पर कार्यकर्ता तैयार करने और प्रचार के लिए पर्याप्त समय नहीं होने के बावजूद उन्होंने 18 सीट और 18 फीसदी मत प्राप्त किए थे। हालांकि कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ने उन्हें केंद्र सरकार में मंत्री का पद दिया था लेकिन उन्होंने 2011 में अपने दल का कांग्रेस में विलय कर दिया।

चिरंजीवी और उनके भाई कापू जाति से आते हैं। यह तटीय आंध्र प्रदेश का राजनीतिक दृष्टि से प्रभावशाली समूह है और राजनीति में यह शक्तिशाली तथा भूस्वामियों के समुदाय कम्मा और समान रूप से शक्तिशाली और समृद्ध रेड्डी जातियों से पीछे है। ऐसे में कापू समुदाय को लगता है कि उसकी अनदेखी की गई है। यह समुदाय वित्तीय रूप से सुरक्षित और आकांक्षी है। कुछ समृद्ध फिल्मकार और अभिनेता मसलन दसारी नारायण राव और अल्लू अर्जुन कापू हैं।

परंतु राजनीति में वे हमेशा दूसरे स्थान पर रहे। आंध्र प्रदेश में कापू समुदाय का व्यक्ति कभी मुख्यमंत्री नहीं बना। वह अधिकतम उपमुख्यमंत्री के पद तक पहुंचा। यह इस तथ्य के बावजूद है कि 2009 के विधानसभा चुनाव में कापू समुदाय के 19 विधायक थे जो 2019 में बढ़कर 24 हो गए। यह संख्या रेड्डी जाति के विधायकों से कम लेकिन कम्मा से अधिक थी। कुल मिलाकर देखें तो 175 सदस्यीय विधानसभा में दो तिहाई अनारक्षित सीट इन तीन उच्च जातियों के पास थीं।

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शायद जन सेना पार्टी की राजनीति इसी गणितीय तथ्य से संचालित है। पवन कल्याण ने 2014 में भाजपा-तेदेपा के राजग गठबंधन का समर्थन किया। शायद उनसे वादा किया गया था कि अगर कम्मा और कापू साथ आते हैं तो वे रेड्डी का प्रभुत्व समाप्त कर सकते हैं। परंतु आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जे के नाम पर जब तेदेपा ने राजग छोड़ा तो वह भी उससे अलग हो गए।

उन्होंने 2019 में वाम दलों और बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया और इसके परिणाम अच्छे नहीं रहे: वह दो सीट से लड़े और दोनों से हार गए। उनकी पार्टी 137 सीट पर लड़ी थी और 121 पर उसकी जमानत जब्त हो गई। पार्टी केवल एक सीट जीत पाई। पार्टी को कुल मतों का केवल 5.5 फीसदी मिला।

यह एक बड़ा झटका था। कुछ समय तक जन सेना के बारे में सुनने को नहीं मिला और फिर पता चला यह कुल 42 लोकसभा सीट वाले तेलंगाना और आंध्र प्रदेश का इकलौता दल है जिसे पिछले सप्ताह राजग की बैठक में बुलाया गया। पवन कल्याण कई महीनों से कह रहे हैं कि भाजपा, तेदेपा और जन सेना पार्टी मिलकर जगनमोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली वाईएसआर कांग्रेस को आंध्र प्रदेश में चुनौती दे सकते हैं। परंतु यह सिद्धांत भाजपा को लुभा नहीं पाया और इसकी भी अपनी वजह हैं।

भाजपा का आंध्र प्रदेश में कुछ खास असर नहीं है। पार्टी ने हाल ही में डी पुरंदेश्वरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जो कुछ वर्ष पहले कांग्रेस से भाजपा में आई हैं। उनका रिश्ता तेदेपा से भी है क्योंकि वह चंद्रबाबू नायडू की रिश्तेदार हैं। परंतु अपनी इस नियुक्ति पर प्रतिक्रिया देने में भी उन्हें 48 घंटे लग गए।

विरोधियों के मुताबिक यह बताता है कि वह इस नए पद को लेकर बहुत उत्साहित नहीं हैं। वह कम्मा समुदाय से आती हैं और भाजपा ज्यादा से ज्यादा यही चाह सकती है कि वह इस जाति को तेदेपा से दूर करें। परंतु भाजपा की ताकत को समझने का प्रयास करें तो 2019 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को कुल मतों का 0.84 फीसदी मिला था जबकि कांग्रेस को भी 1.17 फीसदी मत मिले थे। दोनों दलों को एक भी सीट नहीं मिली थी।

गृह मंत्री अमित शाह के साथ एक हालिया बैठक और पवन कल्याण के दबाव के बावजूद भाजपा ने तेदेपा को विपक्ष में रहने दिया। पार्टी तेदेपा और वाईएसआर कांग्रेस दोनों से दूर है इससे संकेत मिलता है कि वह राज्य में दोनों में से किसी के साथ भी मेलजोल कर सकती है।

पवन कल्याण सोच सकते हैं कि वह बीच में फंस गए हैं। जगनमोहन रेड्डी ने हाल ही में मुस्लिमों के एक प्रतिनिधिमंडल से कहा कि उनकी पार्टी समान नागरिक संहिता का समर्थन नहीं करेगी। उनकी पार्टी को पता है कि तेदेपा राजग से बाहर है और उसे पवन कल्याण की कोई परवाह नहीं है।

कई लोग आंध्र प्रदेश की राजनीति को सितारों में उलझी राजनीति समझने की भूल करते हैं। एनटी रामाराव द्वारा सन 1980 के दशक में तेलुगू देशम की शुरुआत के बाद चिरंजीवी ऐसे दूसरे सितारे हैं जिसने राजनीति में सीमित सफलता पाई। 2024 करीब है और अपनी सफल फिल्म के उलट पवन कल्याण शायद यह पाएं कि खुद वह बादल हैं जो गायब हो जाता है। उनके साथ ही कापू जाति के नेतृत्व का स्वप्न भी जाता रहेगा।

First Published - July 21, 2023 | 10:58 PM IST

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