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सियासी हलचल: हरियाणा में उलटफेर वाले समीकरण से सुलझी भाजपा की गुत्थी!

दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाली जनता जननायक पार्टी से भारतीय जनता पार्टी संबंध टूट गए और इस घटनाक्रम के 12 घंटे बाद सैनी के नेतृत्व वाली सरकार ने विश्वास मत जीत लिया।

Last Updated- March 15, 2024 | 9:49 PM IST
हरियाणा में उलटफेर वाले समीकरण से सुलझी भाजपा की गुत्थी!, BJP's mystery solved due to the upturned equation in Haryana!

हरियाणा में सियासी तख्तापलट बेहद आसानी से और एकदम नए अंदाज में हुआ। दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हरियाणा में एक उद्घाटन कार्यक्रम के लिए गए थे। इसके कुछ घंटे बाद ही राज्य के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को अपने पद से इस्तीफा देने के लिए कहा गया। उनकी जगह नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया गया जिन्हें लगभग एक साल पहले ओ पी धनखड़ की जगह राज्य में भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया था (पार्टी जल्द ही नए प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा करेगी)।

दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाली जनता जननायक पार्टी (जेजेपी) से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) संबंध टूट गए और इस घटनाक्रम के 12 घंटे बाद सैनी के नेतृत्व वाली सरकार ने विश्वास मत जीत लिया। पार्टी नेतृत्व ने एक झटके में सरकार के सभी संभावित असंतुष्ट लोगों को दूर कर दिया जिसमें पूर्व गृह मंत्री और खट्टर के सबसे बड़े आलोचक अनिल विज शामिल हैं जो सैनी के शपथ ग्रहण समारोह में उपस्थित नहीं हुए और जिन्हें मंत्री पद नहीं दिया गया।

यह सवाल अहम है कि अब आगे क्या होगा?

पहला, यह खट्टर के लिए राजनीतिक सेवानिवृत्ति हो सकती है। हालांकि उनका नाम लोकसभा चुनाव के लिए उनके क्षेत्र करनाल से उम्मीदवार के रूप में नामित किया गया है। उन्हें मुख्यमंत्री क्यों नियुक्त किया गया यह सवाल अब भी बरकरार है। वह एक ऐसे राज्य में भाजपा के गैर-जाट समूह का चेहरा थे, जहां जाट मुखर होने के साथ ही ताकतवर और अमीर हैं।

मूल रूप से पश्चिमी पाकिस्तान के रहने वाले खट्टर का परिवार गरीब होने के साथ-साथ हरियाणा में प्रवासी परिवार था। वह 1975 में आपातकाल के दौर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संपर्क में आए और 1977 में इस संगठन से जुड़े। खट्टर और मोदी एक-दूसरे को तब से जानते हैं जब मोदी हरियाणा के प्रभारी थे। जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने और भुज तथा कच्छ में भूकंप ने तबाही मचाई थी तब खट्टर को पुनर्निर्माण और पुनर्वास से जुड़ी समिति का नेतृत्व करने के लिए आमंत्रित किया गया।

वर्ष 2002 में वह जम्मू-कश्मीर के चुनाव प्रभारी बने। उन्हें वर्ष 2014 में भी हरियाणा में चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया गया था। खट्टर में मोदी ने आत्मीयता की भावना देखी। इसके अलावा उन्हें संघ और भाजपा के समर्थन तंत्र के बारे में गहरा और व्यापक ज्ञान था। दूसरी अच्छी बात उनकी व्यक्तिगत ईमानदारी है। हरियाणा लगातार कई सरकारों द्वारा जबरन वसूली की मांग के दबाव से पीड़ित था और ऐसे में खट्टर ऐसी किरण की तरह नजर आए जो सरकार के उन अंधेरे कोनों में भी रोशनी ला सकते हैं कि जहां इसकी आवश्यकता थी।

खट्टर की अहमियत उनकी जाति से भी जुड़ी है। गैर-जाटों को महसूस हुआ कि अब उनकी आवाज उठाने वाला कोई है। पिछले कुछ वर्षों में राज्य में जाट और गैर-जाट प्रतिद्वंद्विता ने हिंसा और तबाही की स्थिति बनाई है। वर्ष 2016 में बड़े पैमाने पर दंगे हुए जिससे हरियाणा कई दिनों तक प्रभावित रहा और इस दंगे का नेतृत्व किसी ने नहीं किया। जाट समुदाय की तरफ से सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग करने वाला आंदोलन हिंसक हो गया और भीड़ ने गैर-जाटों विशेष रूप से सैनी समुदाय से जुड़े लोगों की संपत्ति के साथ-साथ सरकारी संपत्ति को भी नुकसान पहुंचाया।

जाट और गैर-जाट ने समान रूप से 2019 के आम चुनाव में भाजपा को वोट दिया था लेकिन इसके बाद के विधानसभा चुनावों में स्थिति बदल गई। हालांकि भाजपा लोकसभा की सभी 10 सीट जीतने में सफल रही लेकिन विधान सभा में बेहतर वोट हिस्सेदारी के बावजूद 90 में से 40 सीट की सीमा भी पार नहीं कर सकी और ऐसे में इसे दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाले जेजेपी का साथ लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।

खट्टर को चौटाला को अपना उपमुख्यमंत्री नियुक्त करने के लिए भी मजबूर होना पड़ा। यह जाटों के लिए एक तरह की जीत थी। जाटों ने दशकों से इंडियन नैशनल लोकदल को वोट दिया है। लेकिन जब दुष्यंत चौटाला ने 2018 में अपनी पार्टी बनाने का फैसला किया तो यह उस पार्टी के लिए कहर साबित हुआ। इसकी हिस्सेदारी 2014 में 24.11 से घटकर 2019 के विधान सभा चुनाव में 2.44 प्रतिशत रह गई। हुड्डा परिवार की मौजूदगी राज्य में पहले से ही थी जो जाट वोट के लिए कांग्रेस के दावेदार थे।

अब, दुष्यंत चौटाला के तस्वीर से बाहर होने के बाद, भाजपा ने आकलन किया है कि जाटों के वोट तीन तरह से विभाजित होंगे। इसलिए जब इस साल के अंत में विधान सभा चुनाव होंगे तब ओबीसी समुदाय के नायब सिंह सैनी के शीर्ष पद पर होने का प्रभाव होगा और गैर-जाटों की पीड़ितों में एकता वाली भावना के चलते भाजपा फिर से सत्ता में आ जाएगी।

हालांकि जाट इसका तोड़ कैसे निकालेंगे इसका अनुमान लगाना मुश्किल है। वर्ष 2016 में, समुदाय ने राज्य के प्रतीकों पर हमला करके सामूहिक शक्तिहीनता पर अपना रोष जाहिर किया था। सीमित प्रशासनिक क्षमता और सरकार के हस्तक्षेप के चलते अनियंत्रित तरीके से दंगे हुए।

क्या जाट जाति के नेतृत्व में कमी से कोई नया राजनीतिक समीकरण तैयार होगा। शायद राज्य की राजनीति में सत्ता-साझेदारी के लिए गैर-जाट समूहों के साथ कोई समायोजन संभव है? भाजपा यही फॉर्मूला पेश कर रही है। वर्ष 2024 के चुनावी नतीजे से इस नए सामाजिक समझौते का अंदाजा मिल सकता है।

First Published - March 15, 2024 | 9:49 PM IST

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