भारत के क्राफ्ट उद्योग की मुश्किलें जल्द ही दूर हो सकती हैं। वित्तीय समर्थन के अभाव में फिलहाल यह उद्योग अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है।
भारतीय क्राफ्ट परिषद (सीसीआई) ने कुछ स्वयंसेवी और शिक्षण संस्थाओं के साथ मिलकर इस उद्योग को संकट से उबारने की पहल की है। अगर ये कोशिशें रंग लाती हैं, तो देसी क्राफ्ट उद्योग अपने पुराने रंग में लौट सकेगा।
एक ओर जहां यूरोपीय और उत्तरी अमेरिकी देशों में आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण संबंधी वजहों से हाथ से बनी चीजों में भविष्य तलाशा जा रहा है, वहीं भारत में क्राफ्ट को लेकर कोई संजीदगी नजर नहीं आती। क्राफ्ट उद्योग न सिर्फ हमारी सांस्कृतिक पहचान है, बल्कि अर्थव्यवस्था के विकास में इसकी अहम भूमिका हो सकती है।
सीसीआई के अध्यक्ष कस्तूरी गुप्ता मेनन का कहना है कि भारत में क्राफ्ट सेक्टर काफी असंगठित है और इस वजह से यह उद्योग अपनी मांगों को जोरदार तरीके से नहीं उठा पाता। मेनन के मुताबिक, क्राफ्ट उद्योग पर उचित तवाो नहीं दिए जाने और फंड की कमी के कारण हस्तकला की कई कैटिगरी ने अपना वजूद खो दिया। उन्होंने बताया कि इस इंडस्ट्री के वजूद को बचाने के लिए उत्पादों की किस्म में बढ़ोतरी और ग्रामीण हस्तकला को बढ़ावा देना बहुत जरूरी है।
इसके मद्देनजर सीसीआई अपनी 14 क्षेत्रीय परिषदों के जरिये विभिन्न राज्यों में क्राफ्ट मेले का आयोजन करेगी। इनमें हस्तकला के विभिन्न रूपों का प्रदर्शन किया जाएगा। साथ ही परिषद क्राफ्ट उद्योग से जुड़े लोगों के उत्पादों की मार्केटिंग में भी मदद करेगी। इसके तहत रिटेल चेन और एग्जिबिशनों में इन उत्पादों को मुहैया कराए जाएंगे। सीसीई ने हाल में दिल्ली में अपना पहला रिटेल आउटलेट ‘कमला’ खोला है।
परिषद की योजना इस साल के अंत तक हैदराबाद और चेन्नै में भी ऐसे ही स्टोर खोलने की है।ग्रामीण क्राफ्ट की शहरों में भारी मांग देखने को मिल रही है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली में खोले गए सीसीआई के पहले आउटलेट का मासिक कोराबार 10 लाख रुपये के करीब पहुंच गया है। दिल्ली क्राफ्ट्स कॉरपोरेशन की चेयरमैन मंजरी निरुला ने बताया कि इस उद्योग के हर प्रॉडक्ट में लाभ का मार्जिन तकरीबन 20 फीसदी है।
शैक्षणिक संस्थाओं में जमशेदपुर स्थित बी स्कूल एक्सएलआरआई ने कला के इस क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए कदम बढ़ाया है। संस्थान के प्रथम वर्ष के 6 छात्रों ने मिलकर एक पोर्टल बनाया है, जिसके जरिये जनजातीय क्राफ्ट उत्पादों को बाजार की मुख्यधारा से जोड़ा जा सकेगा। इस पोर्टल के जरिये ऐसा प्लेटफॉर्म मुहैया कराया जा सकेगा, जो इन उत्पादों को विश्व के नक्शे पर स्थापित कर सकेगा। इस वेबसाइट को तैयार करने का मकसद जनजातीय क्राफ्ट और मुख्य बाजार के बीच दूरी को पाटना है।
इस वेबसाइट के जरिये आपको जनजातीय हस्तकला के नमूने महज माउस क्लिक करते ही उपलब्ध हो जाएंगे। यह पोर्टल लगभग तैयार हो चुका है और इसमें हस्तकला के अलग-अलग आइटमों के लिए अलग-अलग सेक्शन होंगे। वेबसाइट में ऑनलाइन बुकिंग और खरीदारी के लिए भी प्रावधान किया जाएगा।
डोकरा मॉडल और घास की चटाई जैसी जनजातीय हस्तकला के नमूनों को पहले ही वेबसाइट की लिस्ट में शुमार कर लिया गया है। हस्तकला के इन नमूनों को अपने प्रोजेक्ट से जोड़ने के लिए एक्सएलआरआई के छात्र कुछ गैरसरकारी संगठनों से भी बातचीत कर रहे हैं। इस प्रोजेक्ट के तहत छात्र की योजना देश के सभी राज्यो के जनजातीय हस्तकला के नमूनों को इस वेबसाइट पर उपलब्ध कराना है।
इसके अलावा पश्चिम बंगाल में राज्य के क्राफ्ट परिषद द्वारा इस दिशा में कोशिश की जा रही है। परिषद दुर्गा पूजा उत्सव के दौरान राज्य के क्राफ्ट उत्पादों को लोकप्रिय बनाने और इसकी बिक्री बढ़ाने के लिए योजना तैयार करने में जुटी है। गौरतलब है कि दुर्गा पूजा पश्चिम बंगाल का सबसे बड़ा त्योहार है। बंगाल के क्राफ्ट का एक बेहतरीन नमूना लाख से बनने वाली गुड़िया अब मृतप्राय अवस्था में पहुंच चुका है और पश्चिम बंगाल क्राफ्ट परिषद इस फिर से खड़ा करने में जुटी है।
लाख, मिट्टी और विभिन्न रंगों के जरिये इस गुड़िया को तैयार किया जाता है। हालांकि अब भी पहले राज्य में दुर्गा पूजा के दौरान पंडालों में लाख की गुड़िया की सजावट खास आकर्षण का केंद्र होते हैं। पिछले साल एक कलाकार ने मिदनापुर में लाख से मां दुर्गा की तस्वीर बनाई थी। पूरी सजावट में अलग-अलग साइज की ऐसी गुड़ियाओं का इस्तेमाल किया गया था। सजावट के लिए हाथी और घोड़े बनाने में लाख का इस्तेमाल किया गया था। इसके जरिये लाख क्राफ्ट के बेहतरीन नमूने को पेश किया गया था।