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पैसे बढ़ाएं, पर सुधारों को न भूल जाएं

Last Updated- December 05, 2022 | 5:02 PM IST

सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाहों में बढ़ोतरी लंबे वक्त से प्रतीक्षित रही है। लिहाजा सरकार को छठे वेतन आयोग की मुख्य सिफारिशों को बगैर देर किए स्वीकार कर लेना चाहिए।


आला दर्जे की प्रशासनिक सेवाओं में प्रतिभाशाली छात्रों का आना सालों पहले बंद हो चुका है और सैन्य बलों में ऑफिसर के पदों के लिए भी अच्छे उम्मीदवारों की घोर किल्लत है। पिछले 5 साल से प्राइवेट और संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों का वेतन सालाना करीब 15 फीसदी के हिसाब से बढ़ता आ रहा है और इस अवधि में उनकी तनख्वाह तकरीबन दोगुनी हो चुकी है।


पांचवे और छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू किए जाने में करीब एक दशक का अंतर हो जाएगा और इस लिहाज से देखें तो प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारियों की तनख्वाह इस अवधि में तिगुनी हो चुकी है और प्राइवेट नौकरियां करने वाले आला पेशेवरों की तनख्वाह तो चार गुनी तक हो गई है।


ऐसे में जब श्रीकृष्ण पैनल ने आला अधिकारियों की तनख्वाहें 1996 के मुकाबले मोटे तौर पर तिगुनी (कई मामलों में तो ऐसा है भी नहीं) किए जाने की सिफारिश की है, तो इसे प्राइवेट और सरकारी क्षेत्र में दी जाने वाली तनख्वाहों के पुराने अनुपात को हासिल करने की ओर बढ़ाया गया कदम करार नहीं देना चाहिए। सरकारी और प्राइवेट तनख्वाहों की आपसी तुलना संभव नहीं है और ऐसा करना जरूरी भी नहीं है।


वेतन आयोग के चेयरमैन पहले ही कह चुके हैं कि उन्होंने वेतन दिए जाने के मामले में सरकार की क्षमताओं का पूरा ख्याल रखा है, यही बात अपने आप में काफी है। पिछले वेतन आयोग की सिफारिशों को केंद्र सरकार द्वारा लागू किए जाने और फिर राज्यों द्वारा भी इसे स्वीकार किए जाने के बाद सरकार के वेतन और पेंशन बिल में जबर्दस्त बढ़ोतरी हुई थी और यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 1.6 फीसदी हो गया था।


इस वजह से सरकारी वित्त की हालत काफी पतली हो गई थी। पर इस बार हालत इतनी खराब नहीं होने वाली है और यह आंकड़ा जीडीपी का महज 0.5 फीसदी का इजाफा होगा। मूल मुद्दा यह है कि देश को सही प्रशासन की जरूरत है और इसके लिए अच्छे सरकारी कर्मचारियों की दरकार है। यह दुभाग्यपूर्ण है कि पिछले कुछ साल में जहां एक ओर कॉरपोरेट जगत ने काफी तरक्की की है, वहीं दूसरी ओर सरकारी प्रदर्शन में और भी गिरावट दर्ज की गई है।


हालत यह है कि स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सहूलियतों के मामले में सरकारी इंतजाम बेहद खराब रहे हैं।शहरों की हालत सुधरने के बजाय और खस्ता हुई है, सरकारी कार्यक्रमों को सही तरीके से लागू नहीं करवाया जा सका है और भ्रष्टाचार का बोलबाला बढ़ा है। लोक सेवा की भावना में ह्रास हुआ है और सिविल सेवा का राजनीतिकरण हो गया है। हालांकि कई मोर्चों पर कामयाबियां भी दर्ज की गई हैं।


पर इस बात में कोई दो राय नहीं कि सरकारी प्रक्रिया और प्रदर्शन के मामले में बड़ा बदलाव किए जाने की जरूरत है। प्रशासनिक सुधार आयोग को इन मसलों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। वित्त आयोग ने अपनी जो सिफारिशें दी हैं उनमें आला अधिकारियों के लिए उम्दा पारितोषिक ढांचा, चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की कैटिगरी खत्म करना, छुट्टियों की संख्या घटाना, विशेषज्ञों को अतिरिक्त मेहनताना देना और सरकारी सुविधाओं पर नकेल आदि की बात शामिल है। इनमें से कुछ सुझाव तो आसानी से लागू किए जा सकते हैं, पर कुछ को लागू करने के लिए प्रशासनिक संस्कृति में बदलाव की दरकार होगी।


सरकार से बाहर के ज्यादातर लोग इस बात की अहमियत नहीं समझ पाते कि सरकारी महकमे चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों पर किस कदर निर्भर हैं। यह अब भी साफ नहीं है कि इस श्रेणी के कर्मचारी जिस तरह की सेवाएं देते हैं, उन्हें प्रशासनिक सुधारों के जरिये किस तरह खत्म किया जाएगा या फिर क्या इनके कार्यों की आउटसोर्सिंग कराई जाएगी?


इसी तरह, धार्मिक त्योहारों पर मिलने वाली छुट्टियों को खत्म किए जाने का काम भी चुनौती भरा होगा। देखने लायक बात यह होगी कि कितने सरकारी कर्मचारी होली और दीवाली जैसे पर्वों पर स्वेच्छा से दफ्तर आना पसंद करते हैं। यदि थोड़े-बहुत कर्मचारी भी इसके लिए तैयार होते हैं, तो क्या इसके लिए पूरी व्यवस्था में बदलाव किए जाने की जरूरत महसूस की जाएगी?


हां, एक चीज और, जिस पर वेतन आयोग को गौर फरमाना चाहिए था, वह है हाउस रेंट अलाउअंस (एचआरए) का मसला। बड़े शहरों में जिस तरह से मकानों के किराये बढ़ रहे हैं उसे देखते हुए इन शहरों के लिए एचआरए को बढ़ाकर कम से कम 50 फीसदी या उससे ज्यादा के स्तर तक ले जाया जाना चाहिए था।

First Published - March 25, 2008 | 11:36 PM IST

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